बहुत पुराना है चावल का सफर

journey of Riceचावल एक ऐसा अनाज है जो रोजमर्रा के जीवन में बहु-उपयोगी है। चावल धान को कूटकर बनाया जाता है। धान की फसल को पैडी भी कहते हैं। चावल को आमतौर पर सभी अलग-अलग प्रकार से इस्तेमाल में लाते हैं। यह पचने में बहुत आसान होने के साथ-साथ हल्का भी होता है। आमतौर पर माना जाता है कि चावल या धान की खेती पहले दक्षिण भारत में हुई थी, फिर यह उत्तर की ओर आया। लेकिन अभी तक जो सबूत मिले हैं, उनसे तो लगता है कि इससे ठीक उल्टा हुआ।

गंगा के मैदानों में 5000 ईसा पूर्व के चावल के दाने पाए गए हैं। हालॉंकि इसकी खेती के स्पष्ट प्रमाण 2000 ईसा पूर्व से ही मिलते हैं। इसके करीब एक साल  बाद ही दक्षिण भारत में चावल की मौजूदगी के सबूत मिलते हैं। खैर, चावल चाहे कहीं भी पहले उगाया या खाया गया हो, इतना तो साफ है कि यह जहॉं-जहॉं गया, इसका स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ गया। हर क्षेत्र के लोगों ने इसे खाने का अपना खास अंदाज तय कर लिया। कोई इसे दाल के साथ खाता, कोई सब्जी के साथ तो कोई मांसाहार के साथ। किसी ने इसे सादा परोसना पसंद किया तो किसी ने खिचड़ी या बिरयानी के रूप में।

यही नहीं, चावल को पीसकर उसके आटे से भी तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाए गए। भारत में समय-समय पर आते रहे विदेशी यात्रियों ने यहॉं चावल के प्रचलन के बारे में लिखा है। सातवीं सदी के एक बौद्ध यात्री के अनुसार मगध में बहुत बड़े दाने वाले चावल का प्रचलन था। वह इतना खास माना जाता था कि आम लोगों को इसे चखना नसीब नहीं होता था। केवल राजा और उच्च तबके के लोगों को ही यह परोसा जाता था। बर्नियर और इब्नबतूता ने भी बंगाल, कश्मीर व दिल्ली में चावल की खेती के बारे में लिखा है। कई प्राचीन ग्रंथ हमें बताते हैं कि उस जमाने में चावल कैसे खाया जाता था। उसे पानी या दूध में पकाया जाता था। दाल के साथ भी उसे पकाया जाता था। चावल को दही, घी और मांस के साथ भी खाया जाता था। उससे पोहे और परमल भी बनाए जाते थे। इसकी खीर भी बनाई जाती थी और चावल के आटे व गुड़ से भी मिठाई बनाई जाती थी।

चावल से बनने वाली कांजी एक लोकप्रिय पेय थी। इसके अलावा कई अन्य तरीकों से भी चावल का सेवन किया जाता था। यहॉं तक कि उससे शराब भी बनाई जाती थी। दक्षिण में जहॉं चावल का आटा बनाकर तरह-तरह के व्यंजन ईजाद किए गए, वहीं उत्तर भारत में मुगलों ने चावल पकाने की फारसी विधियॉं पेश कीं। इनमें चावल में मांस, मेवा तथा गुलाबजल या केवड़ा डाला जाता था। “आइने अकबरी’ हमें जर्द बिरिंज के बारे में बताती है। इसमें चावल में शक्कर, घी, किशमिश, बादाम, पिस्ते, अदरक, केसर और दालचीनी डाली जाती थी। इसके अलावा बिरयानी का चलन अवध से लेकर हैदराबाद तक फैला। पुलाव और खिचड़ी भी खासी लोकप्रिय थी।

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