गंगा सचमुच मैली हो गई

Ganga Riverपुराणों में गंगा जल का महत्व अत्यधिक पवित्र व रोग नाशक बताया गया है। आज भी लोग पापनाशिनी और जीवनदायिनी गंगा में डुबकी लगाकर और जल पीकर खुद को धन्य समझते हैं। कहते हैं, एक घड़े के पानी में दस बूंद पानी गंगाजल का मिला दिया जाए तो पूरा पानी साफ व कीटाणु नाशक हो जाता है, शुद्ध जल बन जाता है। किसी भी व्यक्ति के अंतिम समय में दो बूंद गंगा जल पिला देने से उसके पाप धुल जाते हैं। गंगा भारत की सबसे प्रमुख नदी है। इसे हिमनदी भी कहा जाता है। इसी के तट से आर्य-संस्कृति का उदय एवं विकास हुआ था।

किन्तु आज गंगा इतनी दूषित व प्रदूषित हो चुकी है कि पीना तो दूर, इस पानी से नियमित नहाने पर लोगों को कैंसर जैसी बीमारियां होने का खतरा बढ़ गया है। गंगाजल से हर साल 300 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। गंगाजल में ई-कोलाई जैसे कई घातक बैक्टीरिया पैदा हो रहे हैं, जिनका नाश करना असंभव हो गया है। इसी तरह गंगा में हर रोज 19,65,900 किलोग्राम प्रदूषित पदार्थ छोड़े जाते हैं। इनमें से 10,900 किलोग्राम उत्तर प्रदेश से छोड़े जाते हैं। कानपुर शहर के 345 कारखानों और 10 सूती कपड़ा उद्योगों से जल प्रवाह में घातक केमिकल छोड़े जा रहे हैं। 1400 मिलियन लीटर प्रदूषित पानी और 2000 मिलियन लीटर औद्योगिक दूषित जल हर रोज गंगा के प्रवाह में छोड़ा जाता है। वाराणसी तेल शुद्धिकरण केन्द्र के कारण गंगा अधिक प्रदूषित हुई है। काली, गंगा की उपनदी है, वह भी शहरी दूषित जल की वजह से प्रदूषित हुई है। इसी कारण काली एवं गंगा नदियों में मछलियों की मृत्यु की संख्या काफी अधिक है। कानपुर सहित इलाहाबाद, वाराणसी जैसे शहरों के औद्योगिक कचरे और सीवर की गंदगी गंगा में सीधे डाल देने से इसका पानी पीने, नहाने तथा सिंचाई के लिए इस्तेमाल योग्य नहीं रह गया है। गंगा में घातक रसायन और धातुओं का स्तर तयशुदा सीमा से काफी अधिक पाया गया है। गंगा में हर साल 3000 से अधिक मानव शव और 6000 से अधिक जानवरों के शव बहाए जाते हैं।

इसी तरह 35000 से अधिक मूर्तियां हर साल विसर्जित की जाती हैं। धार्मिक महत्व के चलते कुंभ-मेला, आस्थ विसर्जन आदि कर्मकांडों के कारण गंगा नदी बड़ी मात्रा में प्रदूषित हो चुकी है। इन्हीं कारणों से कई घातक बीमारियां गंगा जल से हो रही हैं, जैसे- डायरिया, मेनिनजायटिस, उल्टी दस्त और किडनी की कई जानलेवा बीमारियां। मसलन, कोई व्यक्ति नदी किनारे सब्जी उगाए तो प्रदूषित सब्जियां खाकर ज्यादा लोग बीमार होंगे। इससे लोगों को पथरी और पित्त का कैंसर तक हो सकता है। महिलाओं के खान-पान में हारमोन की अधिक मात्रा से भी स्तन कैंसर में इजाफा हुआ है।

