शाहबाज़ शरीफ – छोटे मियॉं सुभान अल्लाह!

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के छोटे भाई शाहबाज शरीफ को पाक-राजनीति का “टारजन’ कहा जाता है। वह पाक अवाम में कम बोलकर अधिक काम करने वाले व्यक्तित्व की छवि रखते हैं। एक अच्छे प्रशासक हैं, काम को करने के विशिष्ट अंदाज के साथ ही उन्हें समस्याओं को सुलझाने में जैसे महारत हासिल है।

पाक की राजनीति के मंच पर वह पहली बार तब उभरे, जब आम चुनाव के बाद 1997 में वे अति महत्वपूर्ण समझे जाने वाले पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री चुने गये। वे 20 फरवरी, 1997 से 12 अक्तूबर, 1999 तक इस पद पर रहे। तब उन्हें परवेज मुशर्रफ द्वारा तख्ता पलट के बाद पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया गया था। अब शाहबाज शरीफ पुनः राजनीतिक कुहांसे से निकल कर पाक की राजनीति के आकाश पर चमकने को व्यग्र नजर आ रहे हैं। उन्हें पुनः पंजाब का मुख्यमंत्री चुन लिया गया है। उन्होंने 371 सदस्यीय पंजाब की असेंबली में 266 वोट हासिल कर विश्र्वास-मत हासिल किया है। इसे राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से लिया गया सच्चा बदला भी कहा जा रहा है। मिलिटरी के बल पर 1999 में पीएमएल (एन) की सरकार को गिराये जाने के 8 साल के बाद शाहबाज पुनः पंजाब के मुख्यमंत्री चुने गये। वे 1999 में छोड़े गये अपने कामों को करने के लिए फिर से तैयार नजर आ रहे हैं। हालॉंकि उनके आगे अभी काफी समस्याएँ मुँह बाये खड़ी हैं। उनकी पार्टी पीएमएल (एन) गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही है, लेकिन उन्हें लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए सत्ता संतुलन को बरकरार रखना होगा। पीएमएल (एन) तथा उनकी सरकार में सहयोगी भागीदार पीपीपी के बीच जजों की बहाली के मुद्दे पर एक राय नहीं है। यदि वे नवंबर, 2007 पूर्व के जजों की बहाली के पीपीपी के स्टैंड को तवज्जो नहीं देते तथा इस संबंध में वकीलों के आंदोलन का खुला समर्थन करते हैं तो पंजाब के राज्यपाल सलमान तसीर भी उनके लिए समस्याएँ खड़ी कर सकते हैं, क्योंकि तसीर भी पुराने पीपीपी नेता रहे हैं और सच्चाई यही है कि उनकी सरकार बिना पीपीपी के समर्थन के नहीं चल सकती। हॉं, यदि मुशर्रफ का दॉंव चला तो वे भी अपने हथकंडे दिखाने से बाज नहीं आएँगे। जिंदगी के खट्टे-मीठे अनुभवों के बाद शाहबाज अब राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी बन चुके हैं। यह बात मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद दिये गये उनके पहले भाषण से नजर आती है। इसमें दिये संकेतों से पंजाब-केंद्र के संबंधों पर भी अच्छा असर पड़ा है। उन्होंने कहा है कि उनके परिजनों को बंदी बनाने व अनेक दुश्र्वारियों के जिम्मेदार रहे राष्ट्रपति से भी वह कार्यगत संबंध रखना चाहते हैं। उन्होंने लोकतंत्र की बहाली के लिए दिये बेनजीर भुट्टो के महान त्याग की भी तारीफ की। विशेषकर पंजाब, जबकि सामान्य रूप से समस्त पाकिस्तान की अवाम ने उनके इस पहले बयान को तहेदिल से गले लगाया है। इस प्रकार शाहबाज शरीफ ने मधुर राजनीतिक संबंधों के एक नये युग की शुरुआत की है तथा इससे पंजाब प्रांत के लोगों को अब अच्छा प्रशासन व बेहतर लोकसेवा मिलेगी। शाहबाज का जन्म सन् 1950 में हुआ। उन्होंने लौहार से स्नातक की उपाधि ली तथा 1985 में वे लाहौर चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष बने। 1988-90 में पंजाब असेंबली के सदस्य रहे। 1993-96 में पंजाब असेंबली के सदस्य बनने के अलावा वे विपक्ष के नेता भी रहे। शाहबाज ने तीन विवाह किये – पहला बेगम नुसरत शाहबाज से 1973 में, जो कि इनके मरहूम पिता मियॉं मुहम्मद शरीफ की रजामंदी से किया गया था। इससे उनके दो पुत्र हमजा व सलमान तथा तीन बेटियॉं हैं। उनकी दूसरी शादी 1993-94 में अलिया हनी से तब हुई, जब वे लंदन में रह रहे थे। उनका तीसरा विवाह प्रख्यात लेखिका तहमिना दुर्रानी से हुआ। दोनों का ही यह तीसरा विवाह था। शाहबाज ने संयुक्त राष्ट्र सहित कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व किया, जहॉं उनके विचारों व वाकपटुता को भी काफी सराहा गया।

