पति की लम्बी उम्र के लिए

विश्र्वास, प्रेम और पवित्रता की डोर से बांधता एक ईश्र्वरीय बंधन है-विवाह। कहते भी हैं कि जोड़ियां ऊपर से बनकर आती हैं, इसलिए इस बंधन की पवित्रता को भी देवतुल्य माना जाता है। यह बंधन हमेशा सुखद, अपनेपन और सुरक्षा का अहसास दिलाता है। इसमें समाहित दो जीव अर्थात पति-पत्नी में परस्पर अटूट प्रेम, एक-दूसरे के प्रति विश्र्वास तथा सुंदर एवं अद्भुत साझेदारी होती है। इसलिए तो इस बंधन में भी आनंद लिया जाता है-करवा चौथ का। इसी बंधन को अटूट रखने की कामना के साथ स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए रखती हैं करवा चौथ का व्रत।

स्त्री-पुरुष जब सप्तपदी या सात फेरों के साथ विवाह वचनों को अपनाते हैं तो सदा जोड़ते रखता है यह संबंध। किसी एक के ऊपर भार नहीं होता, बल्कि दोनों की साझेदारी होती है।

ऐसी साझेदारी, जिसमें यदि परेशानी से हलाकान हुए पतिदेव को मुस्कान के साथ चाय का प्याला देकर उनकी परेशानियों को दूर भगा देने का विश्र्वास देने वाला अहसास है तो वहीं दिन भर के कामों के बाद पस्त हुई श्रीमती जी के कंधे पर सहृदयता व स्नेह का परिचायक हाथ रख उनकी सारी थकान को हर लेने वाली प्यारी भावना भी होती है। यही तो वे छोटी-छोटी बातें हैं, जो पति-पत्नी के स्त्री-पुरुष से पहले एक इंसान होने की भावना को दर्शाती है। ऐसी ही भावनाओं को प्रगाढ़ करता है, करवा चौथ का व्रत।

पुराणों के अनुसार यह नारी-पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियां अपने सौभाग्य के लिए गौरी का व्रत रखकर मिट्टी के करवे से चन्द्रमा को अर्घ्य देती हैं। पूरे दिन निराहार रहकर पूजन के पश्र्चात पतिदेव के हाथ से पानी का घूंट पीकर व्रत छोड़ती हैं। स्त्रियों द्वारा एक-दूसरे को पकवान सहित करवे दिए जाते हैं। इस दिन शाकाप्रस्थपुर के वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती की कथा सुनाई जाती है।

घरों में मैदे की पपड़ी, मीठे गुलगुले आदि बनाए जाते हैं। नव-विवाहिताओं से लेकर बड़ी उम्र की शादीशुदा स्त्रियां इकट्ठी होकर एक-दूसरे से करवे बदलती हैं।

शुंदर व सलज्ज मुस्कान के बीच कई स्त्रियां तो चंद्रमा के बाद पति की भी आरती उतारती हैं। पूरे भारत वर्ष में इस व्रत को स्त्रियां अलग-अलग तरीके से मनाती हैं। पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में इस दिन बहुओं हेतु सरगी आती है। इसमें सामर्थ्य अनुसार कपड़े, गहने, फल, मिष्ठान आदि होते हैं। यह सरगी व्रत के एक दिन पूर्व आती है।

करवा कथा- एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि पर्वत पर चले गए। इधर, पांडवों पर अनेक विपत्तियां पहले से व्याप्त थीं। शोकाकुल होकर द्रोपदी ने कृष्ण का ध्यान किया। भगवान के दर्शन होने पर इन कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। कृष्ण भगवान ने द्रोपदी से कहा, “”एक समय पार्वती जी ने भी शिव से यही प्रश्न किया था। शिव ने उन्हें करवा चौथ का व्रत करने का उपाय बताया था, जो सभी विघ्नों का विनाशक माना जाता है।”

“”हे पांचाली द्रोपदी! प्राचीन काल में गुणी व धर्मपरायण एक ब्राह्मण रहता था। उसके चार पुत्र तथा एक गुणवती लड़की थी। सुशील पुत्री ने विवाहित होने पर करवा चतुर्थी का व्रत किया, किंतु चंद्रोदय से पूर्व ही उसे क्षुधा ने बाध्य कर दिया। इससे उसके भाइयों ने छल से पीपल की आड़ में कृत्रिम चांद बनाकर दिखा दिया। कन्या ने उसे ही अर्घ्य दे कर भोजन कर लिया, इसके साथ ही उसके पति की मृत्यु हो गई।

कन्या ने दुःखी होकर अन्न-जल छोड़ दिया। उसी रात्रि में इंद्राणी भू-विचरण करने को निकली थी। ब्राह्मण कन्या ने इंद्राणी से इस दुःख का कारण पूछा। इंद्राणी बोली, “”करवा चौथ के व्रत में चंद्र-दर्शन के पूर्व भोजन कर लेने से तुम्हें यह कष्ट मिला है।” इतना सुनकर ब्राह्मण की कन्या ने अंजलि बांध कर प्रार्थना की कि इससे मुक्त होने का कोई उपाय बताएं।

इंद्राणी बोली, “”यदि तुम विधिपूर्वक पुनः करवा चौथ का व्रत करो, तो निश्र्चित रूप से तुम्हारे पति पुनर्जीवित हो जाएंगे।”

विधि-विधान से उस कन्या ने वर्ष भर प्रत्येक चतुर्थी का व्रत कर अपने पति को प्राप्त किया। श्रीकृष्ण ने आगे कहा, “”हे द्रौपदी! यदि तुम भी इस व्रत को करोगी तो तुम्हारे भी संकट दूर हो जाएंगे।”

कृष्ण से करवा चौथ व्रत की कहानी सुनकर द्रोपदी ने इस व्रत को किया तथा पांडव विजयी हुए। अतः सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि और धन-धान्य की इच्छुक स्त्रियों को यह व्रत विधिपूर्वक करना चाहिए।

भारतीय संस्कृति का अनूठापन और यहां के रीति-रिवाजों के मूल में एक अद्भुत आकर्षण है, जो हमें एक-दूसरे से जोड़ता है। यही कारण है कि सारे त्योहारों की मीठी परंपरा हमें अपनी जड़ों से अलग नहीं होने देती। कई पुरुष भी अपनी पत्नी की लम्बी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखते हैं। यहां दोनों एक-दूसरे की लंबी उम्र और अपने रिश्ते में हमेशा विश्र्वास बने रहने की प्रार्थना करते हैं।

यही भावना तो चाहिए, आज रिश्तों के बीच दूरियों को कम करने के लिए। तभी तो करवा चौथ को सही रूप में हम अपना पाएंगे।

– रिमा राय

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