खुशियॉं

Khusiya - A Hindi Storyअमन सुनो तो, क्या तुम्हें पता है, मेरी स्प्रे कहां रखी है?

मैं नहीं जानता दीदी और वैसे भी आप मुझे अपनी स्प्रे डालने भी देती हैं कभी? छूने तक तो देती नहीं हैं। मैं क्या जानूं आपकी स्प्रे के बारे में।

अच्छा-अच्छा रहने दे। तुझे नहीं पता है तो मैं अपने कमरे में ही तलाश करती हूं, वहीं कहीं रख दी होगी। कुछ देर बाद दामीनि ने अमन को स्प्रे मिल जाने की बात कही।

दीदी कहां हो? दीदी मेरी टाई कहां है?

मैं क्या जानूं, मैं क्या तुम्हारी टाई लगाती हूं? अलमारी में जाकर देखो। अरे! तुम लोग अभी तक तैयार नहीं हुए? जल्दी से तैयार होकर बाहर आ जाओ।

मां, तुम इतनी जल्दी क्यूं करने लगती हो? तैयार हो रहे हैं, कुछ देर तो लगेगी ही तैयार होने में।

बेटा अभय, चल तू भी तैयार हो जा जल्दी से।

तैयार क्या होना है मां, मैं ऐसे ही ठीक हूं।

कैसी बातें करता है? लड़की देखने चल रहा है, ऐसे ही चलेगा, आखिर लड़की वाले भी तो तुझे देखेंगे। चल उठ और हाथ-मुंह धो ले।

अच्छा मां, अभी धोता हूं।

अरे! सुनती हो, मैं कहता हूं कि तुम लोग अभी तक तैयार नहीं हुए, मैंने लड़की वालों को पांच बजे का समय दिया है।

पापा, अब वह जमाना नहीं रहा कि ठीक समय पर ही पहुंचा जाए। आजकल के जमाने में तो जो समय दिया जाता है, उसके एक-दो घण्टे बाद ही पहुंचा जाता है।

चुप रहो, तुम कुछ ज्यादा ही बोलने लगी हो। अब तुम मुझे यह बताओगी कि जमाना कैसा चल रहा है? मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं है। अब चलो, वरना काफी देर हो जायेगी।

लड़की के घर पहुंचकर सभी ने नाश्ता-पानी किया। कुछ देर पश्र्चात लड़की की भाभी लड़की को लेकर उस कमरे में आयी, जहां सब लोग बैठे थे। जैसी बहू वह चाहते थे, शायद वह वैसी ही थी। दूसरी तरफ अमन और उसकी दीदी दामिनी का मुंह बन गया, क्योंकि शायद उन्हें अपनी होने वाली भाभी पसंद नहीं आयी। दामिनी ने अमन की ओर देखकर कहा, अमन, चलो बाहर चलते हैं। यहां गर्मी बहुत है। मेरा तो दम ही घुटा जा रहा है।

तुम लोगों को गर्मी लग रही है, दो-दो कूलर और पंखे चल रहे हैं फिर भी! मम्मी गर्मी लग रही है तभी तो कह रही हूं। तुम्हें जाना है तो जाओ बाहर, अमन नहीं जायेगा।

नहीं मम्मी, गर्मी तो मुझे भी काफी लग रही है। चलो दीदी। कह कर दोनों बाहर जाकर खुसुर-फुसुर करने लगे। दीदी, तुम्हें भाभी कैसी लगी? अरे! पागल यही पूछने के लिए तो मैं तुम्हें बाहर लायी हूं। गर्मी का तो एक बहाना था। वैसे सच पूछो तो मुझे तो बिल्कुल पसंद नहीं आयी, अगर उनके बाल कटे होते, तो शायद अच्छी लगती। अरे! अपने को क्या करना है, अच्छी लगे या न लगे। अपने देवदास भैया के लिए यह देवी स्वरूपा रोशनी ही ठीक है। चलो, अब अन्दर चलते हैं वरना पापा का पारा गर्म हो जायेगा।

रौशनी अभय और उसके माता-पिता को भा गई। बस फिर क्या था, उनकी चट मंगनी पट शादी हो गयी।

रौशनी ने ससुराल में कदम रखा तो उसे वहां का माहौल कुछ अजीब-सा लगा। उसने देखा कि उसकी ननंद दामिनी देर रात गये घर लौटी है और देवर अमन…, उसका तो कोई अता-पता ही नहीं रहता है। उसके सास-ससुर अमन और दामिनी के लिए बहुत परेशान रहते हैं। वह हमेशा यही सोचते रहते हैं कि काश! उन्हें कोई ऐसा इंसान मिल जाए, जो उनके बच्चों को सही राह पर ले आये।

