अविश्वसनीय रिश्ते

चैनसिंह यादव। हॉं, यही नाम तो बताया था उसने। लंबा कद, नजर का चश्मा, आगे के कुछ दॉंत नकली, नीली शर्ट, काली पतलून और कंधे पर मैली-सी तहमद बिछाए रेलवे स्टेशन के करीब एक दफ्तर के बरामदे में वह लेटा हुआ था। मैं उसकी ऊटपटांग बातों पर कभी विश्र्वास नहीं करता था। जाने क्यों मुझे इस बार उसकी बातों पर विश्र्वास हो गया।

चैन जी, आपके सिर पर यह चोट का निशान कैसा? इतने उदास क्यों हैं आप? क्या बेटियों से फिर कुछ कहा-सुनी हो गई?

मेरी बात सुनकर वह देर तक मुझे घूरता रहा, फिर बोला, यार! घर छोड़ आया हूँ।

अरे….कब?

इसी दस को। होटल में खाता हूँ और रात को स्टेशन पर सो जाता हूँ।

ऐसा क्या हुआ कि अपना घर छोड़ना पड़ा? आप घर के मुखिया हो और बच्चियॉं आपकी अपनी हैं। आप उन्हें समझाते तो अच्छा होता।

चैनसिंह यादव ने एक आह भरी और अपना माथा पीटते हुए कहा, चुड़ैलें हैं दोनों की दोनों। दोनों ने मिलकर मेरे हाथ-पैर बॉंध दिए थे। मेरा मोबाइल भी छीन लिया। मैं रोया-चिल्लाया, लेकिन कोई पड़ोसी मदद के लिए नहीं आया। ऐसे घर में रहूँ! भगवान ऐसी संतान किसी को न दे।

मुझे उसकी बातों पर विश्र्वास नहीं होता था। ऐसा कैसे हो सकता है कि शादी के लायक दो जवान बेटियॉं रिटायर्ड पिता पर इतनी बुरी तरह से हावी हो जाएँ कि उनका जीना तक हराम कर दें। दरअसल, जबसे यादव की पत्नी का देहांत हुआ है, तबसे उसके मुसीबतों के दिन शुरू हो गये। मिसेज यादव उसकी धुरी थी। यादव चूँकि रेलवे में ड्राइवर था, इसलिए अक्सर उसे घर से बाहर रहना पड़ता था।

शायद इसीलिए घर में मिसेज यादव की चलती थी। यादव अपनी पत्नी पर इतना निर्भर था कि उसकी कमीर्ं उसे पग-पग पर खलने लगी। अपनी बहन के साथ यादव का किसी बात पर विवाद था और वह अपनी भाभी से जलती थी। यादव को इस बात का शक है कि उसकी अच्छी-भली पत्नी को बहन और बहनोई ने ज़हर देकर मार डाला है। उधर यादव की बेटियॉं कहतीं हैं कि पापा ने हमारी मम्मी का इलाज ठीक से नहीं करवाया इसीलिए उनकी मृत्यु हो गई। बेटियों को यह शिकायत भी थी कि उन्हें उनकी शादी की इतनी फिक्र नहीं है, जितनी खुद की, अपनी शादी की है।

वे नहीं चाहती थीं कि उनका बाप बुढ़ापे में शादी करे और एक अनजान औरत आकर घर की मालकिन बन जाए। बहनें हमख्याल थीं। यादव का बेटा कुछ दब्बू किस्म का था। कहीं प्राइवेट जॉब करता था और अपनी बहनों से डरता था। सोचा था कि बाप के बाद और बहनों की बिदाई के बाद वही एकछत्र मालिक होगा।

यादव को वाकई एक औरत की सख्त जरूरत थी। मिसेज यादव की निर्भरता ने उसे पंगु बना दिया था। बेटियॉं सेवा-टहल करते हुए खीझती थीं। खाना कभी बना कर देतीं, कभी गोल कर जातीं। कहतीं बाहर खा लेना। बाप के कपड़े वगैरह धोना तो दूर छूती तक नहीं थीं। साफ कह देतीं, हाथ-पॉंव नहीं हैं क्या? बेटा भी ऐसा ही व्यवहार करता था। यादव की हालत अनचाहे मेहमान जैसी बन गई थी। इस पर तुर्रा यह कि घर उसी की पेंशन से चलता था।

मिसेज यादव की वजह से यादव को बुरी आदत पड़ गई थी। वह थका-मांदा बाहर से आता तो उसके हाथ-पॉंव दबाए जाते थे। बेटियों ने साफ इन्कार कर दिया। कह दिया कि यह काम उनसे नहीं होगा। यादव झल्लाकर कहता, मुझे दूसरी शादी भी नहीं करने देती हो और मेरी सेवा भी नहीं करती हो, अब मैं क्या करूँ?

