एसएमएस – छोटे संदेशों की बड़ी अर्थव्यवस्था

क्या आप जानते हैं कि आपके एसएमएस 116 अरब डॉलर की एक बड़ी अर्थव्यवस्था बनाते हैं? साथ ही यह भी कि अगले दो सालों बाद यह अर्थव्यवस्था बढ़कर 165 अरब अमेरिकी डॉलर हो जायेगी? जी, हां छोटे-छोटे मोबाइल संदेशों की अर्थव्यवस्था का आकार बहुत बड़ा है। अमेरिका, चीन और भारत इस एसएमएस इकोनॉमी के सबसे बड़े केन्द्र हैं। भारत और चीन में जितनी तेजी से एसएमएस अर्थव्यवस्था का विकास हुआ है उतना दुनिया के और किसी देश में नहीं हुआ। ऐसा स्वाभाविक भी है। आबादी के लिहाज से दुनिया के ये सबसे बड़े देश मोबाइलों की संख्या और उसके इस्तेमाल के मामले में भी दुनिया के पहले और दूसरे नंबर पर ही आते हैं।

टेलीकॉम क्षेत्र के विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर मोबाइल फोनों की संख्या में ऐसी ही वृद्धि जारी रही तो आने वाले अगले 3 सालों में मोबाइल, अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा केन्द्र बन जाएगा। एसिशियन के मुताबिक जो दुनियाभर में लगभग 300 मोबाइल नेटवर्क ऑपरेशंस चलाती है, अगले 3 सालों में मोबाइल अर्थव्यवस्था का विस्तार 200 फीसदी से ज्यादा की दर से होगा। 15 साल पहले से अगर आज की एसएमएस इकोनॉमी की तुलना करें तो हैरान कर देने वाले आंकड़ों से पाला पड़ेगा। तब के मुकाबले आज 6 हजार प्रतिशत मोबाइल संदेशों का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में निवेश का भारी रिटर्न मिला है। निवेशकों को किसी भी अन्य क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर रिटर्न नहीं मिला।

अगर भारत में मोबाइल के विकास परिदृश्य को देखें तो यह वाकई बहुत प्रभावित करता है। अध्ययन, अनुमानों के मुताबिक सन् 2011 तक भारतीय मोबाइल सेवाओं से हासिल होने वाला राजस्व 25.6 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा। भारत में मोबाइलों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है और उतनी ही तेज रफ्तार से मोबाइल का डाटा रेवेन्यू भी बढ़ रहा है। इसमें तेजी सन् 2007 से शुरू हुई जो विशेषज्ञों के मुताबिक सन् 2012 तक जारी रहेगी। ऐसा नहीं है कि 2012 के बाद यह कम हो जाएगी, हो सकता है तब यह स्थिर हो जाए। मगर यह भी कहा जा रहा है कि सन् 2012 के बाद भारत में मोबाइल सर्विस बड़े पैमाने पर इंटरटेनमेंट उद्योग बन जाएगा जो बड़े पैमाने पर राजस्व पैदा करेगा वहीं कई पारंपरिक मनोरंजन क्षेत्रों का रेवेन्यू भी यह क्षेत्र खा जाएगा।

सन् 2012 में भारत की मोबाइल डाटा इकोनॉमी 14 अरब अमेरिकी डॉलर से ऊपर पहुंच जाएगी। तब भारत मोबाइल रेवेन्यू के मामले में दुनिया के तमाम बड़े विकसित देशों को भी पीछे छोड़ देगा। सन् 2006 से 2011 के बीच मोबाइलों की संख्या में वृद्धि होते रहने का जो अनुमान है वह 12.7 फीसदी से लेकर 38.6 फीसदी के बीच है। माना जा रहा है कि अगले 3 सालों में लगभग 60 फीसदी ग्रामीण आबादी और लगभग 95 फीसदी शहरी आबादी के पास अपना निजी मोबाइल होगा यानी आने वाले दिनों में मोबाइल के बिना जीवन जीना शायद असंभव हो जाए। हालांकि यह मोबाइल के समूचे परिदृश्य के विकास का अनुमान है मगर फिर भी यह माना जा रहा है कि अगले कुछ सालों में पोस्टपेड के मुकाबले प्रीपेड मोबाइल कनेक्शनों की संख्या में भारी इजाफा होगा। वैसे अभी भी प्रीपेड कनेक्शन ही ज्यादा हैं। लेकिन माना जा रहा है कि सन् 2011 तक भारत में जितने मोबाइल होंगे उसमें 93 फीसदी से ज्यादा प्रीपेड कनेक्शन वाले होंगे और अगले 3 सालों के बाद मोबाइल धारकों की संख्या 47 करोड़ के आसपास होगी।

