भारत के पवित्र पर्वत

sacred-mountains-of-indiaपुराणों में नदियों की तरह पर्वतों को भी पूज्य एवं आदरणीय बताया गया है। दक्षिण भारत के वेंकटगिरि और श्रीशैल को साक्षात् नारायण रूप माना गया है। स्कन्द पुराण में नारायणगिरि, शंखचूड़ पर्वत, शालिग्राम पर्वत, अरुणाचल, सिंहाचल, पारिजात, अज्जनगिरि आदि सभी पर्वतों को भगवान का रूप निरूपित किया गया है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में पर्वतों की पूजा विषयक संपूर्ण जानकारी दी गई है। स्कंद पुराण में अरुणाचल पर्वत को साक्षात् शिव का रूप कहा गया है-

तत्र देवः स्वयं शम्भु पर्वताकारतां गतः।

अरुणाचल के नीचे अरुणाचलेश्र्वर का मंदिर है, जिसका गोपुर संपूर्ण विश्र्व के मंदिरों से चौड़ा है और 10 मंजिल से भी अधिक ऊंचा है। परिामा में चार गोपुर हैं, जो 10-10 मंजिल ऊंचे हैं। इस मंदिर के ऊपर पार्वती जी का भी बहुत बड़ा मंदिर है। वेंकटगिरि में वेंकटेश भगवान या बालाजी का मंदिर है। नीचे कपिल सरोवर है, जिसमें स्नान कर प्रायः 7 किलोमीटर तक पर्वतीय ऊंचाई चढ़नी पड़ती है। ऊपर जाने पर आकाश गंगा, वैकुण्ठ तीर्थ, गोविंदराज मंदिर का दर्शन एवं प्रदक्षिणा के बाद स्वर्ण मंडप, सभामंडप और जगमोहन से चार द्वार आगे बालाजी का दर्शन होता है।

ब्रज में गिरिराज पर्वत की महत्ता भी सर्वविदित है, जिनकी पूजा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों के साथ की थी तथा स्वयं गिरिराज को धारण किया था। आज भी सहस्त्रों नर-नारियां गिरिराज पर्वत को साक्षात् भगवद रूप मानकर परिामा और पूजन करते हैं। इस प्रकार पर्वतों का देवता-रूप या भगवान का स्वरूप होना सिद्ध होता है। उनकी पूजा की परंपरा भी सृष्टि के आरंभ से ही चली आई है। यहां कतिपय मुख्य पर्वतों का  परिचय दिया जा रहा है-