मर जाओ। बिना आगा-पीछा सोचे बेटियॉं कह उठतीं।

जब भी अंत को न पहुँचने वाली उसकी रामायण शुरू होती तो मैं उसे यही सलाह देता था कि सबसे पहले अपने बेटे की शादी करो। ऐसी लड़की देखो, जो घर संभाले। आपकी सेवा करे और मुँहजोर ननंदों को भी काबू में रखे।

करूँ क्या? मेरा बेटा अभी शादी करना नहीं चाहता है। कहता है, पहले अपने पैरों पर खड़ा हो लूँ। यों भी हमारी जात-बिरादरी में कोई ढंग का घराना मिले तो कहीं रिश्ता करूँ।

वह अपनी हर बात मेरे साथ शेयर कर लेता था। उसी ने बताया था कि एक विधवा से उसकी बात चल रही है। वह बात कर चुका है, पर वह अपना घर-परिवार छोड़ना नहीं चाहती है।

और बेटियॉं नयी मॉं को अपने घर में देखना नहीं चाहतीं। क्यों? मैं दलील पेश करता।

राइट। वह फौरन मेरी ताईद करता, लेकिन साथ ही यह भी कहता कि उसकी अपनी ज़िंदगी है। वह चाहे जिस तरह गुजारे, दखल देने वाली बेटियां कौन होती हैं।

इसलिए कि वो अपने बाप का पहले की तरह सम्मान करना चाहती हैं। वो अपने बाप को कमजोर नहीं, मजबूत देखना चाहती हैं।

यादव मुझे कड़ी नजरों से देखते हुए कहने लगा, तुम मेरी तरफ हो या मेरी संतानों की तरफ?

मैं किसी की तरफ नहीं हूँ। तार्किक तौर पर जो उचित लगता है, उसकी बात करता हूँ।

तुम्हारे तर्क मेरी समझ से परे हैं। मेरा दर्द वही समझ सकता है, जो मुझ जैसी हालत में हो। वह आह भरते हुए कहने लगा।

मैं भी पीछा छोड़ने वाला कहॉं था, अच्छी-भली तो है आपकी हालत। अच्छी पेंशन मिलती है साथ में जमा-पूँजी का ब्याज भी। खूब घूमो, फिरो, ऐश करो और क्या?

छोड़ो-छोड़ो, तुम मेरे बच्चों की जबान बोल रहे हो। शादी तो मैं जरूर करूँगा। मैं यूँ घुट-घुट के नहीं जी सकता। बड़ी तीखी नज़रों से देखता हुआ, वह उठकर चल पड़ा, जैसे अपने पक्ष की बातें मुझसे सुनने के लिए ही वह अब तक मुझे बर्दाश्त कर रहा था।

इस बार उसने जो घटना सुनाई, उसने वाकई मुझे चिंतित कर दिया। मैंने कहा, यादव साहब, इट इज टू मच। लगता है, आपकी बेटियों को कोई अच्छे संस्कार नहीं दिये गये हैं। ऐसी भी बेटियॉं होती होंगी, यह मेरी कल्पना से परे है। अगर आपको ऐतराज न हो, तो मैं उनसे मिलना चाहता हूँ।

जरूर मिलो, अगर जलील होने का इतना ही तुम्हें शौक है तो। उसने मुँह बनाया। मेरी बेवकूफी पर या बेटियों द्वारा मेरे संभावित अपमान के विचार पर, यह मुझे समझ में नहीं आया।

उस रोज मैं फुर्सत में था और एक नेक काम के लिए उसके घर जाने के लिए फौरन तैयार हो गया। उसने शर्त रखी कि वह कभी अपने घर में कदम नहीं रखेगा। गली के नुक्कड़ पर खड़ा मेरा इंतज़ार करेगा। मैं फौरन मान गया। मैंने सोचा, यह एक तरह से अच्छा ही होगा कि मैं बाप-बेटियों का फिजूल झगड़ा देखने से बच जाऊँगा। हो सकता है, अकेले में लड़कियों से मिलकर उन्हें समझाऊँ, जिससे वह सीधे रास्ते पर आ जाएँ या वस्तु-स्थिति का ठीक से पता चले।

यादव की बातों से उन लड़कियों की जैसी छवि मेरे ज़ेहन में बन चुकी थी, वे उससे उलट निकलीं। पता नहीं, यह उनका अभिनय था या स्वाभाविक तौर पर वे ऐसी ही थीं, शिष्ट और हॅंसमुख। न ज्यादा सुंदर, न ऐसी-वैसी। ज़ाहिर है कि उन्होंने मुझे पहचाना नहीं। मैंने उनके पिता से अपने परिचय की बात बताई तो मुझे सम्मानपूर्वक बैठक के कमरे में ले गईं और उसी तरह मेरी आवभगत की, जैसे पिता की उपस्थिति में उनके अन्य मित्रों की की जाती है।

