चार कविताएँ – मंगलेश डबराल

पहाड़

पहाड़ पर चढ़ते हुए

तुम्हारी सॉंस फूल जाती है

आवाज़ भर्राने लगती है

तुम्हारा कद भी घिसने लगता है

पहाड़ तब भी है जब तुम नहीं हो

रेल में

एकाएक आसमान में

एक तारा दिखाई देता है

हम दोनों साथ-साथ

जा रहे हैं अंधेरे में

वह तारा और मैं

कविता

कविता दिन-भर थकान जैसी थी

और रात में नींद की तरह

सुबह पूछती हुई

क्या तुमने खाना खाया रात को

थरथर

अंधकार में से आते संगीत से

थरथर एक रात मैंने देखा

एक हाथ मुझे बुलाता हुआ

एक पैर मेरी ओर आता हुआ

एक चेहरा मुझे सहता हुआ

एक शरीर मुझमें बहता हुआ

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