सिंधी कहानी

फायर हुआ और अंधकार में अंगारे की तरह जलती हुई गोली अली के कंधे को छूती हुई गुजर गयी। अली उछलकर अपने मित्र उमर के ऊपर गिरते-गिरते बचा। उमर दीवार की ओट में खड़ा हॉंफने लगा। उसने गर्दन घुमाकर इधर-उधर देखा और अली की बॉंह थाम कर उसे आगे की ओर भागने के लिए कहा।

अभी वे भागने के लिए मुड़े ही थे कि एक और फायर हुआ। गोली दूर से टूटे हुए सितारे की तरह उनके समीप से गुजर कर सामने बरगद के पेड़ के तने में घुस गयी। वे दोनों तेजी से भागे और हॉकी ग्राउंड से आगे पहाड़ी पर बने हुए बंगलों के नीचे पड़े बड़े-बड़े पत्थरों में जा छुपे।

रात अभी अधिक नहीं बीती थी और आकाश से बूंदें टपकने का ाम जारी था। गर्मियों के मौसम में इस शहर का आकाश स्थायी रूप से भूरे रंग में बदल जाता है। मटियाले रंग के बादल आकाश पर एक-दूसरे के पीछे दौड़ते हुए मानो किसी बिछड़े हुए की खोज में प्रयत्नशील रहते हैं। फिर थोड़ी देर के बाद वर्षा के रूप में आँसू बहाकर रो देते हैं। उस रात भी आकाश से बूंदें टपक रही थीं और सजल हवाओं के थपेड़ों से गीले रास्तों पर पुराने बरगद के पत्ते झड़ कर नीचे गिर रहे थे।

वे दोनों बचपन के मित्र हैं। साथ खेल-कूदकर जवान हुए। उमर उसी शहर के एक बड़े अस्पताल में गुर्दा रोग विशेषज्ञ है। उसने कई इनसानों की जान बचाई है। अली ने भी उसी शहर के हृदय रोग के अस्पताल में सैकड़ों मनुष्यों को चलने-फिरने के योग्य बनाया है। वे दोनों शहर के जाने-पहचाने और बड़े डॉक्टर हैं। सारी जिंदगी शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे इस योग्य बने कि रोगी और दुःखी मनुष्यों की सेवा करके उनको कष्टों से मुक्ति दिला सकें।

वे अभी नवयुवक हैं। उनमें काम करने की सोच और उत्साह भरपूर रूप से मौजूद है। दिन भर की थकावट के बाद वे दोनों मनोविनोद के लिए घर से निकले थे। उनकी गाड़ी जब शहर की सबसे लंबी और चौड़ी सड़क से होती हुई, ऊपर मजार की ओर मुड़ी तो कुछ आतंकवादियों ने, जिनकी संख्या सात-आठ थी, सड़क पर बीच में खड़े होकर उन्हें रुकने का संकेत किया। अली, जो गाड़ी चला रहा था, स्थिति को समझ गया। उमर ने उसे सलाह दी कि वह किसी भी अवस्था में गाड़ी न रोके। अली गाड़ी को तेज चलाता हुआ सड़क पर खड़े आतंकवादियों की पंक्ति तोड़कर गुजर गया। गाड़ी जैसे ही आगे बढ़ी, आतंकवादियों ने पीछे से उन पर गोलियां चला दीं। कुछ गोलियां गाड़ी की डिक्की में लगीं और एक गोली गाड़ी के पिछले टायर में, जिससे गाड़ी का संतुलन बिगड़ गया, किंतु अली उसे होशियारी से चलाता हुआ काफी दूर तक ले गया। अंततः गाड़ी रुक गयी। उमर ने तेजी से कार का दरवाजा खोला और दोनों फुर्ती से उसमें से उतरकर भागने लगे।

