स्वामीभक्त नेवला

mongooseएक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। उसके घर पुत्ररत्न ने जन्म लिया। बच्चा बेहद खूबसूरत था। ब्राह्मण-ब्राह्मणी की आँखों का तारा। ब्राह्मण ने एक नेवली भी पाल रखी थी। संयोगवश उसने भी एक बच्चे को जन्म दिया। नेवली कुछ समय बाद मर गई तो ब्राह्मण और उसकी पत्नी नेवली के बच्चे को भी अपने पुत्र की तरह पालने लगे। धीरे-धीरे नेवला बड़ा हो गया। घर-बाहर वह उछलता-कूदता रहता। बच्चा उसे देख खुश होता था।

पर ब्राह्मण की पत्नी के मन में एक शंका घर कर चुकी थी कि किसी दिन नेवला उनके पुत्र को कोई हानि न पहुँचा दे। वह सावधान रहती थी और बच्चे को अकेला कभी नहीं छोड़ती थी।

एक दिन ब्राह्मणी कुएं से पानी लेने जा रही थी। उसने अपने पति से कहा, “”मैं पानी लेने कुएं तक जा रही हूं। बच्चा पालने में सो रहा है। आप नेवले पर कड़ी ऩजर रखें।”

ब्राह्मण ने कहा, “”प्रिये, नेवला बहुत बड़ा स्वामीभक्त होता है। तुम उसकी िाक मत करो।” जैसे ही ब्राह्मण की पत्नी गई, एक व्यक्ति आया और बोला, “”पंडित जी, गांव के मुखिया ने खास परामर्श के लिए आपको बुलाया है। आप तुरंत चलें। मसला महत्त्वपूर्ण है।”

ब्राह्मण ने कहा, “”मेरी पत्नी कुछ समय के लिए बाहर गई है। मैं कुछ देर में ही उपस्थित हो पाऊँगा।” पर मुखिया के दूत ने जल्दी चलने का आग्रह किया तो ब्राह्मण अपने बच्चे को नेवले की रखवाली में छोड़कर उसके साथ चला गया। उसे भरोसा था कि नेवला उसके बेटे का ख्याल रखेगा।

उसी समय एक काला नाग घर में घुस आया और पालने की ओर सरकने लगा। नेवला वहॉं मौजूद था। वह नाग के सामने आ डटा। दोनों में भयंकर युद्घ छिड़ गया और नाग नेवले के हाथों मारा गया। कुछ समय बाद ब्राह्मण की पत्नी पानी का घड़ा लेकर आई। उसके पांवों की आहट सुन कर स्वाभीभक्त नेवला घर के दरवाजे की ओर दौड़ा। वह मालकिन को खुश करना चाहता था।

पर ब्राह्मण की पत्नी वास्तविकता को समझ न सकी। उसने ज्यों ही नेवले के पंजे और मुंह पर खून लगा देखा, वह कांप उठी। उसने गुस्से में पानी से भरा घड़ा नेवले पर दे मारा। नेवले ने वहीं दम तोड़ दिया। लेकिन जब वह अंदर गई, तो लाड़ले बेटे को मीठी नींद में डूबा पाया। पालने के पास ही काला नाग मरा पड़ा था। फर्श पर खून के छींटे देखकर ब्राह्मणी सारा माजरा समझ गई और शोक से बेहाल हो गई। अब वह पछताते हुए आँसू बहा रही थी।

नेवले की मृत्यु पर ब्राह्मण भी दुःखी था। वह बोला, “”तुमने मेरी बात पर कभी भी ध्यान नहीं दिया। यदि ऐसा कदम उठाने से पहले वास्तविकता जांच लेती, तो नेवला कभी नहीं मारा जाता।” पर अब पछताए होत क्या…।

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