युग दर्पण – नरेंद्र राय

लाख बाधा आए तेरे रास्ते पर।

बैठना मत हाथ पर तू हाथ धर कर।।

 

बल अतुल है अपने भीतर झॉंक पहले,

छोड़ औरों को स्वयं को आंक पहले।

मन की दुर्बलता को पगतल से कुचल दे,

जीत के उस बिन्दु को ही ताक पहले।

उठ खड़ा हो तू है अर्जुन, बन न कायर।। बैठना मत।।

 

गर समय की चाल समझेगा नहीं

रास्ता कोई तुझे देगा नहीं।

द्रोण बन एकलव्य मत बन पूर्व का

साथ निर्बल का नहीं देता कोई।

नग बना तू स्वयं को बनना न कंकर।। बैठना मत।।

 

सो रहे अरमान जो उनको जगा दे,

आग भीतर है तेरे उसको हवा दे।

खुद नहाले रौशनी में, रौशनी दे,

तू असंभव शब्द को जड़ से मिटा दे।

तेज का इक पिण्ड रख ले अपने सिर पर ।। बैठना मत।।

 

साथ चलना है समय के साथ चल ले,

भावना में डगमगा मत तू संभल ले।

झूठी मर्यादा की सीमाओं को तजकर

बंधनों आडम्बरों से तू निकल ले।

मुक्त हो निर्भय, न जी तू दास बनकर ।। बैठना मत।।

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