विन्सेंट वान गॉग

महान प्रभाववादी चित्रकार विन्सेंट वान गॉग की कारुणिक जीवन कथा कुछ-कुछ वैसी ही है जैसे हमारे महान प्रगतिशील कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की थी। प्रगतिशीलता के शिखर कवि माने गये मुक्तिबोध की कोई भी किताब उनके जीवित रहते नहीं छपी थी। अभाव और अप्रसिद्घि के इसी बियाबान से वान गॉग को भी गुजरना पड़ा था। जिसके चलते जवानी में ही मैनिक डिप्रेशन का शिकार हो उन्होंने अपना ही एक कान काट लिया था।

“येलो चेयर’ और “सनफ्लावर्स’ जैसी विश्र्वविख्यात कलाकृतियों की रचना करने वाले वान गॉग ने अपने छः साल के चित्रकारी जीवन में 700 रेखाचित्र और 800 तैलचित्रों की रचना की थी। लेकिन यह महान चित्रकार अपने पूरे जीवनकाल में महज एक चित्र बेच सका और ताउम्र अभावों में रहा। दूसरी तरफ विडम्बना देखिए कि लगभग एक सदी बाद 30 मार्च, 1987 को उसी वान गॉग की एक कलाकृति “सनफ्लावर’ को लंदन की ााइस्टी संस्था द्वारा 2475 करोड़ पौंड में बेचा गया। इसे दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहा जायेगा कि अपने जीवनकाल में प्रसिद्घि तो छोड़िए, पहचान के संकट से जूझने वाले वान गॉग को आज दुनिया के सर्वकालिक 5 महान चित्रकारों में से एक माना जाता है।

30 मार्च, 1853 को हालैंड के जुन्डर्ट नामक शहर के एक पादरी थियोडोर वान गॉग और उनकी पत्नी एना कार्नेलिया कार्बेन्तस के घर पैदा हुए वान गॉग, अल्प स्कूली शिक्षा ही हासिल कर सके। आजीवन अविवाहित रहने वाले वान गॉग आर्थिक अभावों के बावजूद एन्टान मॉव, पाल गॉग्विन और वैन रेपर्ड जैसे चित्रकारों की संगति में रहे। वान गॉग ने 1869 में द गॉपिल एंड कंपनी में अप्रैन्टिस शुरू की। वह अपने जमाने के एक बड़े चित्रकार पॉल गॉग्रिन से पेरिस में मिले और जब 1888 में आर्लियंस प्रांत में रहने लगे तो गॉग्विन भी उनके साथ आ गये और दोनों ने मिलकर काम शुरू किया। लेकिन जल्द ही दोनों के बीच तनाव पैदा हो गया। इस तनाव के दौरान वान गॉग ने अपना ही एक कान काट डाला और फिर बाद में इस कटे हुए कान के साथ अपना एक पोर्टेट बनाया जो आज हर जगह उनकी तस्वीर के तौर पर इस्तेमाल होता है।

वान गॉग की मृत्यु 37 वर्ष की अल्पायु में 29 जुलाई, 1890 को पेरिस के निकट एवर्ससर में हो गई थी। आजीवन मानसिक कुंठाओं और विपन्नताओं में जीने वाले वान गॉग की कलाकृतियां भावुकता और संवेदनशीलता की चरम परिणतियां हैं।

महान प्रभाववादी चित्रकार विन्सेंट वान गॉग की कारुणिक जीवन कथा कुछ-कुछ वैसी ही है जैसे हमारे महान प्रगतिशील कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की थी। प्रगतिशीलता के शिखर कवि माने गये मुक्तिबोध की कोई भी किताब उनके जीवित रहते नहीं छपी थी। अभाव और अप्रसिद्घि के इसी बियाबान से वान गॉग को भी गुजरना पड़ा था। जिसके चलते जवानी में ही मैनिक डिप्रेशन का शिकार हो उन्होंने अपना ही एक कान काट लिया था।

“येलो चेयर’ और “सनफ्लावर्स’ जैसी विश्र्वविख्यात कलाकृतियों की रचना करने वाले वान गॉग ने अपने छः साल के चित्रकारी जीवन में 700 रेखाचित्र और 800 तैलचित्रों की रचना की थी। लेकिन यह महान चित्रकार अपने पूरे जीवनकाल में महज एक चित्र बेच सका और ताउम्र अभावों में रहा। दूसरी तरफ विडम्बना देखिए कि लगभग एक सदी बाद 30 मार्च, 1987 को उसी वान गॉग की एक कलाकृति “सनफ्लावर’ को लंदन की ााइस्टी संस्था द्वारा 2475 करोड़ पौंड में बेचा गया। इसे दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहा जायेगा कि अपने जीवनकाल में प्रसिद्घि तो छोड़िए, पहचान के संकट से जूझने वाले वान गॉग को आज दुनिया के सर्वकालिक 5 महान चित्रकारों में से एक माना जाता है।

30 मार्च, 1853 को हालैंड के जुन्डर्ट नामक शहर के एक पादरी थियोडोर वान गॉग और उनकी पत्नी एना कार्नेलिया कार्बेन्तस के घर पैदा हुए वान गॉग, अल्प स्कूली शिक्षा ही हासिल कर सके। आजीवन अविवाहित रहने वाले वान गॉग आर्थिक अभावों के बावजूद एन्टान मॉव, पाल गॉग्विन और वैन रेपर्ड जैसे चित्रकारों की संगति में रहे। वान गॉग ने 1869 में द गॉपिल एंड कंपनी में अप्रैन्टिस शुरू की। वह अपने जमाने के एक बड़े चित्रकार पॉल गॉग्रिन से पेरिस में मिले और जब 1888 में आर्लियंस प्रांत में रहने लगे तो गॉग्विन भी उनके साथ आ गये और दोनों ने मिलकर काम शुरू किया। लेकिन जल्द ही दोनों के बीच तनाव पैदा हो गया। इस तनाव के दौरान वान गॉग ने अपना ही एक कान काट डाला और फिर बाद में इस कटे हुए कान के साथ अपना एक पोर्टेट बनाया जो आज हर जगह उनकी तस्वीर के तौर पर इस्तेमाल होता है।

वान गॉग की मृत्यु 37 वर्ष की अल्पायु में 29 जुलाई, 1890 को पेरिस के निकट एवर्ससर में हो गई थी। आजीवन मानसिक कुंठाओं और विपन्नताओं में जीने वाले वान गॉग की कलाकृतियां भावुकता और संवेदनशीलता की चरम परिणतियां हैं।

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