पहचान का विज्ञान

mother-and-babyमाँ के आँचल में पलने वाला बच्चा माँ को न पहचाने, यह कैसे हो सकता है? हर प्राणी में विशेष गंध होती है। जो उसकी विशिष्ट पहचान होती है। मानव शिशु को ले लीजिए। माँ तो अपने बच्चे को पहचान लेती है, पर शिशु जो नासमझ होता है वह कैसे पहचानता है अपनी माँ को? उसके पहचानने के अपने तरीके होते हैं जो उसे प्रकृति प्रदत्त होते हैं। प्रायः यह बात सभी जीवों पर लागू होती है। शिशु, माँ को उसकी गंध, स्पर्श, उसके स्वर से पहचान लेता है। यही कारण है कि माँ जब शिशु को गोद में लेती है तो वह तुरन्त किलकारी भरने लगता है, किन्तु यदि दूसरा अनजान व्यक्ति ले तो उसे वह खुशी नहीं मिलती जो उसे माँ के पास जाने से मिलती है।

पक्षी, पशु सब दूर से ही अपने बच्चों को पहचान लेते हैं। पक्षी ध्वनि से एवं पशु गंध व शारीरिक रचना को महत्त्व देते हैं। गायों के झुंड में अनेक बछड़ों के बीच अपने बछड़े को गाय पहचान लेती है। उसे देखकर रंभाने लगती है और बछड़ा भी उसे पहचान कर उसके करीब पहुँच जाता है। वह भैंस या अन्य जानवरों के पास नहीं जाता। बिल्ली अपने बच्चों को सूंघकर पहचान लेती है। दरअसल बहुत से जीव अपने बच्चों को जन्म देने के बाद सूंघते हैं और उस समय मिली गंध उन्हें हमेशा अपने बच्चों को पहचानने में मदद करती है। कुछ जीव उन्हें चाटते समय गंध व स्वाद पहचान के लिए अपने जेहन में बसा लेते हैं। कितना मज़ेदार होता है मूक प्राणियों में पहचान का विज्ञान। मनुष्य चूंकि समझदार व विकसित मस्तिष्क का प्राणी है इसलिए समयानुसार उसके पहचान के तरीके बदल जाते हैं।

– सुनील कुमार सजल

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