दादा दादी का न्योता – अमृतलाल मदान

छुट्टियॉं हो गईं प्यारे बच्चों

बंद हुए हैं स्कूल,

दादा का घर खुला है निस दिन

अब भी न जाना भूल।

कभी तो आओ यहॉं जहॉं पर

बूढ़े नीम के पेड़,

माना ए.सी. नहीं लगे हैं

छांव घनी है ढेर।

मैं अब भी घोड़ा बन सकता

घुमा लाऊँगा गॉंव,

थक कर लौटोगे, दाबूँगा

नन्हें-नन्हें पॉंव।

मैं सेवियॉं बना के दूँगी

मक्खन वाली छाछ,

नूडल मैगी जूसी

नहीं आएँगी याद।

गुल्ली डंडा न खेलो तो

रखे हैं बैट व बॉल,

मैं भी बॉलिंग कर सकती हूँ

घूंघट दिया उतार।

पतंग सजा कर दूंगा बच्चों

कब की मांझी डोर,

ब्याह रचाएँगे गुड़ियों का

आओ तो इस ओर।

पहले कुछ दिन यहॉं बिताओ

फिर उड़ना परदेस,

हम बूढ़ों का क्या है भरोसा

कब उड़ जाएँ देस।

मम्मी-पापा को भी मना लो

बिजी बहुत दिन रात,

बरसों हो गए उनको आए

तुम्हीं ले आओ साथ।

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