किट्टी

Ladies Kittyट्रैफिक की बत्ती अचानक लाल हो गयी। ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाया, तो गाड़ी की मालकिन कमला साहनी ने जोर की डॉंट लगाते हुए कहा, अरे संभल कर चलाओ। मेरा सिर टॉप से टकरा गया है। ड्राइवर इस तरह की डांट खाने का आदी हो चुका था।

लाल बत्ती पर रुकी इस होंडा कार में कमला साहनी अपनी सहेली सरला मेहरा के साथ बैठी थी। वे दोनों किट्टी पार्टी से लौट रही थीं। आज पार्टी का आयोजन बिमला बिंद्रा ने अपने घर पर किया था। आज किट्टी कमला साहनी की निकली थी। रकम बड़ी थी, पूरे तीन लाख रुपये। परस्पर तीस सहेलियां मिलकर इस किट्टी पार्टी में शामिल होती हैं। प्रत्येक का योगदान दस-दस हजार रुपये होता है और हर महीने किसी न किसी के नाम तीन लाख रुपये निकल आते हैं। किट्टी बारी-बारी से किसी एक सहेली के घर निकाली जाती है। उसे ही सभी के लिये बढ़िया लंच का प्रबंध करना पड़ता है।

इस बार लंच बिमला बिंद्रा की तरफ से था। किट्टी के तीन लाख रुपये पाकर भी कमला साहनी को कोई खास खुशी नहीं हुई थी। उसने सारी रकम एक पैकेट में डालकर रख ली थी। किट्टी पार्टी का खाना बहुत स्वादिष्ट था। सबने जी भर कर खाया, तब भी काफी सारा बच गया था। बिमला बिंद्रा ने जरूरत से ज्यादा मंगवा लिया था। उनके नौकर ने बचे हुए खाने के पैकेट बनाकर मेज पर सजा दिये थे, जिसे मिसिस बिंद्रा ने सहेलियों में बांट दिये थे। गाड़ी में बैठते समय सरला मेहरा ने अपना पैकेट ड्राइवर के साथ वाली सीट पर रख दिया था और कमला साहनी ने खाने का पैकेट व रुपयों का पैकेट अपने पैरों के पास ही रख लिया था। सरला मेहरा ने उसे टोकते हुए कहा भी था, पगली खाने को पैरों के पास नहीं रखते। सामने की सीट पर रख दे। क्या फर्क पड़ता है, मैंने खुद तो खाना नहीं है, नौकरों को दे देना है। कहकर कमला ने उसकी बात काट दी थी।

जिस चौराहे पर उनकी कार खड़ी थी, वह बहुत बड़ा था। चारों ओर से ट्रैफिक आता-जाता रहता था। बत्ती बदलने में बहुत समय लगता था। हरी बत्ती की प्रतीक्षा में कमला साहनी की सांस रुकने लगी थी। उसने अपनी ओर की खिड़की का शीशा नीचे कर लिया था।

शीशा नीचे करते ही एक फैली हथेली कार के भीतर चली आई। भिखारिन थी। वह बोलती जा रही थी, तेरे बेटे जियें, पांच-दस रुपये दे दे, बच्चे के दूध के लिये, कल शाम से यह भूखा है।

भिखारिन सांवली-सलौनी जवान थी। उसने गहरे लाल रंग की शीशों से जड़ी छोटी-सी बंडी पहन रखी थी, जिसने उसके उन्नत वक्षस्थल को पूरी तरह ढक रखा था। अनढकी नाभि व पैरों तक लंबा घाघरा, पेट कुछ निकला हुआ। उसकी गोद में उसी का रंग-रूप लिये एक अर्द्धनग्न बच्चा था। ड्राइवर शीशे से उसी की ओर छुपी नजरों से देख रहा था।

कमला साहनी भिखारिन को डांटने लगी, शर्म नहीं आती तुम्हें! हट्टी-कट्टी हो, कोई काम क्यों नहीं करती?

काम क्या करना है इसने? मिसस मेहरा ने व्यंग्य करते हुए कहा, बच्चे पैदा करती जा रही है। एक गोद में है, एक पेट में…।

सुनकर कमला साहनी हंसने लगी। भिखारिन पर इस डांट व हंसी का कोई असर नहीं हुआ। उसने पुनः अपने भूखे बच्चे के दूध के लिये पांच-दस रुपये देने की रट लगाते हुए, अपना हाथ फिर से कार के भीतर किया। हरी बत्ती आ गयी। ड्राइवर ने कार चला दी, भिखारिन ने तुरंत अपना हाथ कार के बाहर खींच लिया।

कमला, इन पैसों का क्या करोगी? सरला ने पैरों के पास पड़े पैकेट की ओर इशारा करते हुए पूछा।

क्या करना है? पड़े रहेंगे ऐसे ही। खरीदना-वरीदना तो कुछ है नहीं। इनके रुपये भी यूं ही पड़े रहते हैं, वैसे ही ये भी पड़े रहेंगे। कमला साहनी का इशारा अपने पति की ओर था।

उसके पति बिल्डर्स फॉर्म के मालिक हैं। मकान बना कर बेचते हैं। बिक्री का अधिकतर पैसा ब्लैक का होता है। इसलिए घर में ही पड़ा रहता है। जरूरत होने पर सीमेंट, ईंट व जमीन खरीदने के काम आता है।

