बच्चे की जान

Bacche Ki Jaanडॉक्टरी इलाज, गंडा-ताबीज और पूजा-पाठ सभी ने उन्हें पिछले आठ सालों से निराश ही किया। मन मारकर ही सही, धीरे-धीरे उन्होंने बच्चा गोद लेने की ठान ली। थोड़ा खर्च करो तो अनाथालय से स्वस्थ्य-सुंदर ऊँची नस्ल का बच्चा, वह भी लड़का आसानी से मिल सकता है। इसी आशा में वे दंपत्ति आश्रम पहुँचे। पति मैनेजर से बातें करने लगा और पत्नी वहॉं पालनों में से अपनी मनपसंद का बच्चा देखने लगी।

उसकी नज़र एक तीन-चार माह के बच्चे पर पड़ी। बच्चा गोल-मटोल स्वस्थ व सुंदर था। वह उसकी ओर ही देख रहा था। वह मुस्कुराई। बच्चा भी मुस्कुराने लगा। बच्चे को देखते हुए वह बोली, “”ज़रा सुनिये, इधर आइए। हमें यही बच्चा गोद लेना है। देखो, मेरी ओर कैसे देख रहा है। मानों मैं ही उसकी मॉं हूँ। इसे देख मेरी छाती भी धड़क रही है। हम गोद लेंगे तो इसे ही लेंगे।” वह रोमांचित हुए जा रही थी।

पति ने देखा, उसे भी बच्चा जंच गया। मैनेजर भी उनके पीछे आकर कहने लगा, “”बहुत अच्छा बच्चा है। रख लीजिये। अभी कुछ दिन पहले ही एक दंपत्ति इसे गोद लेने आये थे। उन्होंने डॉक्टरों से कई तरह की जॉंच भी करायी थी। बच्चे में कोई बीमारी नहीं निकली। बच्चा स्वस्थ्य, दीर्घायु और अच्छे आई-क्यू वाला निकला। बड़ा ज़हीन और किसी ऊँचे खानदान का है। वे तो इसे ले भी जाते। मगर तभी उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी गर्भवती है। सो फिर नहीं ले गये। जाते-जाते आश्रम को पॉंच हजार दान कर गये है।’ “”हम दस हजार रुपये दान में देंगे। काश! हमारी भी किस्मत उनके जैसी निकले।” पत्नी बोली, “”देखिए, मैनेजर साब, ये बच्चा हम ही गोद लेंगे। मगर एक महीने बाद।” “”आज नहीं, एक महीने बाद? देखिए साब, बच्चा बड़ा सुंदर, ज़हीन और ऊँचे खानदान का है। ऐसे बच्चे ज्यादा दिन आश्रम में टिकते नहीं है। कौन छोड़ता है, ऐसे बच्चे को?”

“”नहीं-नहीं, इसे किसी और को मत देना। हमें यही बच्चा गोद लेना है।” पत्नी के कहने पर पति ने मैनेजर को समझाते हुए कहा, “”बात ऐसी है मैनेजर साब कि यूँ तो हम जानते हैं कि हमारे नसीब में खुद के बच्चे का सुख नहीं है, मगर बंबई के एक डॉक्टर ने हमारी जॉंच कर एक आखिरी उम्मीद दिलाई है कि हमारी रिपोर्ट यदि पॉजिटीव आती है, तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। एक महीने में रिपोर्ट आ जाएगी, शायद… तब तक ये बच्चा आपके पास हमारी अमानत है।” उसने अपनी जेब से कुछ नोट निकाल कर मैनेजर के हाथ देते हुए कहा, “”ये रख लीजिए। आश्रम के बच्चों के लिए।”

“”ठीक है, मैं किसी न किसी तरह एक महीना निकाल ही लूँगा। मगर आप भी ज्यादा देर न करें। ऐसे बच्चों की ही तलाश में कई दंपत्ति यहॉं आते ही रहते हैं।”

दोनों चले गये। जाते-जाते पत्नी ने फिर बच्चे की तरफ देखा। बच्चा अब भी उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रहा था। पत्नी ने बच्चे के गाल थपथपाते हुए, एक महीने बाद आने का भरोसा दिया।

