सद्गुरु की खुशी

एक राजा का बगीचा बहुत अच्छा था। उसमें उसने दो माली रखे हुए थे। एक माली मेहनती था। वह चुपचाप पेड़ों और फूलों को बड़े प्यार और तवज्जो से रखता था। उनकी कटनी-छॅंटनी किया करता था। दूसरा माली बड़ा आलसी था, किन्तु बातें बहुत करता था और यह दिखाता था कि वह बहुत काम कर रहा है। जब कभी भी राजा बगीचे में आता, काम करने वाला माली चुपचाप सेवा किया करता। कभी-कभी वह फूलों के गुलदस्ते बड़ी नम्रता से राजा को भेंट किया करता। जो दूसरा आलसी माली था, वह राजा के आगे-पीछे आता, नाचता और उसकी तवज्जो पाने का प्रयत्न करता।

अब आप ही बताइये कि राजा किस पर खुश होगा? आप अपने आपको उत्तर दे दीजिए। वास्तव में राजा उसी पर खुश होगा, जो ईमानदारी से मेहनत करके राजा की खुशी प्राप्त करने के लिए कोई हंगामा नहीं करता। इसी तरह से सद्गुरु हमारे अंतर के सब इरादों और प्रयत्न को जानते हैं, क्योंकि हम उनकी आज्ञा के पालन में लगे होते हैं, वे हमारी ईमानदारी को देख रहे हैं। जितना अधिक हम शांति से सेवा करेंगे, दिखावा नहीं करेंगे, प्रेम और नम्रता से रहेंगे। खासकर अध्यात्म की इच्छा को प्रकट करेंगे, उतनी ही जल्दी सद्गुरु की खुशी को प्राप्त कर लेंगे।

 

– संत कृपालसिंह जी

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