गंगा से जुड़ी आस्था आज सिर्फ कुंभ या अर्द्धकुंभ के आयोजनों तक ही सीमित है। स्व. राजीव गांधी के बाद गंगा प्रदूषण की सच्चाई जानने की तो केन्द्र व राज्य सरकारों ने कभी कोशिश ही नहीं की। गंगा एक्शन प्लान के दो दशकों के लम्बे सफर में हरिद्वार से वाराणसी तक इसकी सफाई पर दो अरब खर्च किये जा चुके हैं। खर्च का सिलसिला जारी है, लेकिन गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं की जा सकी।

गंगा एक्शन प्लान की विफलता का आकलन इससे लगाया जा सकता है कि आज भी गंगा वाराणसी से जब निकलती है तो वह उतनी ही प्रदूषित होती है, जितनी योजना की शुरुआत के समय वर्ष 1985 में थी।

पर्यावरणीय मानकों के मुताबिक नदी जल के बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड का स्तर अधिकतम 3 मि.ली. ग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। सफाई के तमाम दावों के बावजूद वाराणसी के डाउनस्ट्रीम (निचले छोर) पर बीओडी स्तर 16.3 मि.ग्रा. प्रति ली. के बेहद खतरनाक स्तर में पाया गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट दर्शाती है कि गंगा के प्रदूषण स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। नरोरा, कानपुर, इलाहाबाद में बीओडी तो बढ़ा हुआ है ही, जीवाणुओं की मौजूदगी भी खतरे की सारी सीमाएं लांघ चुकी है। उद्योगों के रासायनिक उत्प्रवाह से गंगा में हर रोज जो विषाक्त कचरा पहुंच रहा है, उसकी भी अनदेखी की जा रही है।

जल निगम की रिपोर्ट के मुताबिक हरिद्वार से वाराणसी तक गंगा की सफाई पर पहले चरण में 185 करोड़ खर्च हो चुके हैं। जिसमें कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, मिर्जापुर, फर्रूखाबाद में कुल नौ सीवेज शोधन संयंत्र लगाकर 397 एमएलडी सीवेज कचरे को उपचारित करने का दावा किया गया है, लेकिन बोर्ड की रिपोर्ट इन दावों को झुठलाती है। रिपोर्ट के मुताबिक सभी शहरों में गंगा में प्रदूषण की स्थिति आज भी चिंताजनक बनी हुई है। सवाल उठता है कि आखिर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी गंगा प्रदूषण मुक्त क्यों नहीं हो पाई? स्पष्ट है कि या तो तकनीक में कमी है अथवा जिम्मेदार महकमों ने धन का सही इस्तेमाल नहीं किया।

इन खामियों को दरकिनार कर अब दूसरे चरण के तहत भी 191 करोड़ की भारी भरकम रकम खर्च की जा रही है। शायद केन्द्र सरकार को गंगा की सफाई से सरोकार नहीं है। वह तो बस योजनाओं को मंजूरी ही जारी करने में दिलचस्पी दिखाती है। जल निगम की रिपोर्ट को ही देखें तो गंगा सफाई का लक्ष्य अब भी कोसों दूर है। वर्ष 1985 में कानपुर, फर्रूखाबाद, इलाहाबाद, वाराणसी व मिर्जापुर शहरों से गंगा में रोजाना पहुंचने वाला सीवेज उत्प्रवाह 646 एम एल डी आंका गया था लेकिन 19 साल की कवायद में प्रथम चरण के तहत इन शहरों के केवल 397 एम एल डी सीवेज उत्प्रवाह के शोधन का दावा किया जा रहा है।

दावों के विपरीत गंगा आज सचमुच मैली हो गई है। टिहरी बांध बनने के बाद जल स्तर घटने से यह नदी कहीं-कहीं नाला नजर आने लगी है। आवश्यकता है इससे जुड़ी आस्था को अभियान में बदलने की ताकि गंगा फिर पतित पावनी गंगा बन सकें।

– वैदेही कोठारी

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