अधिकार की रोटी

Adhikar Ki Rotiएक राजा था। उसके यहॉं एक दिन एक ब्राह्मण आए। उन्होंने राजा से अनेक विषयों पर चर्चा की। प्रसंगवश अधिकार की रोटी की बात आ गई। राजा ने पूछा, “”स्वामीजी, अधिकार की रोटी क्या होती है?”
ब्राह्मण ने ज़वाब दिया, “”राजन! तुम्हारे नगर में अमुक जगह पर एक बुढ़िया रहती है। वही इसका उत्तर दे सकती है। उसी के पास जाओ और उससे अधिकार की रोटी का उत्तर मॉंगो।”
राजा बुढ़िया की तलाश में चल पड़ा। ढूंढते-ढूंढते उसे वह बुढ़िया मिल गई। वह एक झोंपड़ी में बैठी चरखे पर सूत कात रही थी। राजा उसके सामने खड़ा होकर बोला, “”माई, अधिकार की रोटी क्या होती है? मैं आज आपसे उसी का उत्तर लेने आया हूँ।”
बुढ़िया ने राजा को पहचान कर कहा, “”मेरे पास एक रोटी है। उसमें आधी अधिकार की है, आधी बिना अधिकार की है।”
राजा की समझ में कुछ नहीं आया। उसने कुतूहलवश बुढ़िया की ओर देखते हुए कहा, “”यह तुम क्या कह रही हो! साफ-साफ बताओ कि यह क्या है?”
बुढ़िया बोली, “”एक दिन मैं यहॉं बैठी सूत कात रही थी। सूत कातते-कातते दिन ढल गया था। चारों तरफ अंधेरा फैल गया था, तभी यहॉं से होकर एक जुलूस गुजरा। उसमें मशालें जल रही थीं। मैं अपना चिराग न जलाकर आधी पूनी, मशालों की रोशनी में सूत कातती रही। आधा पहले कात चुकी थी। उस सूत को बेचकर आटा खरीद लाई। आटे की रोटी बनाई। इस तरह आधी रोटी मेरे अधिकार की थी, आधी बे-अधिकार की। उस पर मेरा नहीं, जुलूस वालों का अधिकार था।”
बुढ़िया की बात सुनकर राजा चकित रह गया। उस अनपढ़ बुढ़िया की अधिकार से संबंधित धर्म की बात सुनकर राजा का सिर श्रद्धा से झुक गया।

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