सोने की तीन पुतलियॉं

three-idolsराजा भोज की सभा में एक कारीगर सोने की तीन पुतलियॉं बनाकर लाया। वह चाहता था कि सभा में उन सभी पुतलियों का अलग-अलग एवं उचित मूल्य तय हो। सभी ने उन्हें तोला-जोखा, निरखा-परखा, पर किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि जब सोना सब में बराबर है, तब कीमत में अन्तर क्यों? अन्त में प्रधान सचिव कालिदास ने एक लम्बी सलाई मॅंगाकर उन तीनों के ही कान में अलग-अलग डाली। एक पुतली के इस कान में सलाई डाली तो उस कान से निकल गयी। दूसरी के कान में डालने पर मुँह में से बाहर आयी। तीसरी के कान में डालते ही सीधी हृदय में चली गयी।

कालिदास ने कहा – ये पुतलियॉं हमें संकेत देती हैं कि कुछ श्रोता प्रथम पुतली के साथी होते हैं जिनके इस कान में पड़ा हुआ उपदेश उस कान से बाहर निकल जाता है। उनकी कीमत सवा कौड़ी की है। कुछ के उपदेश कान से होकर मुँह से निकल जाता है, अर्थात् वक्ता की प्रशंसा कर देते हैं, कुछ भी सुधार नहीं अपनाते। उनका मूल्य दूसरी पुतली की तरह सवा रुपये का है। तीसरे के कान में डाला हुआ उपदेश दिल में जा जमता है। उसकी कीमत सवा लाख की है। सभी इस निर्णय से परम प्रसन्न थे।

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