वे दोनों दौड़ते रहे और गवर्नमेंट कॉलेज से कुछ आगे निकल कर सहायता के लिए इधर-उधर देखने लगे। आकाश से बूंदें धीमी-धीमी गति से बरस रही थीं। सड़क दूर-दूर तक गीली हो चुकी थी। उसके किनारे पर कहीं-कहीं छोटे-छोटे तालाब भी नजर आ रहे थे। सड़क पर टैफिक आम दिनों से कम था। आतंकवादियों की फायरिंग से आसपास की सड़कें भी सुनसान हो चुकी थीं। कभी-कभी कोई गाड़ी भय और दहशत से उस सड़क पर तेजी से गुजर जाती अन्यथा वातावरण में निस्तब्धता छायी हुई थी।

उमर और अली दौड़ते हुए चौक पर बने हुए लाल पत्थरों वाले ऐतिहासिक भवन के समीप पहुँचे, तो गोलियॉं उनके पैरों को छूती हुई पत्थरों से टकराईं। पत्थरों के कण रुई की तरह उड़कर दूर जा गिरे। वे दोनों बच गये। उन्होंने लाल पत्थरों की दीवार से टेक लगाकर पीछे देखा। दूर से सात-आठ आतंकवादी जिनके हाथों में आधुनिक अस्त्र थे, दौड़े चले आ रहे थे। उमर और अली दीवार के साथ-साथ भागते हुए, भवन की दायीं ओर बढ़े।

“”अली…, मोबाइल दो मुझे…” उमर ने तेजी से दौड़ते हुए कहा। अली ने अपना मोबाइल निकाल कर उसकी ओर बढ़ाया।

“”नम्बर मिलाओ….” अली ने हॉंफते हुए कहा, “”वे पहुँचने वाले हैं।”

उमर ने निरंतर दौड़ते हुए मोबाइल पर अपनी उंगलियॉं चलायीं, फिर उसे कान पर रख दिया, “”हेलो!” संपर्क मिलते ही उसने जल्दी से कहा। फिर वह पुलिस को सारा ब्योरा बताने लगा। उसने बताया कि वे डॉक्टर हैं और कुछ आतंकवादी उनकी हत्या करने के लिए उनका पीछा कर रहे हैं। यदि पुलिस जल्दी नहीं पहुँची तो वे उनका निशाना बन जाएँगे। उसने पुलिस को उस स्थान से भी अवगत किया, जहॉं वे उस समय मौजूद थे। पुलिस ने उमर को हौसला दिया और जल्दी पहुँचने का कहकर फोन रख दिया।

उमर ने मोबाइल वापस कर दिया और गर्दन घुमाकर पीछे की ओर देखा। पेड़ों के पीछे से आतंकवादियों की टोली उसे अपनी ओर बढ़ती हुई नजर आई, क्योंकि वह पीछे की ओर देखते हुए आगे बढ़ रहा था, सहसा उसका पांव वर्षा के कारण बने कीचड़ में फिसला और वह संतुलन कायम न रख सका। जैसे ही घुटनों के बल गिरा, एक गोली चली और उसके बालों को छूती हुई गुजर गयी। अली भय से एकदम नीचे की ओर झुका। उसने उमर का हाथ थाम कर उसे उठने में सहायता की।

वे दोनों बूंदाबांदी से गीले हो चुके थे। उनके कपड़े मानो भय से उनके शरीर से चिपक गये थे। सजल ठंडी हवा के झोंकों से उन्हें सर्दी-सी होने लगी या फिर शायद यह मौत का भय था, जिसने उनके शरीर से गर्मी छीन ली थी।

उस शहर में दो मासूम इन्सानों की हत्या होने वाली थी और शहर नित्य के अनुसार प्रवाहमान था। सहसा होने वाली फायरिंग के कारण आसपास की कुछ सड़कों के सिवा पूरे शहर में गाड़ियों का यातायात अपने यौवन पर था। विंड सीन पर पड़ने वाली वर्षा की बूंदों के साथ गाड़ियों के वाइपर, डेक की कोलाहलपूर्ण आवाज पर मस्ती से झूम रहे थे। रात में भी सड़कों पर उजाला था। होटल और पब कहकहों से गूंज रहे थे।

