जानना चाहते हैं मोटापे को तो

यह किसी नतीजे को लेकर किसी खास निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए धैर्य बनाए रखने की सलाह नहीं है। यह सचमुच अपना मोटापा देखने और जांचने के लिए वजन करने और उस वजन पर नजर रखने की सलाह है। क्योंकि आमतौर पर हमें यह बात समझ में नहीं आती कि आखिर हम तेजी से मोटे क्यों हो रहे हैं या हम वजन को जल्दी से घटा क्यों नहीं पाते? दरअसल, ये बातें आमतौर पर समझ में नही आतीं, क्योंकि हमें बॉडी बेसिक्स की समझ नहीं होती। सवाल है, क्या हर किसी को अपने शरीर की बेसिक बातों की समझ हो सकती है? जवाब है-हां, हो सकती है। वास्तव में शरीर के सामान्य स्वभाव व उसकी गतिविधियों को समझने के लिए हर किसी का डॉक्टर होना जरूरी नहीं है।

इन दिनों हर कोई दुबली-पतली यानी छरहरी काया चाह रहा है। करीना कपूर के बाद तो युवतियों की जिंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश ही जीरो साइज शेप हो गई है। इसलिए अब पहले से कहीं ज्यादा यह जानना जरूरी हो गया है कि हम मोटे कैसे होते हैं और मोटापे से छुटकारा कैसे पाएं? शरीर में पेट वह हिस्सा है, जो सबसे पहले शरीर में जमा होने वाले अतिरिक्त फैट के विषय में बताता है। कई लोगों को यह बात समझ में नहीं आती कि अगर उनकी लंबाई के मुताबिक उनका वजन संतुलित है तो फिर उनका शरीर इस कदर बेडौल क्यों नजर आता है? और अंत में यह सवाल भी बहुत लोगों को परेशान करता है कि हम अपनी खुराक को लेकर कैसे सजग रहें? क्या एक्सरसाइज एकमात्र रास्ता है स्लिम-टिम होने का?

इन सभी सवालों के जवाब बॉडी बेसिक्स की समझ में छिपे हैं। यदि हमें बॉडी बेसिक्स की समझ हो तो इन सवालों के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। क्योंकि तब हमें इनके जवाब स्वतः ही मालूम पड़ जाएंगे। हमारा शरीर दो चीजों पर निर्भर रहता है-बॉडी यानी स्टक्चर और शरीर में वसा के वितरण पर। याद रखें, आदमी और औरत की शारीरिक संरचना एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न होती है। महिलाओं में पुरूषों के मुकाबले मांसपेशियां कम पायी जाती हैं। झुके कंधे, पतली कमर, बड़े नितंब ये महिलाओं की शारीरिक संरचना की खास खूबियां हैं। महिलाओं में पुरूषों के मुकाबले शारीरिक वसा का प्रतिशत ज्यादा होता है। जो उन्हें गर्भावस्था के दौरान काम आती है। महिलाएं जब मोटी होनी शुरू होती हैं तो सबसे पहले उनके नितंबों में वसा का जमाव बढ़ता है। नितंब के बाद जांघें फिर छातियां और उसके बाद बांहों में मांस बढ़ता है। अंत में उनके पेट में मोटापे के लक्षण नजर आते हैं। जबकि पुरूषों में मोटापे की शुरूआत पेट से ही होती है। सबसे पहले तोंद निकलती है।

महिलाओं में वजन का बढ़ना सिर्फ शेप बिगड़ जाने के नजरिए से ही खराब नहीं है बल्कि यह थायराइड, सेक्स और प्रजनन में सहायक हार्मोन्स को भी प्रभावित करता है। लेकिन पुरूष हों या औरतें, सबको तब तक वेट की ज्यादा चिंता नहीं होती जब तक कि उनका पेट नहीं बढ़ता। दरअसल पेट ही उन्हें चिंता में डालता है। शायद इसकी वजह यह है कि पेट के आसपास कोई हड्डी का सपोर्ट नहीं है ताकि इसे फैलने से या थुलथुल दिखने से रोका जा सके। सिर्फ पेट संबंधी कुछ कसरतें या एक्सरसाइज ही इस मामले में कारगर होती है। वसा का दोहन मुख्यतः छोटी आंत में होता है, जो कि पेट के ठीक नीचे है। बच्चे पैदा होने के बाद महिलाओं का पेट बढ़ जाता है।