मोबाइल के संबंध में जितना चमकदार परिदृश्य भारत का है उससे कम वैश्र्विक विकास का परिदृश्य नहीं है। वैश्र्विक स्तर पर भी अगले 3-4 सालों में मोबाइल डाटा रेवेन्यू 25 से 30 फीसदी बढ़ेगा। मोबाइल का यह बढ़ता आर्थिक विस्तार इसे महज एक संचार उपकरण तक सीमित नहीं रहने देगा या दे रहा है। मोबाइल अपने आप में एक संपूर्ण अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है और विशेषज्ञों का आंकलन है कि आने वाले दिनों में यह और भी तेजी से इसी दिशा में आगे बढ़ेगा। मोबाइल ने हमारी जिंदगी में सिर्फ सूचनाओं की पहुंच को ही तेज नहीं किया बल्कि जीने के समूचे ढंग को बदल दिया है। मोबाइल ने जहां इंसान को तेज सूचनाएं देकर उसके कारोबार और आय में वृद्धि की है, समय से सूचनाओं को कोने-कोने तक पहुंचाकर तमाम तरह के नुकसानों को रोका है, वहीं मोबाइल ने कई मानसिक और सामाजिक संकट भी खड़े किए हैं। मोबाइल ने हमारी प्राइवेसी छीन ली है। पहले जहां हर व्यक्ति के पास औसतन 6 से 7 घंटे नितांत निजी होते थे उनमें किसी तरह की खलल नहीं पड़ती थी। ऑफिस, परिजनों, बाजार आदि का हस्तक्षेप लगभग शून्य के बराबर था। वहीं अब आदमी के पास ऐसे घंटे बमुश्किल 3 से 4 रह गए हैं। मोबाइल ने जहां सूचनाओं की पहुंच बहुत दूर तक कर दी है वहीं इसने समस्याओं, तनावों और जिम्मेदारियों को भी बहुत दूर तक फैला दिया है। मोबाइल के कारण औसतन अमेरिकी क्लर्क डेढ़ गुना ज्यादा तनाव में रहता है। हालांकि उसकी कार्यक्षमता कुछ खास नहीं बढ़ी लेकिन जिम्मेदारियों का बोझ दोगुना हो गया है। अब वह कहीं पर भी रहे, एक जिम्मेदारी के दायरे में रहता है। इस कारण वह हमेशा काम भले न करे लेकिन कार्यजनित तनाव के बंधन से बंधा रहता है।

शायद यही कारण है कि एक तरफ जहां मोबाइलों की संख्या में पूरी दुनिया में तेजी से इजाफा हो रहा है और विकासशील देशों में तो यह किसी विस्फोट के माफिक है, वहीं आम लोगों का एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो मोबाइल से घृणा करता है। पश्र्चिम में मोबाइल से नफरत करने वाले ऐसे लोगों के संगठन बनने लगे हैं जो या तो पूरी तरह से या दिन और रात के एक निश्र्चित समय पर अपने मोबाइल फोनों को पूरी तरह से स्विच ऑफ कर देते हैं। उस समय इन्हें कोई भी परेशान नहीं कर सकता। ऐसे लोगों ने अपने जानने वालों और दफ्तर में भी खासतौर पर यह हिदायत दे दी है कि इस दरमियान उन्हें फोन न किया जाए। इस लिहाज से देखें तो मोबाइल के प्रति जहां लोगों की दीवानगी बढ़ रही है, बाजार की उस पर निर्भरता बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ इससे तनाव भी बढ़ रहे हैं, संबंधों में समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं, साथ ही मोबाइल से नफरत करने वाले लोग भी बढ़ रहे हैं।

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