वे हॉंफ रहे थे। वर्षा का पानी उनके माथे पर पसीने की तरह बह रहा था। वे दौड़ते हुए एक मुहल्ले में पहुँचे, जो कब्रिस्तान की तरह निःस्तब्ध था। वहॉं की खिड़कियॉं और दरवाजे सर्दी के कारण बंद थे। शहर के उस सरकारी मुहल्ले के हर घर में पीपल और बरगद के पेड़ थे। उन्होंने आगे बढ़कर बरगद की लटकती हुई जड़ों को थाम लिया। उन्हें ऐसा अनुभव हुआ, जैसे उनके हाथों ने शासकों के गरेबान पकड़ लिए हों ।

बरगद की लटकती हुई जड़ों से पानी की बूंदें टपक रही थीं। उन्होंने सहायता के लिए भी पुकारा, किंतु सब व्यर्थ… दोनों निराश हो गये। इससे पूर्व कि आतंकवादी उनके समीप पहुँचते, वे एक बार फिर भाग खड़े हुए।

उनके और आतंकवादियों के बीच फासला ामशः कम होने लगा था। आतंकवादी अस्त्रों को झंडे की तरफ हवा में लहराते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे। वर्षा की बूंदों के बीच आतंकवादियों के अस्तित्व धुंधले और अस्पष्ट नजर आ रहे थे। वे मौत की काली आकृतियों की तरह उनका पीछा कर रहे थे।

उमर और अली सरकारी मुहल्ले से भागे। वे किसी ऐसी जगह की तलाश में थे, जहॉं छुपकर अपने प्राण बचा सकें। अभी वे जगह की तलाश में इधर-उधर भटक ही रहे थे कि सड़क के समीप लगे टांसफार्मर पर वर्षा की बूंदें गिरने के कारण उसमें से चिंगारियॉं निकलने लगीं। फिर एक धमाके से वह फट गया। अकस्मात् चारों ओर अंधकार छा गया। मानो निराशा से मौत के फरिश्ते की आँखें बंद हो गयीं।

वे दोनों अंधकार का लाभ उठाकर दायीं ओर मुड़े। निकटवर्ती पहाड़ी पर कई घर बने थे। वे चट्टानों के पीछे छुप गये। अंधकार में कई गोलियॉं चलीं, जो उनसे काफी फासले पर चिंगारियॉं उड़ाते हुए जमीन में जा धंसीं और सजल धरती से धूल उड़कर चारों ओर फैल गयीं। उन्हें विश्र्वास हो गया कि वे आतंकवादियों के निशाने से दूर और उनकी नजरों से ओझल हैं। कुछ ही क्षणों बाद आतंकवादी भारी बूटों के साथ दौड़ते हुए, उस चट्टान के सामने से गुजरे, जिसके पीछे वे शरण लिए हुए थे। धीरे-धीरे आतंकवादियों के बूटों की आवाज दूर होती चली गयी। उन दोनों की जान में जान आयी। चट्टान से टेक लगाकर उन्होंने आँखें बंद करके गहरी सांस ली। पहली बार उन्हें अपने चेहरे पर पड़ने वाली वर्षा की बूंदों का अहसास हुआ। अली ने अपनी जेब से गीला रुमाल निकालकर चेहरा साफ किया। उन्हें इस बात का खेद हो रहा था कि इतनी देर गुजर जाने के बावजूद अभी भी पुलिस नहीं पहुँची।

अली ने जल्दी से दोबारा मोबाइल निकाला और अपने एक मित्र का नंबर मिलाकर उसे सारा किस्सा बताते हुए कहा कि वह किसी जिम्मेदार उच्चाधिकारी को इसकी सूचना दे ताकि वह उनके प्राण बचाने के लिए आ सके।

