पहले-पहले नौकरी के पहले-पहले सबक

मुबारक हो, आपको पहली जॉब मिल गई है। खुशियां मनाने का आपका हक है। दोस्तों को पार्टी दीजिए। गर्लफ्रैंड को स्पेशल टीट दीजिए और मम्मी-पापा को सपने दीजिए। लेकिन इस सबके बीच यह मत भूलिए कि वास्तव में आपकी असली परीक्षा अब शुरू हुई है। नौकरी मिलने तक तो आपने अपनी अकादमिक योग्यता, शैक्षणिक संस्थान और घर-बार की पृष्ठभूमि के चलते अपनी एक छवि हासिल कर रखी थी। अब जबकि आपने अपनी पहली नौकरी हासिल कर ली है तो अब आपकी जो भी छवि बनेगी, वह सब आपके कामकाज, आपके व्यावहारिक रवैय्ये और तौर-तरीकों पर निर्भर करेगी। इसलिए हकीकत यह है कि जिम्मेदारियां आपकी अब शुरू हुई हैं या कहें कि अपने आपको साबित करने का आपको इम्तिहान अब देना होगा।

पहली बार वर्कप्लेस जाना कई तरह के अनुभवों का मिश्रण होता है। कुछ के लिए बेहद रोमांचक, कुछ के लिए त्रासद और कुछ के लिए सबक सीखने वाला। क्योंकि अब के पहले आप कामकाज की व्यावहारिक दुनिया से अपरिचित थे। आपको यह नहीं पता था कि आपके लिए फायदेमंद क्या है और नुकसानदायक क्या है। इसलिए कोई अप्रत्याशित हादसा न घटे, आपके साथ कुछ ऐसा न हो, जो जीवनभर के लिए पछतावा बने, इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखें। चूंकि यह आपकी पहली नौकरी है, इसलिए इन्हें आप पहले-पहले सबक के रूप में भी याद कर सकते हैं।

माना कि आप वर्कप्लेस नौकरी करने जाते हैं, दंगल जीतने नहीं। बावजूद इसके पहली-पहली नौकरी की बेहतर शुरूआत के लिए जरूरी है कि आप न सिर्फ मानसिक बल्कि शारीरिक तौर पर भी फिट रहें। इसके लिए जरूरी है कि नियमित रूप से कसरत की जाए, जिम ज्वॉइन किया जाए या अपनी लाइफ स्टाइल की बदौलत फिट रहा जाए। फिट रहने के कई फायदे हैं। फिट रहने से आपके व्यक्तित्व का प्रभावशाली असर पड़ता है। फिट रहने का दूसरा बड़ा फायदा यह है कि आप मानसिक रूप से भी मजबूत रहते हैं। इसलिए आपको दफ्तर में प्रारंभिक तालमेल बिठाने में दिक्कत नहीं पड़ती।

अगर आप शारीरिक रूप से फिट और प्रभावशाली हैं तो आपको अपने नये-नये साथी और सहयोगी बने सहकर्मी ज्यादा सहयोग देंगे। फिट रहने का अब दूसरा अर्थ भी समझें यानी दफ्तर में यह देखें कि क्या माहौल है, अपने आपको किस तरह उस माहौल में बेहतर ढंग से खपाया जा सकता है, कौन अच्छा कूलीग है और किसके साथ टाइम बर्बाद करना नुकसानदायक है? यह तुरंत नहीं तो बहुत जल्दी जज कर लें। तभी सही ढंग से दफ्तर में फिट हो सकेंगे। याद रखें, दफ्तर में जाना शुरू करते ही अगर आप देर से पहुंचने लगे या ज्यादा ही बेतकल्लुफ बर्ताव करने लगे तो यह आपके लिए बहुत ही नकारात्मक साबित होगा। ऐसा नहीं है कि जब पुराने हो जाएं तो दफ्तर में लेट पहुंचना चलता है, लेट पहुंचना तब भी नुकसानदायक हो सकता है। लेकिन इतना नहीं जितना कि शुरूआत में। क्योंकि शुरू में हर कोई आपसे एक बेहतर प्रोफेशनल और अनुशासित होने की उम्मीदें करता है।

