पौराणिक चरित्र – धर्मपुत्र

Yudistira, Mahabharatपांडव के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर का एक नाम यह भी है। ये धर्मराज के पुत्र हैं, जो कुन्ती के गर्भ से उत्पन्न हुत्र थे। सत्यनिष्ठा, धर्म-पालन आदि में ये आदर्श माने गये हैं। माद्री से संभोग करते हुए, शापवश पांडु की मृत्यु होने पर धृतराष्ट्र के यहां इनका पालन-पोषण हुआ था। धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन की क्रूरता एवं निर्दयता के कारण इन्हें अपने भाइयों सहित कई कष्ट सहने पड़े। शकुनि के छल से द्यूतक्रीड़ा में इन्हें राज्य, भ्राता, पत्नी सबको दांव पर लगाना पड़ा। इसके बाद भाइयों के साथ बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास बिताया। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अनिच्छा पूर्वक ही, श्रीकृष्ण के आदेश पर इन्हें द्रोणाचार्य के सामने अश्र्वत्थामा की मृत्यु का असत्य वचन कहना पड़ा। महाभारत युद्ध की विभीषिका, यातना एवं जन-नाश से ये अत्यंत चिंतित हो उठे थे। राज्याभिषेक के बाद श्रीकृष्ण की सहायता से इन्होंने राजसूय-यज्ञ संपन्न किया। छत्तीस वर्षों तक शासन करने के बाद परीक्षित को राज्य सौंपकर ये भाइयों तथा द्रौपदी सहित स्वर्गारोहण पर चल पड़े। सबके हिमपथ पर चलते हुए मृत्यु को प्राप्त करने के पश्र्चात ये अकेले रह गये। तभी धर्मराज ने कुत्ते के रूप में इनका अनुगमन किया। धर्मपुत्र, धर्मराज द्वारा प्रेषित रथ पर इस शर्त पर चढ़ने को तैयार हुए कि पहले कुत्ते को रथ पर चढ़ाया जाए। यह शर्त मानी गयी तो धर्मपुत्र रथ पर आरूढ़ हो गये। इनके स्वर्गगमन के समय से कलियुग का आरंभ माना गया है। धर्मराज, कौन्तेय, युधिष्ठिर, धर्मनंदन, धर्मात्मज आदि इनके अन्य नाम हैं।

– डॉ. एन.पी. कुट्टन पिल्लै

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