आँख डबडबाई है – माधवी कपूर

फिर से गहराये सुरमई बादल

फिर हवाओं में नमी आयी है

क्या कोई आँख डबडबाई है

 

कौन गुजरा करीब होके अभी

किसका साया-सा झिलमिलाया है

किसकी आँखें ये शबनमी-सी हुईं

किसने आवाज़ दे बुलाया है

जाने वाले ने यह नहीं सोचा

दिल कोई आईने सा टूटेगा

कैसे गुजरेंगे पहाड़ों से दिन

कैसे दामन ग़मों से छूटेगा

 

जब कभी हरसिंगार झरते हैं

ऐसा लगता है कोई रोया है

जूही के फूल की भीनी ख़ुशबू

जैसे कोई फेर के मुँह सोया है

 

ऐ ग़म-ए-जिंदगी दुआ है तेरी

कितने दुःख सह के लोग जीते हैं

जाने कितने फ़रेब के प्याले

एक-दूजे से लेके पीते हैं

 

नीली होने लगीं रगें अब तो

ये ज़हर कब तलक छिपाएंगे

चाक होता है गला अपनों से

कैसे ग़ैरों को यह बताएँगे

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