पैसा रखने के लिए बेडरूम में एक खास अलमारी है, जिसे एक खांचे में अच्छी तरह से फिट किया गया है। उस पर बहुत ही कीमती लकड़ी के पल्ले लगे हैं।

कोई सोलीटेयर खरीद लेना…. सरला मेहरा ने सुझाव दिया।

और क्या करना है? कमला ने अपना हाथ उसके आगे करते हुए कहा, यह देख चार कैरेट की अंगूठी है। कानों में दो-दो कैरेट के टॉप्स हैं।

तुझे अगर पैसे नहीं चाहिए तो फिर क्यों किट्टी डालती है? मैं तो इसलिए किट्टी डालती हूं कि मुझे एक साथ पैसे मिल जाते हैं, जिनसे कोई बड़ी चीज खरीद लेती हूं…।

सरला, मैं पैसों के लिये किट्टी नहीं डालती। यह तो केवल सहेलियों से मिलने का एक बहाना है। इसी बहाने मैं महीने में एक बार अपनी सहेलियों से मिल लेती हूं, चाहे कुछ समय के लिये ही सही। नहीं तो दिल्ली जैसे महानगर में किसी से मिलना-मिलाना कितना मुश्किल है। कमला साहनी ने कहा।

होंडा कार अब दूसरे चौराहे पर रुकी। लाल बत्ती हो गयी थी। भिखारी तो यहां भी थे। इस बार उसकी खिड़की के पास एक बुढ़िया खड़ी थी, बिल्कुल चुपचाप। उसकी आँखों में याचना का भाव था। उसने अपना हाथ फैला रखा था, पर कार से दूर।

भूखी लगती है बेचारी। सरला मेहरा को उस पर दया आई। केवल हड्डियों का ढांचा, शरीर पर जैसे मांस है ही नहीं।

इसे तो कुछ देना चाहिए। भूखी है, फिर भी मुंह से कुछ नहीं बोल रही है। कमला साहनी भी द्रवित हो उठी।

दे दो दस-बीस रुपये। सरला मेहरा ने सलाह दी।

नहीं, इसे पैसे नहीं देने चाहिए। इसके शराबी बेटे छीन लेंगे और यह फिर से भूखी की भूखी रह जायेगी।

तुम्हें कैसे पता कि इसके बेेटे शराबी हैं? सरला मेहरा ने पूछा।

पता करने की क्या जरूरत है? ऐसी औरतें शराबी बेटों की ही माएँ होती हैं। इन्हें खाने के लिये कुछ नहीं मिलता है। मैं पैसे नहीं दूंगी।

बहस चल ही रही थी कि हरी बत्ती आ गयी और कार चल पड़ी। कमला साहनी ने शीघ्रता से पैरों के पास रखा खाने का पैकेट उठाकर बूढ़ी भिखारिन को पकड़ा दिया। गाड़ी चौराहे के दायीं ओर मुड़ चुकी थी।

सरला मेहरा का घर वहां से निकट ही था। कमला उसे वहां उतार कर सीधे अपने घर चली गई। आज यद्यपि अधिक चलना-फिरना नहीं हुआ था, फिर भी उसे थकान-सी हो रही थी। उसने खाना भी कुछ अधिक खा लिया था, स्वादिष्ट जो था। नींद से उसकी आँखें बोझिल हो रही थीं। रुपयों का पैकेट बेडरूम की खास अलमारी में रख कर बेड पर पड़ गयी।

इस घटना को हुए तीन दिन बीत गये। मिस्टर साहनी सुबह-सबेरे सैर के लिए चल पड़े। कमला साथ के कमरे में बैठी चाय के साथ सुबह की खबरें सुन रही थी। इतने में सफाई वाली माई ने आकर कहा, मेम साहिब, आपके कमरे से बदबू आ रही है। कोई चूहा-वूहा मर गया है शायद।

तेरा दिमाग तो ठीक है। हमारे घर में चूहा कहां से आ गया? चल देखते हैं। कहते हुए कमला साहनी माई के साथ बेडरूम में आयी। वास्तव में वहां बदबू आ रही थी। कमला ने एक अलमारी खोली, कपड़े इधर-उधर किये, उसमें कुछ नहीं दिखाई दिया। फिर दूसरी अलमारी को टटोला तो उसमें भी कुछ नहीं था। अब वह रुपयों वाली अलमारी की जांच करने लगी। रुपये अलग-अलग पोटलियों में बांध कर रखे थे। वह एक-एक पोटली उठाकर देखने लगी। अंत में किट्टी वाला पैकेट उठाया और उसे खोला। अचानक बदबू का एक झोंका उसके मुंह पर पड़ा। पैकेट में वही खाना था, जो किट्टी वाले दिन बिमला बिंद्रा ने दिया था।

कमला ने पैकेट उठाकर रसोई के डस्टबिन में फेंक दिया। उसका चेहरा उतर गया। उसे बत्ती वाले चौराहे पर खड़ी, मूक याचना करती, क्षीण-हीन झुर्रियों वाली बुढ़िया याद हो आई, वही जिसे दस-बीस रुपये की भीख देने के लिये उसने मना कर दिया था।

– दर्शन सिंह

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