सफलता हमेशा कीमत चुकाने के बाद ही मिलती है

इंसान या तो अभी कीमत चुकाए और बाद में मजे करे या फिर अभी मजे कर ले और बाद में कीमत चुकाए। कुछ भी हो, उसे दोनों तरह से कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। दरअसल, यह कीमत कठिन परिश्रम, त्याग या साधना के रूप में चुकानी होती है। इसी के आधार पर व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल करता है। जो व्यक्ति सफलता के मुकाम तक पहुँचना चाहता है, उसे अपने काम के लिए वातावरण बनाने में भी कीमत के रूप में काफी कुछ चुकाना पड़ता है। उसे खुद का परीक्षण करना होता है। खुद से मुश्किल सवाल पूछने होते हैं और सबसे बड़ी बात खुद की परीक्षा में पास होना पड़ता है। यह भी तय करना होता है कि सही काम कौन-सा है, आगे बढ़ने की सही दिशा कौन-सी है।

परिस्थितियां कैसी भी हो सकती हैं- अनुकूल भी और प्रतिकूल भी। ऐसा बहुत कम होता है कि विकास के लिए आदर्श व अनुकूल परिवेश मौजूद हो ही। दुनिया के अधिकांश महत्वपूर्ण काम ऐसे व्यक्तियों ने किए हैं, जो इतने बीमार या व्यस्त थे कि उनसे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती थी। लेकिन इन लोगों ने चुनौतियां स्वीकार की और कामयाब होकर दिखा दिया।

जो लोग दिल व भावनाओं से काम लेते हैं, वे खुद को परिवेश के मुताबिक ढाल लेते हैं या ढल जाते हैं। जबकि चरित्र व दिमाग पर आधारित लोग परिवेश को अपने कार्य के अनुरूप बना लेते हैं। व्यक्तिगत विकास और योग्यता का संवर्धन जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रिया है। सफल व्यक्ति और आम व्यक्ति के बीच यही बड़ा फर्क होता है कि सफल व्यक्ति अपनी क्षमताओं, योग्यताओं का विकास सतत करता रहता है और औसत आदमी यथास्थिति पर जिंदा रहता है।

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