दूसरे दिन रौशनी अपनी सास के साथ पूजा की तैयारी में जुटी थी। इसी बीच उसने मौका पा कर पूछा, मम्मी, कल दामिनी रात को देर से घर लौटी। कहां गयी थी वह? आपने उससे कुछ पूछा नहीं? आखिर आप उसे समझाती क्यों नहीं कि लड़कियों का इस तरह देर रात तक घर से बाहर रहना ठीक नहीं है और अमन का तो कुछ पता ही नहीं रहता है। मम्मी आजकल के जमाने में लड़कों का भी ज्यादा घूमना-फिरना ठीक नहीं है। रोशनी अपनी बात कहती चली गयी, लेकिन जब रौशनी ने अपनी सास की तरफ देखा, तो देखती ही रह गयी। उनकी आंखों में आंसू उमड़ रहे थे। रौशनी उनके और करीब जाते हुए बोली, यह क्या मम्मी, आप रो रही हैं? आंसू पोंछते हुए वह कहने लगीं, बेटी, तुमने तो आज इन आंसुओं को बहते हुए देखा है, लेकिन यह आंसू तो बरसों से ऐसे ही बह रहे हैं, अपने बच्चों के लिए। दामिनी और अमन को न जाने क्या हो गया है कि वह दोनों किसी की बात सुनते ही नहीं हैं। यदि ज्यादा डांटो तो कहने लगते हैं कि कहीं दूर चले जाएंगे और लौटकर नहीं आएंगे। शायद यह सब ज्यादा लाड़-प्यार का ही नतीजा है और इसी चिंता में तुम्हारे पापा ने यहां से ट्रान्सफर करवा लिया। बेटी मैं तो समझती हूं कि मेरा सिर्फ एक ही बेटा है और वह है अभय। वह हमारी हर बात मानता है।

नहीं मम्मी, ऐसी बात नहीं है। वह दोनों रास्ता भटक गये हैं, बस उनको प्यार की जरूरत है। मम्मी अगर आप कहें तो मैं इन लोगों को समझा कर देखूं, शायद इनकी समझ में मेरी बात आ जाए।

अरे! बेटी जब हम लोगों की बातों का उन पर कोई असर नहीं हुआ, तो तुम्हारी बातें उन पर क्या असर करेंगी! यदि तुम्हारा दिल करता है तो समझा कर देखो। मैं तो चाहती हूं कि किसी की बात का उन पर असर पड़े। अच्छा, अब चलो बाहर चलते हैं।

दामिनी जब कॉलेज जाने के लिए तैयार होने लगी तो रौशनी ने उससे पूछा, कहां जा रही हो?

कॉलेज जा रही हूं। दामिनी मुंह बनाते हुए बोली।

पर मैं समझी थी कि कहीं और जा रही हो?

क्या मतलब है आपका?

आप जो इतना सज-धजकर जा रही हो, उससे मैंने समझा कि आप कहीं और जा रही हो।

देखो भाभी, मैं किसी की टोका-टोकी बर्दाश्त नहीं कर सकती हूं। यह हल्का-फुल्का मेकअप आपको सजावट दिखायी दे रहा है। आजकल तो सभी लड़कियां हल्का-फुल्का मेकअप करके कॉलेज जाती हैं तो मैं क्यों न जाऊं! दामिनी मुंह बनाकर कहते हुए बाहर की ओर चल पड़ी।

उसके जाने के बाद रौशनी अमन के कमरे में गई, तो वह भी कॉलेज जाने की तैयारी में लगा था। वह कपड़ों पर स्प्रे डाल रहा था। रौशनी ने करीब जाते हुए उससे पूछा, अमन कहां जाने की तैयारी हो रही है? ओह भाभी! आप कब आयीं मेरे कमरे में मुझे तो पता ही नहीं चला। मैं कॉलेज जा रहा हूं, आजकल मेरे पेपर चल रहे हैं न! मगर अमन परीक्षा में स्प्रे की क्या जरूरत है? ओह भाभी! आप भी किस जमाने की बातें करनी लगीं। अच्छा, मैं चलता हूं वरना देर हो जायेगी, बाय-बाय। बेचारी रौशनी अपने देवर को बॉय-बॉय करती ही रह गयी। उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह किस तरह अपने देवर और ननद को सही रास्ते पर लाए।

दूसरे दिन जब दामिनी कॉलेज जाने के लिए तैयार होने लगी तो रौशनी ने उससे कहा, दामिनी, जरा कॉलेज से जल्दी आ जाना।

जल्दी किसलिए भाभी? आपको तो पता ही है, मैं अपनी सहेली के घर पढ़ने के लिए जाती हूं।

हां, मैं जानती हूं। रौशनी ने दामिनी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, मैं चाहती हूं कि आज शाम का खाना हम सब लोग एक साथ मिलकर खायें। उसकी बात सुनकर दामिनी चुप हो गई। भाभी पूछने लगी, तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया? दामिनी ने अनमने ढंग से कहा, अच्छा, कोशिश करूंगी, वादा तो नहीं करती हूं। रौशनी ने अमन से भी यही सवाल किया तो उससे भी वही जवाब मिला। रौशनी शाम को काफी देर तक इन दोनों का रास्ता देखती रही, किन्तु दोनों अपने-अपने दोस्तों के घर से खाना खाकर देर रात लौटे, लेकिन तब तक रौशनी की भूख मर गई। अब यह सब तो रोज की बात हो गया था। रौशनी लगभग रोज ही भूखी सोने लगी। उसकी हालत देखकर उसके पति और सास को काफी दुःख होता। वे लोग रौशनी को समझाते हुए कहने लगे कि देखो, दोनों जैसे भी हैं, उन्हें वैसा ही रहने दो। वे दोनों पत्थर से हीरा नहीं बनने वाले हैं। उन लोगों पर तो तुम्हारी इस हालत का कुछ असर ही नहीं हो रहा है। फिर क्यों तुम अपना शरीर इस तरह मिटा रही हो। मगर रौशनी उन लोगों की एक न सुनती।