दोनों ने वहॉं से निकलना ठीक नहीं समझा। वे वहीं छुपे रहे। आतंकवादी उन्हें तलाश करते हुए काफी आगे निकल गये। किंतु वे भय और थकावट के कारण वहीं दुबके रहे।

“”अली, इस शहर के लोग कितने संज्ञाहीन हैं… कितने बेदर्द हैं।” उमर ने बड़े खेद से कहा, “”इस कठिन समय में क्या कोई भी ऐसा इनसान नहीं है, जो आगे बढ़कर हमारी मदद करे।” अली की आँखों में भय और दहशत थी। वह चुपचाप बैठा गहरी सांसें ले रहा था।

“”इस शहर के लोगों ने इतने कत्लेआम देखे हैं कि … उनके लिए किसी भी इनसान के कत्ल के कोई मायने ही नहीं हैं। “”यह संज्ञाहीनता, यहॉं एक आम परंपरा में बदल चुकी है।” अली ने दबी आवाज में कहा और इसके बाद दोनों कुछ देर चुपचाप बैठे अंधेरे आकाश में दौड़ते हुए भूरे बादलों को देखते रहे। वर्षा की बूंदें उनके चेहरे और शरीर पर गिरती रहीं।

“”अली, हमें इस देश में नहीं आना चाहिए था। जिस देश में कानून का रखवाला न हो, वहॉं भला कोई किस प्रकार सच्चाई के साथ लोगों की सेवा कर सकता है? जहॉं अपने ही प्राण संकट में हों, वहॉं किसी और के प्राण किस प्रकार बचाए जा सकते हैं? …” उमर के स्वर में अति निराशा थी। उसने गहरी सांस लेकर अली के कंधे पर अपना सिर टिका दिया।

अली की आँखों से निकले आंसू चेहरे पर पड़ने वाली वर्षा की बूंदों में मिल गये।

“”हॉं, उमर! तुम ठीक कह रहे हो। यह देश और यहॉं का कानून केवल आतंकवादियों की रक्षा करता है। इस देश में शरीफ आदमी के लिए कोई जगह नहीं है।” कहते हुए अली भावुक हो गया।

केवल आकाश नजर आ रहा था। पूरे बादल आकाश पर मानो उनकी तरह किसी जगह की तलाश में दौड़ रहे थे। बूंदा-बांदी जारी थी। उन लोगों ने जब महसूस किया कि आतंकवादी बहुत आगे निकल गये हैं, तो वे हिम्मत करके उठे और एक-दूसरे का हाथ थाम कर बाहर निकल आये। वे आतंकवादियों की विरोधी-दिशा में सड़क पर तेज-तेज कदमों से दौड़ने लगे। उनका ख्याल था कि अब वे आतंकवादियों से बहुत दूर निकल गये हैं।

वर्षा की पहली बूंद उस शहर के टांसफार्मर के लिए गोली का काम करती है। धमाके से रोशनियां उड़ जाती हैं। दोनों अंधकार का लाभ उठाकर सड़क के किनारे लगे हुए पेड़ों और पौंधों की ओट में छुपते-छुपाते किसी जगह की तलाश में आगे बढ़ते रहे। दोनों पुल से गुजरकर एक शहीद के नाम के वाबस्ता बाग के निकट पहुँचे। एक बार फिर उन्होंने भारी बूटों की आवाज सुनी। वे जल्दी से सड़क के किनारे बनी हुई नर्सरी के पौधों के पीछे छुप गये। पौधों के पत्तों और फूलों के बीच से उन्होंने देखा कि वही आंतकवादी उन्हें तलाश करते हुए उनकी ओर बढ़ रहे हैं।

“”अली! शायद वे इसी ओर आ रहे हैं।” उमर ने भय से कांपती हुई आवाज में कहा।

अली का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने उमर को दिलासा देते हुए कहा, “”शायद उन्होंने हमें देखा नहीं है।” उसकी आवाज में कुछ निश्र्चिंतता थी।