कई लोग शुरू-शुरू में सिर्फ आंख मूंदकर कामभर करते हैं। काम करना अच्छी बात है, लेकिन आंख मूंदकर सिर्फ काम करते रहना यह कोई अच्छी बात नहीं है। दफ्तर में प्रभावशाली कर्मचारी साबित होने के लिए न सिर्फ काम करें बल्कि काम की पहल भी करें। नेतृत्व भले शुरू में न मिले, लेकिन अपने व्यवहार और कामकाज से यह दिखाएं कि आप जिम्मेदारियां उठाने को तैयार हैं। अपने बॉस या प्रमुख से पूछें कि क्या मेरा काम संतोषजनक है, साथ ही इसे और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है? याद रखें, इस तरह की पहल आपको विशेष कर्मचारियों का तमगा दिला सकती है। ऑफिस के माहौल पर हमेशा सकारात्मक नजर रखें।

एक बहुत पुरानी कहावत है “बॉस इज आलवेज राइट’। भले ही आपके पास हजारों तर्क हों, यह बात हमेशा सच नहीं होती। लेकिन जब तक यह बात झूठ न साबित हो जाए, तब तक इसे सही ही मानें यानी ऑफिस में हमेशा बॉस या अपने सीनियर व्यक्ति के खिलाफ कोई भी ऐसा कदम न उठाएं, जो आपको किसी तरह से परेशानी में डाल दे। हमेशा बॉस के कदमों को देखकर ही आगे बढ़ें। दरअसल, जिस व्यक्ति के पास अधिकार होते हैं, वह निर्णय लेने के लिए सक्षम होता है। इसलिए उससे बचकर रहना चाहिए। बॉस के साथ कदम मिलाकर चलना सिर्फ उसकी जी-हुजूरी करना भर नहीं है, बल्कि यह कामकाजी दुनिया का व्यावहारिक और प्राथमिक सिद्घांत है। इसलिए बॉस के साथ कदमताल मिलाएं। उसके अधिकारों में हस्तक्षेप किए बिना उसे सुझाव दें और कभी-कभी चुनौतियां भी। लेकिन यह करते समय आपका भाव यह नहीं होना चाहिए कि आप बॉस को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हों।

किसी संस्थान में पहली नौकरी करते समय बहुत बातों का ध्यान रखना पड़ता है। पहले तो यह कि वहां के माहौल में अपने को फिट कैसे करें, फिर यह कि उस माहौल में अपने आपको दूसरों से बेहतर कैसे साबित करें और फिर ध्यान में यह बात रखने की जरूरत होती है कि अपने हितों को बेहतर, विस्तारित और पुख्ता कैसे करें? कई बार इसमें निराशा ही हाथ लगती है। कुछ संगठन बेहद निष्पक्ष होते हैं और उनमें आगे बढ़ने के लिए एक ाम सुनिश्र्चित होता है। लेकिन ज्यादातर पर यह बात लागू नहीं होती। ज्यादातर संस्थानों में प्रमोशन निजी निष्कर्षों के आधार पर होते हैं। इसलिए अपने आगे बढ़ने के मुद्दे पर होमवर्क करें। इससे ऑर्गेनाइजेशन में नेटवर्किंग करने में मदद मिलेगी और यह जानने में भी सहूलियत होगी कि आगे बढ़ने के लिए क्या किया जाना चाहिए। लेकिन एक बात पर गौर फरमाएं, जॉब होपिंग पहली नौकरी के तुरंत बाद न करें यानी पहली नौकरी के कुछ ही दिनों के अंदर नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी ढूंढ़ने की कोशिश न करें, बल्कि कुछ दिन पहली नौकरी में जमें। भले ही नयी नौकरी में बेहतर सहूलियतें और सुविधाएं मौजूद हों।

कुछ लोगों की शिकायत होती है कि इतने दिन से काम करने के बावजूद उनका प्रमोशन नहीं हुआ या कि उनकी तनख्वाह नहीं बढ़ी। दरअसल, पहली नौकरी के बाद जब आप धीरे-धीरे ऊपर बढ़ते हैं या पुराने होते हैं तो आगे बढ़ने के लिए महज सीनियर होने के अलावा जिस एक चीज की और जरूरत महसूस होती है, वह होती है आपकी समझदारी और अपने क्षेत्र के अलावा इससे संबंधित और दूर से संबंध रखने वाले क्षेत्रों का आपको कितना ज्ञान है? दरअसल, सिर्फ अपने काम की एकरस जानकारी बहुत आगे नहीं ले जा सकती। इसलिए अपने काम के इतर भी जानकारी का दायरा बढ़ाएं।

– दिव्यज्योति नंदन

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