वे किसी बात या अपने हाव-भाव से अशिष्ट, उद्दंड या आक्रामक नहीं लग रही थीं। मैंने यादव द्वारा बताई गई तमाम बातें दोहरा दीं और बूढ़े बाप के प्रति सयानी बेटियों के क्या कर्त्तव्य होते हैं, यह समझाना शुरू किया ही था कि दोनों एकाएक गंभीर हो गईं। बड़ी लड़की ने कहा, तो पापा ने आपको भी किस्सा गढ़ कर सुना दिया? ऐसा कुछ भी नहीं है। हम तो खुद पापा की दिमागी हालत से परेशान हैं। समझ में नहीं आता, उन्हें कैसे समझाएँ? भला यह उम्र है उनकी शादी करने की? जो औरत लालच में आएगी, उसकी ज़िंदगी भी बर्बाद हो जाएगी। हम नहीं चाहते कि हमारे रहते किसी औरत की ज़िंदगी एक आदमी की सनक की वजह से बर्बाद हो जाए।

बड़ी वाली रुकी तो छोटी शुरू हो गई, आपको मालूम नहीं, पापा ने हमारी नाक में कितना दम कर रखा है। हर वक्त चीखते-चिल्लाते रहते हैं। उन पर शादी का ऐसा भूत सवार है कि उन्होंने कई बार हमें ज़हर देकर मारने की धमकी तक दी है।

हमारा भैया तो बहुत सीधा है। अगर हम सख्ती से पेश न आएँ तो पापा हमें दर-दर का मोहताज बनाकर छोड़ देंगे। हमारी मम्मी नहीं रहीं, इसका ग़म हमें पापा से ज्यादा है, पर नियति के आगे कोई क्या कर सकता है? उनके अभाव में पापा का दिमाग सनक गया है।

हमें तो इस बात की ज्यादा चिंता है कि हमारे बाद उनका क्या हाल होगा? अब देखिए ना, बिना बात के घर छोड़कर चले गये हैं। लोग तरह-तरह की बातें बनाने लगे हैं। हम किस-किस को समझाएँ।

वे दोनों भी बाप की तरह बातूनी निकलीं। कहॉं तो मैं उन्हें समझाने आया था और कहां वे मुझे दुनिया की ऊँच-नीच से अवगत कराने लगीं। मुझे लगा कि कुछ देर और इनकी बैठक में बैठा रहा तो मेरा सिर घूम जाएगा। उनकी बातें सुनकर तो ऐसा लगने लगा कि बेटियॉं सही कह रही हैं और कभी लगने लगता कि नहीं यादव वाकई पीड़ित है। यों ही कोई घर नहीं छोड़ता। कभी लगता, यह पूरा घर ही असामान्य है। छोटी-छोटी बातों पर भी फिजूल की झिकझिक। मेरी मति मारी गई थी कि एक घर को टूटने से बचाने के लिए चला आया। यों भी यादव से तो सिर्फ परिचय ही था। कभी-कभी भावुकता, संवेदनशीलता और पुण्य कमाने का लोभ मुसीबत बन जाता है।

अच्छा, मैं तुम्हारे पापा को समझा-बुझाकर घर लाऊँगा। मैंने रुख्सत होते हुए, बल्कि उनसे निदान पाने की गरज से कहा और चलने लगा।

फिर आइएगा। बेटियॉं हाथ जोड़े दरवाजे तक आई थीं। मुझे लगा, मेरी पीठ पीछे वे मंद-मंद मुस्कुरा रही हैं।

मैं जब नुक्कड़ पर पहुँचा तो यादव चहक कर बोला, मिल गया तुम्हें भी प्रसाद? बड़े सूरमा बनकर गये थे। भाई साहब, मेरी लड़कियॉं अच्छे-अच्छों की छुट्टी कर देती हैं। उसने चुटकी बजाते हुए कहा।

मैं यादव को कोई जवाब दिये बगैर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया। वह सवालिया निगाह से वृत्तांत जानने के लिए मेरी ओर आया। मैं उससे क्या कहता कि मेरे लिए दोनों पक्ष अविश्र्वनीय हैं। पता नहीं, इन रिश्तों का सच क्या है!

सच पूछिए तो मैं अपने आपको ठगा-सा महसूस कर रहा था। मैं हारे हुए खिलाड़ी की तरह उदासमना अपने घर की तरफ बढ़ने लगा। किन्तु जब पलटकर एक नजर यादव पर डाली तो उसका चेहरा सपाट था।

– हसन जमाल

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