फिर वे खिसकते हुए घने पौधों के पीछे चले गये। आतंकवादी उनके समीप आ गये थे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि अभी वे उनके सिर पर आ खड़े होंगे। वे सांस रोके उनकी गतिविधियों को देखने लगे। आतंकवादियों के आधुनिक अस्त्र और कीचड़ में पुते बूट उनसे कुछ ही फासले पर मौजूद थे। आतंकवादी नर्सरी के पास पहुँच कर रुक गये और इधर-उधर उन्हें तलाश करने लगे। अली और उमर को उनके चेहरे नजर आ रहे थे। उन्होंने महसूस किया कि सचमुच हर अत्याचारी का चेहरा विकृत और दागदार होता है।

वे कुछ देर तक उन्हें तलाश करते रहे। फिर बायीं सड़क की ओर चले गये। उनके जाने के बाद उमर और अली के धड़कते हुए दिल-दिमाग कुछ सामान्य हुए। उन लोगों ने गहरी सांस ली और थोड़ी देर के बाद नर्सरी से बाहर निकलकर सड़क की बायीं ओर आगे बढ़ने लगे। अंधकार इतना गहरा था कि जमीन पर बने हुए छोटे-छोटे तालाबों में गिरने वाली वर्षा की बूंदों से बनने वाले दायरे नहीं देखे जा सकते थे। उनके निराश हृदय जोर से धड़क रहे थे और वे अपने प्राणों की रक्षा के लिए ईश्र्वर से प्रार्थना कर रहे थे। उन्हें विश्र्वास था कि मारने वाले से बचाने वाला अधिक शक्तिशाली है। उनका अंतिम सहारा कोई और नहीं केवल ईश्र्वर ही है, जो अब तक उनकी रक्षा कर रहा है।

वह शहीद के नाम से वाबस्ता बाग की दायीं ओर बढ़े। जब वह चौड़ी सड़क पर पहुँचे तो उनके विस्मय की सीमा न रही। उन्होंने देखा कि वही आंतकवादी सड़क की दूसरी ओर काफी कम फासले पर मौजूद हैं। दोनों के पैरों तले से जमीन निकल गयी। वे तत्काल पलटे और भागे। सहसा आतंकवादियों की नजर उन पर पड़ गयी। गोली का धमाका हुआ और एक बार फिर गोली चिंगारी उड़ाती अंधकार में गुम हो गयी। वे दौड़ते हुए, सड़क से एक पतली गली में प्रवेश कर गये। आतंकवादी भारी बूटों के साथ उन्हें ललकारते हुए पीछे आ रहे थे।

उमर और अली एक बार फिर किसी शरण स्थान की तलाश में दौड़ पड़े। उन्हें अनुभव हुआ, जैसे पूरा शहर खंडहर में बदल चुका है। उस शहर के सभी दरवाजे तबाह हो चुके हैं। यहॉं कोई शरण-स्थल नहीं है। यहॉं के लोग मानो किसी प्रलय का शिकार होकर विनाश के घाट पर उतर चुके हैं और चौक पर मौजूद भूखे कुत्ते यहॉं के शासक हैं।

वे दोनों भागते रहे और दिल ही दिल में ईश्र्वर को याद करते रहे। वर्षा के पानी में उनके पड़ने वाले कदमों की आवाज यह गवाही दे रही थी कि वे जिंदा हैं। उन्हें महसूस हुआ जैसे उनकी सारी शक्ति कदमों में जमा हो चुकी है। वह प्राण बचाने के लिए दौड़ते रहे।

