संचार-क्रान्ति के प्रवर्तक महर्षि नारद

Maharishi Naradमहर्षि नारद का नाम सुनने पर आमतौर पर सामान्यजन की भृकुटी तन जाती है। उसके मन-मस्तिष्क में इस नाम से जुड़ी उस मानुष की तस्वीर उभर आती है, जो हास्य का पर्याय हो और जिसे इधर-उधर की बात करने की आदत पड़ी हो। यह स्थिति इस कारण बनती है कि ऐसे लोग महर्षि नारद के सांगोपांग व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित नहीं हैं।

महर्षि नारद ब्रह्मा के मानस-पुत्र स्वीकार किए जाते हैं। महाभारत में नारद जी को वेदों, उप-निषदों के वेत्ता ऋषि, प्रौढ़वक्ता, धर्मतत्वज्ञ, इतिहास-पुराण के मर्मज्ञ तथा युद्ध एवं गांधर्व विद्या सेवी बताया गया है। वे ऋग्वेद की कुछ ऋचाओं के आह्वानकर्त्ता भी स्वीकारे जाते हैं तथा उनकी गणना सात विशिष्ट ऋषियों में की जाती है।

महर्षि नारद भक्तिमार्ग के द्वादश आचार्यों में प्रमुख हैं। नारद-संहिता के आधार पर स्वीकार ही करना पड़ेगा कि नारद संगीत, ज्योतिष, आयुर्वेद एवं नीति के प्रमुख आचार्य हैं।

महर्षि नारद के चरित्र की विशिष्टता यह है कि वे देव एवं दनुज-दोनों के विश्र्वास-भाजन हैं। सृष्टि के पालक भगवान विष्णु तक तीनों लोकों के समाचार पहुंचाने में श्री नारद की महति भूमिका मानी जाती है। प्रश्र्न्न पैदा होता है कि महर्षि एक लोक से दूसरे लोक तक कैसे द्रुत गति से भ्रमण करते थे और सभी प्रकार के समाचार उन्हें कैसे प्राप्त हो जाते थे। धर्म-पारायण व्यक्ति तो श्री नारद को दैवी-शक्ति संपन्न कह देंगे, परन्तु बौद्धिक प्रक्रिया शायद यह स्वीकार न करे।

आज वैज्ञानिक क्रांति का युग है। शायद यह निष्कर्ष अटपटा-सा लगे कि महर्षि नारद को भ्रमण तथा आदान-प्रदान के लिए आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध रही होंगी। यह वैज्ञानिकों तथा चिन्तकों के अनुसंधान का विषय है। लंका-विजय के उपरान्त भगवान राम महाराज विभीषण प्रदत्त पुष्पक-विमान से अयोध्या लौटे थे। वायुयानों के प्रचलन से पूर्व इस घटना को कपोल-कल्पना कहकर खारिज कर दिया जाता था। आज लंका में लंका नरेश रावण के वायुयानों, हवाई अड्डों एवं कर्मशालाओं की संपन्न खोज से प्राचीन वृत्तों की प्रामाणिकता सिद्ध हो चुकी है। आज के शासन तंत्र में मीडिया की भूमिका इतनी प्रभावी हो गयी है कि इसे तंत्र का चौथा स्तंभ स्वीकार किया जाता है। जब लोगों को प्रशासनिक प्रबंधन से न्याय नहीं मिलता तो अनेक बार मीडिया प्रभावी हस्तक्षेप से न्याय संपादन में सफल रहता है। महर्षि नारद केवल सूचनाओं का आदान-प्रदान ही नहीं करते थे, अपितु त्रिदेवों, विशेषकर शिव एवं विष्णु से आग्रह कर समस्याओं का समाधान भी करवाते थे। इस रूप में आज की संचार क्रांति के महर्षि नारद प्रवर्त्तक कहे जा सकते हैं।

महर्षि नारद भक्ति के कोरे आचार्य ही नहीं थे, उन्होंने अनेक लोगों को इस पथ पर चलाया भी। गर्भस्थ प्रह्लाद को प्रभु-भक्ति का प्रसाद श्री नारद से ही मिला। बालक ध्रुव के प्रेरणास्रोत भी नारद ही थे। नारद पुराण में समग्र सिद्धियों का मूल कारण भक्ति को ही बताया गया है –

यथा समस्त लोकानां जीवनं

सलिलं स्मृतम्!

तथा समस्त सिद्धीनां जीवनं

भक्ति रिष्यते।।

महर्षि ने प्रजापति दक्ष के ग्यारह सहस्र पुत्रों को भी निवृत्ति-मार्ग का उपदेश दिया था, जिससे क्रुद्ध होकर दक्ष ने महर्षि को शाप दिया कि वह कहीं भी दो घड़ी से अधिक नहीं ठहर पाएँगे। “राम चरित मानस’ में गोस्वामी तुलसी दास ने “नारद-मोह’ के प्रसंग का उल्लेख किया है। किसी अन्य प्राणी की भांति नारद जी में “वासना’ का उद्वेग क्षणिक रूप से आया होगा, परन्तु उन्होंने ब्रह्मा जी द्वारा प्रस्तुत विवाह-प्रसंग को नकार दिया था। पिता ने पुत्र को पत्नी के बिना जीवन व्यतीत करने का शाप भी दे डाला था।

महर्षि नारद की महिमा नारद-पुराण के कारण भी है। 25,000 श्र्लोकों वाले “नारद पुराण’ के नामकरण के दो आधार बताए जाते हैं – नारद जी द्वारा कथित – “यत्राह नारदोधर्मान्’, जिसमें नारद ने धर्म कथाएँ कहीं है। सनक सनंदन, सनातन और सनत्कुमार ने नारद को ये कथाएँ सुनाई थीं, इसी कारण इसका नाम “नारदीय पुराण’ पड़ा।

भारत वर्ष के सांस्कृतिक इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्व है। यह भारतीय धर्मसाधना, कर्मकांड, भक्ति-भावना, दार्शनिक चिन्तन, ज्योतिष, मंत्र-विद्या आदि का विश्र्वकोष है। “नारद पुराण’ मुख्य रूप से भक्ति प्रधान विष्णु भक्ति पुराण है। वास्तव में इसे महापुराण की संज्ञा देना उचित होगा। महर्षि नारद ने सूचना-संप्रेषण की दृष्टि से ही नहीं, इन पौराणिक जानकारियों के माध्यम से भी संचार-क्रांति के प्रवर्तक की भूमिका निभाई है। भारतीय परंपरा में महर्षि का स्थान विशिष्ट है।

– प्रो. मोहन मैत्रेय

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