पवित्रता की दौड़

spritual-2आपने स्कूलों, कॉलेजों और विश्र्वविद्यालयों में बच्चों की दौड़ देखी होंगी, जिसमें उन्हें कई प्रकार की बाधाएँ पार करनी पड़ती हैं। जैसे कि छोटी-सी दीवार, अग्नि-रिंग, कोई छोटा नाला इत्यादि। इस दौड़ को “ओब्स्टेकल रेस’ अर्थात् बाधा-युक्त दौड़ कहते हैं। इस दौड़ का लक्ष्य होता है, कुछ शारीरिक बल और स्फूर्ति द्वारा इनाम प्राप्त करना।

जैसे लौकिक विद्यालयों में विद्यार्थियों को दौड़ाया जाता है और पाठशाला के प्रबन्धक अथवा अध्यापक अपनी सामर्थ्य के अनुसार विद्यार्थियों को इनाम भी देते हैं, वैसे ही परमात्मा भी पवित्रता की दौड़ में जीतने वालों को इनाम देते हैं – मुक्ति और जीवन-मुक्ति। यह इनाम अविनाशी और सर्वोत्तम है, क्योंकि इसके दाता परमात्मा स्वयं अविनाशी और सर्वोत्तम ठहरे।

इस दौड़ में काम की दीवार को, क्रोध के अग्नि रिंग को, लोभ के पहाड़ी टीले को, संबंधियों के मोह के घेरे को पार करना होता है। स्पष्ट है कि किसी भी दौड़ में नगर के सभी मनुष्य भाग नहीं लेते। केवल थोड़े-से विशेष व्यक्ति ही साहस धरते हैं। दौड़ने वालों में से भी सफलता प्राप्त करने वाले बहुत कम होते हैं। प्रथम स्थान, द्वितीय स्थान इत्यादि जीतने वाले तो बहुत ही थोड़े होते हैं।

इसी प्रकार, कुछ लोग पवित्रता की दौड़ दौड़ते हैं। उस कठिन दौड़ में भी थोड़े ही लोग अथवा ईश्र्वरीय विद्या के विद्यार्थी ही भाग लेते हैं। कोटियों में से थोड़े-से व्यक्ति ही सफलता प्राप्त करते हैं।

काम की ऊँची दीवार को पार करना अथवा पार करने का साहस करना भी कोई आसान काम नहीं। क्रोध के अग्नि रिंग को सही-सलामत लांघ जाना आसान बात नहीं है। धन-पदार्थों के ढेर को लोभ के बिना पार कर जाना सहज नहीं है। मोह की रुकावटों को फांद जाना कोई आसान कार्य नहीं है।

देह-अभिमान के ऊँचे शिखर से अथवा फिसलने वाले पर्वत से उतर कर नम्र-स्वभाव वाला बनना मनुष्य के लिये आसान नहीं है। परन्तु परमात्मा ही एकमात्र अध्यापक तथा गुरु है, जो कि अपने ईश्र्वरीय विश्र्व विद्यालय में यह सर्वोत्तम पुरुषार्थ सिखा कर, नर तथा नारी वर्ग को इस कर्म-क्षेत्र रूपी मैदान में दौड़ाते हैं। जो इस दौड़ में भाग लेंगे, वे बहुत ही बड़ा इनाम – “पवित्रता, सुख और शान्ति’ – जन्म-जन्मान्तर के लिये प्राप्त कर लेंगे।

You must be logged in to post a comment Login