बीज के अन्दर नन्हॉं पौधा – प्रभा माथुर

बीज के अन्दर नन्हॉं पौधा,

सोया, उसे जगाएँ,

मिट्टी में जा उसे दबाएँ

पानी उसे पिलाएँ।

जागो भाई, आँखें खोलो,

ऋतु आई अनुकूल,

संगी साथी जाग रहे सब,

सोना है अब भूल।

पानी पीकर, प्यास बुझाकर,

उसने पॉंव बढ़ाया,

आलस त्यागा, स्वस्थ हुआ,

मिट्टी में पॉंव जमाया।

फिर उसने बॉंहें फैलाईं,

बाहर देखा झॉंका,

धूप खिली थी, मंद पवन था,

मन-ही-मन हर्षाया।

कितनी सुन्दर बगिया उसकी,

कितना सुन्दर उसका घर,

यहीं बड़ा हो जाएगा वह,

और फलेगा फूल और फल।

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