कर्मभूमि – इकबाल वफ़ा

कर्मभूमि पर जिंदा रहने तक तन मन से

प्रेम का दीप जलाना है

 

चलो जवानों जागो, कैसी गहरी नींद में सोते हो

पर्वत को तुम राई बनाओ, अपने अच्छे विचार से

शत्रु को भी मित्र बनाओ, प्रेम से दुलार से

 

वो प्यारी धरती जिस पे हम जीते हैं

खुशी प्रेम के कितने प्याले हम पीते हैं

मनुष्यता से उलट कोई व्यवहार न हम कर पाएं

हमारे कार्य देखकर न कभी जानवर शर्माएँ

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