शराब के बेहद शौकीन थे मुगल

Moguls were very found of wineआज के युग की तरह मुगल राज्य में भी शराब व अन्य मादक वस्तुओं का प्रचलन बहुत अधिक था। यद्यपि कुरान में शराब पीने व बनाने की पूर्ण मनाही है, लेकिन ईरानी परंपराओं के अनुसार यह माना जाता है कि शराब तो सेहत के लिये लाभदायक होती है। इसका अधिक प्रयोग सेहत के लिये अत्यंत हानिकारक होता है। शराब पीने का प्रचलन मुगलकालीन मुस्लिम समाज के कुलीन वर्ग में एक आनंद का साधन माना जाता था। यद्यपि अन्य वर्ग भी इसका आनंद उठाने से वंचित नहीं रहते थे। मुस्लिम वर्ग में कोई भी ऐसा सामाजिक समूह नहीं था, जो पीने-पिलाने में विश्र्वास न रखता हो, फिर चाहे वह धार्मिक व्यक्तियों का समूह हो, अध्यापन वाले व्यक्ति हों अथवा कुलीन वर्ग के। कुछ लोग छुप कर पीते थे व अन्य पार्टियों व मजलिसों में पीते थे, लेकिन पीते तकरीबन सभी वर्ग के लोग थे।

दिल्ली के सुल्तानों ने विशेषकर अल्लाउद्दीन खिलजी ने इसे “प्रशासनिक कार्यों में अड़चन’ की वजह से बंद करा दिया था। लेकिन वह भी पूर्ण रूप से इसे बंद कराने में असफल रहा। फिरोज तुगलक छुप कर शराब पीता था और एक बार पकड़े जाने पर (अपने पलंग के नीचे बोतल व कप छुपा दिये थे।) बड़ा शर्मिंदा हुआ था।

मुगल राजा, विशेषकर मुगलवंश का संस्थापक जहीरूद्दीन बाबर शराब का बेहद शौकीन था। उसने अपनी आत्मकथा में इसका रोचक वर्णन भी किया है। वह शराब के नशे में धुत होकर कभी गिरता-पड़ता नहीं था, बल्कि अपनी घुड़-सवारी के जौहर दिखाता था। एक बार कुछ “सेनापतियों’ ने उसके अधिक पीने के खिलाफ अपना रोष प्रकट किया और कहा कि अब हमें तुम पर पूर्ण भरोसा नहीं रहा, क्योंकि तुम शराब अधिक पीने लगे हो। इस पर बाबर ने बारी-बारी से कुश्ती व तलवारबाजी के जौहर दिखाते हुए उन्हें हराया। राणा सांगा के विरुद्ध 1527 के खानवा युद्ध के बाद उसने शराब पीनी छोड़ दी थी और अपने अंतिम समय तक नहीं पी थी। बाबर का लड़का हुमायूं शराब का नहीं, बल्कि अफीम का अधिक व्यसनी था। वह शेरशाह सूरी द्वारा 1540 में पराजित होकर भारत से भाग गया।

मुगल वंश की पुनः स्थापना करने वाला अकबर भी पीने का बहुत शौकीन था। वह अपनी युवावस्था में बहुत अधिक मात्रा में शराब पीता था। वह एक बार गुजरात में अत्यधिक पीने की वजह से मानसिंह द्वारा बचाया गया। जहांगीर ने अपनी आत्मकथा “तुर्क-ए-जहांगीर’ में लिखा है कि मेरे पिता शराब पीने के बाद मुझे प्यार से शेखू बाबा कहते थे। अकबर “अर्क पोस्त’ (ताड़ की शराब को अफीम के घोल के साथ मसालों में मिलाकर) पीता था। लेकिन बाद में वह शराब नहीं के बराबर पीने लगा। उसकी इस आदत का उसके बेटों ने पूर्ण रूप से अनुसरण किया। अकबर ने उनको सुधारने के बहुत यत्न किये, लेकिन असफल रहा। उसके दो पुत्र मुराद व दानियाल शराब के अधिक सेवन के कारण जवानी में ही चल बसे। इसके बाद अकबर ने शराब का सेवन काफी कम कर दिया। उसके राज में अधिक शराब पीने के बाद शराबियों को उनके बुरे बर्ताव के लिये दंड भी दिया जाता था। उसके शासन में शराब के प्रयोग की मनाही नहीं थी, लेकिन व्यवस्थित तरीके से कम जरूर कर दिया गया था। उसे जनता का प्यार व सहयोग पूर्ण रूप से मिला था। वह भी उनकी अच्छी सेहत के लिये प्रयत्नशील रहा था। यह उस समय की एक विलक्षण बात थी कि समस्त मुगल बादशाहों में ऐसा कोई नहीं हुआ, जिसे आम जनता ने असीम श्रद्धा, प्रेम व सहयोग दिया हो। अकबर के बाद उसका पुत्र सलीम जहांगीर के नाम से गद्दी पर बैठा, परन्तु उसने शराब पीने के सारे रिकार्ड तोड़ डाले। वह 20 कप वाष्पन की हुई शराब दो बार पीता था। लगभग 14 कप सुबह के समय और बाकी शाम को। वह जुम्मे रात व जुम्मे के दिन शराब नहीं पीता था। थॉमस रॉय जिसे जेम्स-प्रधान ने अपना राजदूत बनाकर इंग्लैंड से भेजा था, ने जहांगीर के समय में राजनैतिक, आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियों का भव्य चित्रण किया है। उन्होंने बताया कि जहांगीर रेडवाइन का बहुत शौकीन था। उसे पॉंच से छः पेटियॉं रेडवाइन की भेजी गई, क्योंकि यूरोपियन विशेषकर अंग्रेज, शराब, कपड़े, हथियार, कुत्ते, जेवर आदि उपहार के रूप में देकर मुगलों से व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त करने की चेष्टा करते थे।