अपनी बहू की इस हालत को देखकर अभय की मां को एक तरकीब सूझी और उन्होंने कहा, देखो बेटी, यदि तुम्हें उन लोगों को सही राह दिखलानी है तो एक काम करो। तुम खाना खा लिया करो और उनसे कह दिया करो कि तुमने उनका इन्तजार करते-करते अभी तक खाना नहीं खाया है।

नहीं मम्मी, आप यह क्या कह रही हैं?

मम्मी ठीक कह रही हैं रौशनी। अभय ने सलाह देते हुए कहा, तुम्हें मम्मी की बात मान लेनी चाहिए। इसमें तुम्हारी भी भलाई है और उन दोनों की भी।

दूसरे दिन रौशनी ने खाना खा लिया और उन लोगों के आने पर बता दिया कि उसने उनके इन्तजार अभी तक खाना नहीं खाया है।

यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा। एक दिन वे दोनों घर आए तो अभय की मां ने उन लोगों को डांटते हुए कहा, शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को।

दोनों एक साथ कह पड़े, कैसी शर्म मम्मी?

अपनी भाभी की हालत देखी है तुम लोगों ने।

क्यों क्या हुआ भाभी को?

अरे! यह पूछो कि क्या नहीं हुआ, 15 दिनों से उसने अन्न को हाथ तक नहीं लगाया है तुम लोगों के लिए।

हम लोगों के लिए! वे दोनों चौंकते हुए बोले, हां, तुम लोगों के लिए। वह हमेशा तुम लोगों का इन्तजार करती रहती है कि तुम लोगों के साथ खाना खाएगी, मगर तुम लोग घर में रहते ही नहीं हो। वक्त-बेवक्त दोस्तों के यहां से खा-पीकर चले आते हो, कम से कम अपनी भाभी का तो ख्याल किया करो। वह तुम लोगों के इन्तजार में घर में भूखी बैठी रहती है।

नहीं मम्मी, बस करो अब हम लोगों को कुछ और सुनना नहीं है। हम लोग इतने स्वार्थी हैं, यह तो आज पता चला है। कहां है भाभी?

अन्दर लेटी है, जाकर मिलो।

इतना कहकर रौशनी की सास मन ही मन खुश हो रही थी कि उनके बच्चों पर बहू द्वारा अपनायी नीति का कुछ तो असर पड़ा। अंदर जाकर दोनों अपनी भाभी से माफी मांगने लगे। भाभी! हमें माफ कर दो। अब हम लोग कभी देर से घर नहीं लौटेंगे। हमेशा समय पर घर आयेंगे। हम लोग अंधेरे में थे, मगर आपने हमें रोशनी दिखा दी।

रौशनी बिस्तर से उठी और उन दोनों को गले से लगाते हुए बोली, माफी किस बात कि तुम लोगों ने तो कोई गलती ही नहीं की है और माफी तो गलती करने पर दी जाती है। अच्छा, भाभी अब यह बताओ कि आपकी तबियत कैसी है?

रौशनी ने कहा, मुझे क्या हुआ? मैं तो बिल्कुल ठीक हूं। तुम लोगों ने मम्मी जी की बात मान ली, यह सुनकर मेरी तबीयत पूरी तरह से ठीक हो गयी।

सच बेटा रोशनी, तुमने इस अंधियारे घर में प्यार की रोशनी फैला दी है, जिसके प्रकाश से आज सारा घर जगमगा उठा है। अच्छा देखो, आज शाम। हम सब साथ खाना खाएंगे। ठीक है ना!

हां, मम्मी आज हम सब लोग मिलकर खाना खाएंगे।

शाम के समय सबको खाने की मेज पर देखकर अमन के पापा बोले, अरे! भाई यह चमत्कार है या मेरी आंखें धोखा खा रही हैं।

यह जो कुछ भी आप देख रहें हैं, बिल्कुल सच है। अब हम लोग हमेशा ऐसे ही खाना खाया करेंगे, साथ में। रौशनी की सास ने खुशी के साथ कहा तो ससुर को असलीयत जानने में देर नहीं लगी और उन्होंने अपनी बहू से कहा, सच बेटी रौशनी, तुमने तो इस निराशा के अंधकार में डूबे घर को रोशनी दिखा दी। जिसके प्रकाश से दिल का कोना-कोना जगमगा उठा। आज बरसों बाद खुशी महसूस कर रहा हूं।

– दुर्गा प्रसाद शुक्ल

You must be logged in to post a comment Login