सन् 1981 में जेनेवा में हुए अंतर्राष्ट्रीय श्रम-सम्मेलन में दिये गये उनके महत्वपूर्ण भाषण को समस्त विश्र्व के श्रम संगठनों, कार्यकर्ताओं की काफी प्रशंसा मिली थी। राजनीतिक होने के साथ ही एक उत्साही बिजनेसमैन होने के नाते उन्होंने अपने पिता व चाचाओं द्वारा स्थापित की गई इत्तेफाक ग्रुप ऑफ कम्पनीज की सफलता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए, वे राजनीति में प्रवेश कर गये। 1997 में जब वे पहली बार पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री बने थे, तो ढाई साल के कार्यकाल में उनकी सरकार ने पंजाब का विकास कर उसे प्रगति की राह पर डाल दिया था। उन्होंने बहुत से फर्जी स्कूल जो सिर्फ कागजों में ही चल रहे थे, उन्हें बंद कराया। आईटी सेक्टर व विदेशी निवेश का खुले दिल से स्वागत किया। इनकी ही प्रगतिवादी नीतियों के चलते माइाोसॉफ्ट व आरेकल जैसी विदेशी कंपनियों ने पाकिस्तान में काफी पूँजी निवेश की। शाहबाज 3 अगस्त, 2002 को पाकिस्तान मुस्लिम लीग के उस समय अध्यक्ष चुने गये थे, जब वे निर्वासन के दौरान सऊदी अरब में थे। केंद्रीय कार्यकारी समिति ने एक बैठक में उन्हें निर्विरोध चुन लिया था। उन्हें 1999 में सत्ताच्युत करने के बाद मिलिटरी सरकार ने अपने परिवार सहित देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। उन्होंने निर्वासन के दो साल सऊदी अरब में, जबकि 6 साल लंदन में बिताये। इस बीच 11 मई, 2002 को उन्होंने पाकिस्तान वापसी की कोशिश भी की, लेकिन लाहौर के अलामा इकबाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और कुछ घंटे बाद ही पुनः सऊदी अरब भेज दिया गया।

अगस्त, 2007 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने शाहबाज शरीफ व नवाज शरीफ को पाकिस्तान लौटने की अनुमति दे दी। फिर 10 सितंबर, 2007 को उन्होंने पाकिस्तान में वापसी की। शरीफ को उन पर लगे कुछ आरोपों के चलते 2008 के चुनावों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई थी। यद्यपि उन्होंने 26 जून को होने वाले उप-चुनाव के लिए नामांकन भरा था, लेकिन भक्कर विधानसभा क्षेत्र से सभी अन्य उम्मीदवारों के मैदान से हट जाने के कारण शाहबाज को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया। शाहबाज का प्रभावशाली होना पाकिस्तान में राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के लिए एक तरह से खतरे की घंटी है। पंजाब का मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने राष्ट्रपति मुशर्रफ पर हमला बोलते हुए उन्हें “लोगों के हित’ में तुरंत पद छोड़ने को कहा है। पीएमएल (एन) ने तो मुशर्रफ पर महाभियोग चलाने के लिए दस सूत्रीय आरोप-पत्र भी तैयार कर लिया है। शाहबाज शरीफ के जहॉं तक भारत से रिश्ते की बात है तो अपने विजन के कारण वे भारत ही नहीं, अन्य देशों में भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री की लाहौर यात्रा के समय उनके स्वागत समारोह में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

– अनूप गुप्ता

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