वसा सिर्फ खराब ही नहीं होती, उसका हमारे शारीरिक विकास और जिंदा रहने में महत्वपूर्ण रोल है। हमें हर समय सिाय रहने के लिए जिस ऊर्जा की जरूरत पड़ती है, वह वसा द्वारा ही अधिकतम हासिल होती है। अगर आप वसा से मिलने वाली ऊर्जा यानी कैलोरी को विद्युत मान लें तो सारी बात आसानी से समझ में आ जाती है। फैट का शरीर में महत्व जबरदस्त है। हमारा शरीर कैलोरी या एनर्जी को अपने सिाय रहने के लिए विद्युत की तरह इस्तेमाल करता है। फैट के रूप में वास्तव में यह कैलोरी या ऊर्जा वसा के जरिए हमारे शरीर में इकट्ठी होती है और जरूरत के समय शरीर के काम भी आती है। खासतौर पर महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान इसकी जरूरत सबसे ज्यादा पड़ती है।

अपने शरीर की ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें भोजन की दरकार होती है। भोजन वास्तव में पोषणों का मिश्रण होता है। इसमें कार्बोहाइडेट, वसा, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन्स, मिनरल्स और पानी होता है। यह हमें सिर्फ ऊर्जा ही नहीं मुहैय्या कराता बल्कि शरीर की दूसरी जरूरतों को भी पूरी करता है। जैसे मांसपेशियों का बनना, प्रतिरक्षण क्षमता को मजबूत करना और हार्मोन्स का विकास करना। कार्बोहाइडेट हमें तुरत-फुरत ऊर्जा प्रदान करते हैं। प्रोटीन हमारी कोशिकाएं बनाती है और वसा यानी शरीर में इकट्ठा हुई वसा हमें ताकत प्रदान करती है, जिसके बिना हम खाना भी नहीं खा सकते। इसलिए फैट या वसा कोई खराब चीज नहीं है। यह खराब चीज तब बन जाती है, जब हम ढेर सारा खाना खाते हैं और जरा-सी मेहनत करते हैं या खूब मेहनत करते हैं और जरा-सा खाते हैं। वास्तव में वसा के उत्पादन और उसके खर्च होने के समीकरण में मौजूद असंतुलन ही खतरनाक होता है।

अब आप यह तो जान ही गए कि वजन बढ़ता कैसे है और कम कैसे हो सकता है। इसलिए शरीर को शेप में रखने के लिए हमें शरीर द्वारा पैदा की गई ताकत और उसके खर्च की रफ्तार में संतुलन साधना होगा यानी आपको यह सोचना है कि आपके द्वारा खाया गया भोजन किस तरह अधिक से अधिक इस्तेमाल हो यानी आपका मेटाबॉलिज्म न सिर्फ सिाय हो बल्कि उसकी बैलेंस शीट भी संतुलित हो। कई बार हम एनर्जी फूड बहुत खाते हैं और मेहनत जरा भी नहीं करते। नतीजतन शरीर मोटा हो जाता है। इसलिए सिाय रहें। कोशिश करें कि जितना खा रहे हों, उसका 90 प्रतिशत जला भी डालें। खूब मेहनत करके।

अगर आपके शरीर में पहुंचने वाली कैलोरी बहुत ज्यादा है और खर्च की जाने वाली बहुत कम तो बची हुई कैलोरी शरीर में इकट्ठी होगी शरीर में बॉडी मांस के रूप में। हालांकि अभी देश में कोई कानून नहीं बना है, मगर इस तरह की स्थितियां आ रही हैं कि कंपनियां अपने शारीरिक रूप से मोटे कर्मचारियों को निकाल बाहर करेंगीं। क्योंकि एक तो ये खाते बहुत हैं फिर काम नहीं करते, जिससे मोटे हो जाते हैं या कहें कि मोटे हो जाने के कारण काम नहीं करते। वजह कुछ भी हो, लेकिन इनका यह मोटापा कंपनी की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है और अंततः यह मोटापा धीरे-धीरे कंपनी को आर्थिक दिक्कतों में डाल देता है। इसलिए बड़ी गंभीरता से मोटे कर्मचारियों को महज मोटे होने के चलते कामकाज से बेदखल किए जाने के बारे में सोचा जा रहा है।

जब आप 7 हजार कैलोरी स्टोर करते हैं तो आप में 1 किलो फैट बढ़ जाता है। अगर आप हर दिन 700 कैलोरी उत्पादन करने वाला फूड अतिरिक्त खाते हैं तो 10 दिन में आपके शरीर में 1 किलो वजन बढ़ जाएगा। भले पहले से वेट बढ़ने का कोई इतिहास न हो। बस यही मूलभूत नियम हैं शरीर में वेट बढ़ने और कम न होने के। अगर वेट कम करना चाहते हैं तो ज्यादा कैलोरी कंज्यूम करें और कम कैलोरी हासिल करें। तभी वेट कम होगा। एक और बात समझ लें कि फैट और वेट एक ही चीज नहीं होती। जब हम मांसपेशियां बढ़ाते हैं या उनका खात्मा करते हैं तो शरीर में पानी का घटना और बढ़ना भी शामिल रहता है। इससे भी वजन प्रभावित होता है।

– मधु सिंह

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