इंग्लिश फैक्टरी रिकॉड्र्स में कई मुगल अफसरों का वर्णन है, जो कि गुजरात के गवर्नर अथवा कस्टम ऑफिसर के रूप में रहे थे। उनमें आसिफ खॉं, मुर्करब खॉं आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध रहे, जो कि अंग्रेज़ों से अंग्रेज़ी वाइन सौगात के रूप में मांगते थे। जहॉंगीर की आत्मकथा के अनुसार उसके कई अफसर महासिंह, दयानत खॉं, माओ सिंह आदि अधिक पीने के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए थे और कई, विशेषकर खाजहॉं लोधी पागल हो गया था।

यद्यपि शाहजहॉं पीने का शौकीन था, परन्तु मुमताज की मृत्यु के बाद उसने शराब पीनी लगभग छोड़ दी थी। यद्यपि अंग्रेजी रिकॉर्ड के मुताबिक उसने विदेशी शराब के कुछ डिब्बे अथवा बोतलें अंग्रेज़ प्रधान से मंगवाई थीं। उसके लड़के शउजा व दारा शराब पीने के शौकीन थे और उसकी लड़की जहॉंआरा पर्सिया, काबुल व कश्मीर से शराब मंगवाती थी या वह कुछ वाष्पित करवा कर पीती थी। औरंगजेब ने इसे बनाने-बेचने व पीने की सख्त मनाही करवा दी थी, लेकिन राज्य में इसका कोई खास असर नहीं पड़ा, क्योंकि उसके अधिकांश कर्मचारी, चाहे वे मंत्री हों या अन्य अफसर, पीने से बाज नहीं आते थे। हालॉंकि उनको सजा भी दी गई, कइयों की जागीरें छीनीं और कइयों को पदमुक्त अथवा पदावनत किया गया, लेकिन वे पीना नहीं छोड़ पाये।

वैसे कई केस अखबारात-ए-दरबार-ए-मुआला अखबारात जयपुर न्यूज लेटर में दर्ज हैं। चाहे लोगों को प्रशासन ने दंडित किया, परन्तु लोगों ने पीना कम नहीं किया। 16वीं अथवा 17वीं सदी के हिन्दी साहित्य में भी कवियों ने विशेषकर सूरदास, नंददास, तानसेन, परमानंद दास, रहीम, बिहारी और वृंद ने शराब का वर्णन कई रूपों में किया और हिन्दी में इसे सुरा अथवा मदिरा कहा जाता था। यहॉं तक कि औरत जो शराब बेचती थी, उसे कल्लाली अथवा कल्ही कहा जाता था। डॉ. फ्रायर, जिसने कि 1681 में सूरत में कदम रखा था, के अनुसार मुस्लिम सार्वजनिक रूप में नहीं पीते थे, लेकिन गुप्त स्थानों पर गिलास में नहीं बल्कि सीधे बोतल को मुँह लगाकर गट-गट कर के पीते थे। कई इसमें धतूरा मिला कर भी पीते थे। गोलकुंडा की मुस्लिम युवतियॉं ताड़ के पेड़ों से निथारी शराब की शौकीन थीं।

You must be logged in to post a comment Login