आतंकवादियों ने कुछ फासले तक उनका पीछा किया।

उमर और अली ने एक बार फिर अनुभव किया कि वे आतंकवादियों से दूर निकल गये हैं। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा। सड़क दूर तक सुनसान पड़ी थी। पेड़ों के पत्ते वर्षा के पानी से गीले होकर जमीन से चिपक गये थे। उन्होंने गहरी सांस ली, किंतु अब भी भय वर्षा की बूंदों की तरह उनके मन में चुपचाप बरस रहा था। वे दोनों बेहद घबराए हुए थे और सोच रहे थे कि काश! कहीं उनके लिए कोई शरण-स्थल मिल जाए जहॉं वे स्वयं को छुपा सकें।

“”ऐसा महसूस होता है जैसे इस शहर में हमें बचाने वाले आतंकवादियों का शिकार होकर खत्म हो गये हैं।” अली ने हांफते हुए कहा।

“”समझ में नहीं आता, आखिर इस भागदौड़ का अंत कहॉं होगा?” उमर ने आगे बढ़ते हुए निराशा से कहा।

वे लोग विशाल सड़क पर पहुँचकर इधर-उधर देखने लगे। वहॉं कोई नहीं दिखा। रात खासी गहरी हो चुकी थी। वर्षा और अंधकार में भय चुपचाप सोया हुआ था। उन्होंने गर्दन घुमाकर पतली गली की ओर देखा। वहॉं भी अंधकार था। उन्होंने सोचा कि शायद आतंकवादी उन्हें तलाश करते हुए भटक गये हैं। इससे पहले कि वे दोबारा उनके सामने आ जाएँ, कोई ऐसी जगह तलाश कर लेनी चाहिए, जहॉं रात का शेष भाग बिताकर अपना जीवन बचा सकें।

सड़क की दूसरी ओर एक पूजा-घर का दरवाजा खुला देखकर उन्हें विस्मय हुआ। साथ ही उनके मन में हर्ष की लहर भी उभरी। उन्होंने सोचा, ईश्र्वर के घर से बेहतर इनसान के लिए कोई शरण स्थल नहीं है। वे दोनों पूजा-घर के समीप पहुँचे। वहॉं पहुँचकर कीचड़ से लथपथ जूते उतारे और उन्हें एक ओर रख दिये। उन्होंने वहॉं चारों ओर दृष्टि डाली। कुछ लोग पंक्तियों में बैठे धार्मिक पुस्तक का पाठ कर रहे थे। इन दोनों को कुछ राहत महसूस हुई। उन्होंने सोचा कि वे भी उनकी तरह पूजा-घर में बैठकर धार्मिक पुस्तक का अध्ययन करते हुए रात बिता देंगे।

उन्होंने मन ही मन ईश्र्वर का धन्यवाद किया, जिसने उनके प्राण बचाने में मदद की। दोनों ने धार्मिक पुस्तक ले ली और उसका पाठ करने लगे। वे लोग भय के कारण रह-रह कर गर्दन घुमाकर पूजा-घर के बाहरी दरवाजे की ओर भी देख रहे थे। उन्हें धार्मिक पुस्तक का पाठ करते हुए खासा समय बीत गया। उनके मन में बसा भय समाप्त हो चुका। वे दिल में शांति और शरीर में आराम महसूस करने लगे। उन्हें यह सोचकर प्रसन्नता होने लगी कि वे खतरे से बाहर निकल आये। सहसा अली और उमर ने अपने इर्द-गिर्द नजरें डालीं, तो उनके चेहरे भय से सफेद पड़ गये। धार्मिक पुस्तक पकड़ने पर भी उनके हाथ कंपकंपाने लगे। उन्होंने देखा… उनके दायें-बायें बैठे हुए लोग, जिनके सामने धार्मिक पुस्तकें हैं, वही आतंकवादी हैं, जो उनका पीछा कर रहे हैं। उमर और अली की आँखों से खून के आंसू बहने लगे, जो हाथों में थमी धार्मिक पुस्तकों में जज्ब हो गये।

– अनुुवाद – सुरजीत

– रसूल मेमन

अनुवाद – सुरजीत

– रसूल मेमन

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