एक महीना देखते-देखते ही बीत गया। बंबई से फाइनल रिपोर्ट भी आ गई। रिपोर्ट निगेटिव निकली। “”मैं तो जानता ही था। हमारे नसीब में गोद का ही बच्चा लिखा है।” रिपोर्ट पर नज़र डालते हुए पति ने कहा। पत्नी कुछ देर तक तो आँखों में आँसू लिए उदास बैठी रही। फिर कुछ सहज होकर बोली, “”चलो, जल्दी चलो। हमें वही बच्चा गोद लेना है। कहीं ऐसा न हो, उसे कोई ले जाए!” दोनों झट से कार में सवार हो गये। आश्रम में पहुँचने पर पति मैनेजर के कमरे की ओर गये और पत्नी तेजी से बच्चे की ओर दौड़ पड़ी। बच्चा अब भी उसी पालने में लेटा हुआ था।

उसने बच्चे को अपने सीने से लगा लिया। सजल आँखों से उसकी ममता बहने लगी। “”देख, तेरी मॉं आ गई न तेरे पास। मैं जानती हूँ, तू ही मेरा बेटा है। मैं तेरी मॉं हूँ। मुझे मॉं कहेगा न बोल मॉं…. बोल मॉं….।”

“”नहीं, तुम मेरी मॉं नहीं हो।” बच्चे ने तुनक कर कहा। वह कुछ उदास हो गई। फिर बोली, “”ऐसा नहीं कहते बेटे। मैं तेरी मॉं हूँ। बोल मॉं….।”

“”नहीं, कह दिया न, कि तुम मेरी मॉं नहीं हो। अगर तुम मेरी मॉं होतीं तो मुझे एक महीने पहले ही ले जातीं। उसी दिन जब तुम्हारी छाती धड़की थी। मेरी भी धड़की थी। तब क्यों नहीं ले गईं मुझे? बोलो। बताओ। तब क्यू नहीं ले गईं?” वह कुछ बोल न सकी चुप ही रही।

“”मैं बताता हूँ” बच्चा फिर बोला, “”दरअसल, तुम मुझे इसलिए गोद नहीं ले रहे हो कि मुझे मॉं चाहिए, बल्कि इसलिए ले रहे हो कि तुम्हें बेटा चाहिए। वरना भला कोई भी अपने बेटे को एक महीने तक अनाथालय में क्यों छोड़कर चला जाएगा।”

वह कुछ जवाब नहीं दे सकी। उसकी आँख भर आई। अपनी झेंप मिटाने और बच्चे का ध्यान बंटाने के लिए उसने एक बजने वाला खिलौना उसकी ओर बढ़ा दिया।

कहते हैं, दुनिया में रिश्र्वत की शुरुआत यहीं से हुई। बच्चा ज़हीन और खानदानी था। उसने “”धन्यवाद” के भाव भरी नजरों से उसकी ओर देखा। वह कुछ आश्र्वत हुई। उसकी ममता फिर फूट पड़ी। अबकि उसने बच्चे को चूमते हुए छाती से लगाया और कहा, “”मेरा राजा बेटा, मैं तेरी हूँ न। बोल….मॉं….।” बच्चा ज़हीन ही नहीं शहीर भी था। उसने फिर छेड़ते हुए कहा, “”अच्छा, एक बात बताओ। अगर बंबई के बड़े डॉक्टर की फाइनल रिपोर्ट पॉजिटिव आती तो क्या होता? बताओ, तब क्या होता?” वह फिर चुप हो गई।

“”मैं बताता हूँ, अगर रिपोर्ट पॉजिटिव आती तो मेरी मॉं कोई और होती। तब मेरी मॉं कौन होती, यह तो मैं नहीं जानता, पर हॉं इतना जरूर जानता हूँ कि तब तुम मेरी मॉं नहीं होतीं।” बच्चे ने कहा।

इतने में पति आ गया। दोनों मुस्कुराते हुए बच्चे को कार में ले आये।

आप सोच रहे होंगे कि तीन-चार माह का इतना छोटा बच्चा भला ऐसी बातें कह सकता है? कैसे कहा होगा? कैसे कहा होगा, ये तो पता नहीं है, मगर उसने कहा जरूर। अब कैसे कहा होगा? इस बारे में ज्यादा सोच-विचार कर, क्या बच्चे की जान लोगे?

–     घनश्याम अग्रवाल

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