मर्यादा का विकृत होता रूप

indian-relationship-dignityसंसार में हमारे रिश्ते-नाते, प्रेम और मित्रता यह सब मर्यादा पर आधारित हैं। मर्यादा मनुष्य का आभूषण है। मर्यादा में जीवन व्यतीत करना बहुत बड़ा तप है। लेकिन वर्तमान में मर्यादा का स्वरूप कितना विकृत होता जा रहा है, यह जगजाहिर है। रिश्तों में काफी परिवर्तन आया है। परिवार से लेकर राष्ट तक के कर्णधारों में भेद-भाव, घृणा और अविश्र्वास का वातावरण फैल रहा है। लगता है, आज कोई क्षेत्र या रिश्ता शेष ही नहीं बचा जो दूषित होने से रह गया हो। आज से 20-25 साल पहले किसी अनैतिक संबंधों या भ्रष्टाचार की शिकायत अखबारों में आती थी तो समाज में भूचाल की स्थिति आ जाती थी। अतीत में रिश्तों पर दाग लगाते किस्से भूले-बिसरे सुनने में आते थे और आज की तुलना में एक बहुत बड़ा अन्तर था कि उस समय के अपराधी के मन में समाज और ईश्र्वर का भय जरूर होता था और कभी न कभी वह अहसास करता था कि यह गलत और अनैतिक है। लेकिन हमारा आधुनिक और उदारवादी समाज यह सब कुछ हजम कर जाता है। किसी को ऐसी खबरों से कोई हैरानी नहीं होती और न रोंगटे खड़े होते हैं। आज आधुनिक संस्कृति ने हर प्रकार की नैतिकता को जर्जर कर दिया है। रिश्ते और विश्र्वास की सभी दीवारों को ध्वस्त कर दिया है। हम आज अपनी आधुनिक तरक्की पर नाज कर सकते हैं, लेकिन अब शिष्ट, मर्यादित और सभ्य समाज के वाशिंदे होने पर गर्व करने का हमारा समय जा चुका है।

आज परिवार से लेकर राष्ट तक के नेताओं तक के विवेक और आचरण की मर्यादा को समझने और पहचानने के लिए महापुरुषों के मार्गदर्शन की आवश्यकता है। परन्तु महापुरुषों से भी हम पूरी तरह से वंचित होते जा रहे हैं। कहने को समाज में बड़े-बड़े कर्णधार विराजमान हैं लेकिन अधिकांशतः अपनी गद्दी जमाने में मशगूल हैं। महापुरुष यानी पर-हितकारी और परोपकारी लोग तमाम विसंगतियों को झेलते हुए समाज और राष्ट का कल्याण करते हैं। महापुरुष और बड़े आदमी में यही बड़ा अन्तर है कि महापुरुष पर-हितकारी होता है और बड़ा आदमी बड़ा स्वार्थी। संभवतः इसीलिए समाज और राष्ट दिशाहीनता की तरफ जा रहा है। अभी हाल ही में संप्रग सरकार द्वारा विश्र्वासमत प्राप्त करने के लिए संसद के नेताओं को नोटों द्वारा खरीदने का प्रयास किया गया, यह सब टी.वी. माध्यम से सबने देखा। यह दृश्य वैसा ही था जैसे लोकतंत्र रूपी द्रौपदी का चीरहरण हो रहा हो और सभी लोग मौन होकर तमाशा देख रहे थे। हमारे समाज और राष्ट की मर्यादा क्या केवल धन और दौलत पर टिकी है? क्या हम गौरवशाली अतीत की समृद्घ परम्परा और रिश्तों की मर्यादा को चांदी के चन्द टुकड़ों से कलंकित करना चाहते हैं?

 

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