  1. हिमालय यह सभी पर्वतों का राजा है और भारतवर्ष के उत्तर में स्थित है। यह अनेक ऋषि-मुनियों की तपस्थली एवं गंगा, यमुना, सरयू, ब्रह्मपुत्र इत्यादि नदियों का उद्गम स्थल है। भगवान शंकर का निवास स्थान कैलाश भी इसी क्षेत्र में है। पुराणों में इसे पार्वती जी का पिता कहा गया है। पुराणों के अनुसार गंगा और पार्वती इनकी दो पुत्रियां हैं और मैनाक, सप्तश्रृंग आदि सौ पुत्र हैं। हिमालय के प्रांगण में बदरीनाथ, केदारनाथ, मान-सरोवर आदि अनेक तीर्थ तथा शिमला, मसूरी, दार्जिलिंग आदि नगर हैं। यह बहुमूल्य रत्नों एवं औषधियों का प्रदाता है। गौरीशंकर, कंचनजंगा, एवरेस्ट, धौलगिरि, गोसाई स्थान, अन्नपूर्णा आदि उसकी विशिष्ट चोटियां हैं, जो विश्र्व की सर्वश्रेष्ठ चोटियों में गिनी जाती हैं।
  2. विंध्याचल यह भारत का दूसरा महत्वपूर्ण पर्वत है, जो देश को उत्तर और दक्षिण दो भागों में विभक्त करता है। इसमें से ताप्ती, पयोष्णी, निविंध्या, क्षिप्रा, वेणा, कुमुद्वती, गौरी, दुर्गावती आदि अनेक बड़ी नदियां निकलती हैं और इसके अंतर्गत रोहतासगढ़, चुनारगढ़, कलिंजर आदि अनेक दुर्ग हैं तथा चित्रकूट, विंध्याचल आदि अनेक पावन तीर्थ हैं। पुराणों के अनुसार इस पर्वत ने सुमेरू से ईर्ष्या रखने के कारण सूर्यदेव का मार्ग रोक दिया था और आकाश तक बढ़ गया था, जिसे अगस्त्य ऋषि ने नीचे किया। यह शरभंग, अगस्त्य इत्यादि अनेक श्रेष्ठ ऋषियों की तपःस्थली रहा है। हिमालय के समान इसका भी धर्मग्रंथों एवं पुराणों में विस्तृत उल्लेख मिलता है।
  3. पारिजात यह पर्वत सात पर्वतों में विशेष पवित्र है और विंध्य के दक्षिण-पश्र्चिम में स्थित है। इस पर्वत से कालीसिंध, वैत्रवती, चर्मण्वती, साबरमती आदि नदियां निकल कर पश्र्चिम भारत को पवित्र करती हैं। ये सभी नदियां मध्यभारत के पश्र्चिमी भाग तथा गुजरात से विशेष सम्बद्ध हैं। मार्कण्डेय पुराण और विष्णु पुराण के अनुसार यह पर्वत “भरूक’ और “बालव’ क्षत्रियों का निवास स्थान था। मार्कण्डेय जी को इसी पर्वत पर बालमुकुंद का दर्शन हुआ था। मत्स्य पुराण के अनुसार तारकासुर ने इसी पर्वत की कंदरा में कई सौ वर्षों तक निराहार रहकर, पञ्चाग्नि ताप कर अपने अंगों को आग्न में होम कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया था और सात दिन के बालक को छोड़कर अन्य किसी से भी न मर सकने का वर प्राप्त किया था। भगवान श्रीराम की वानरी सेना में इसी पर्वत के बंदर अधिक थे, ऐसा उल्लेख मिलता है।
  4. मलयगिरि यह भारत के दक्षिणी भाग में स्थित है, इसमें से कृतमाला या बेगई तथा उत्पलावली नाम की दो नदियां निकल कर प्रवाहित होती हैं। यह मलयगिरि चोल देश से लेकर सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ है। यहां का मलयगिरि चंदन बहुत ही प्रसिद्ध है और भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय है। महर्षि अगस्त्य इसी पर्वत पर निवास करते हैं। ऐसा श्रीमद्भगवत के छठे स्कंध और मत्स्य पुराण के सातवें अध्याय में वर्णित है। इसका उत्तरी भाग मैसूर को स्पर्श करता है। चंद्रगिरि पर्वत इसके दूसरी ओर है।
  5. महेन्द्राचल महेन्द्रगिरि व महिन्द्राचल भारत वर्ष में दो पर्वत माने जाते हैं। एक पूर्वी घाट पर तथा एक पश्र्चिमी घाट पर स्थित है। वाल्मीकि रामायण का महेन्द्रगिरि पश्र्चिमी घाट पर है। जहां से हनुमान जी कूद कर लंका गये थे। दूसरा महेन्द्रगिरि जो पुराणों में वर्णित है, पूर्वीघाट के उत्तर उड़ीसा के मध्य भाग तक फैला हुआ है। पुराणों के अनुसार यहां परशुराम तीर्थ में स्नान करने से अश्र्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। इस पर्वत की पूर्वी ढाल पर युधिष्ठिर द्वारा निर्मित मंदिर है, जो बड़ा ही आकर्षक है। थोड़ी दूर पूर्व में ही पाण्डवों की माता कुंती का मंदिर है। यहां पर गोकर्णेश्र्वर मंदिर भी स्थित है।
  6. शुक्तिमान इस पर्वत का नाम शक्ति पर्वत है, जो छत्तीसगढ़ के रायगढ़ नामक नगर से लेकर बिहार के डालमा पर्वत तक फैला हुआ है। इसमें अब बहुत से औद्योगिक नगर विकसित हो गये हैं। यह विंध्याचल पर्वत के दक्षिण से लेकर बीच से काटता हुआ सुदूर पूर्व तक चला गया है। इसी की उपत्यका में हीराकुंड, सुंदरगढ़, चाईबासा आदि स्थान तथा औद्योगिक नगर बसे हुए हैं। इस पर्वत से निकलने वाली नदियों में काशिका, शुक्तिमती, मन्दगा, कुमारी आदि मुख्य हैं, पुराणों में इसका वर्णन प्राप्त होता है।
  7. चित्रकूट पुराणों एवं भारतीय धर्मग्रंथों में चित्रकूट पर्वत की महिमा अनेक रूपों में वर्णित की गई है। महर्षि वाल्मीकि ने कहा है कि जब तक मनुष्य चित्रकूट के शिखरों का अवलोकन करता रहता है, तब तक वह कल्याण मार्ग पर चलता रहता है तथा उसका मन पापकर्म में नहीं फंसता और मानसिक आपत्ति से बचा रहता है।

 

– महर्षि डॉ. पं. शीताराम त्रिपाठी

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