राजापुर में सुरक्षित है मानस की पांडुलिपि

Tulsidas Mandir Rajapurमाना जाता है कि रामकथा के अमर गायक गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म राजापुर गॉंव में हुआ था, जो अब उत्तर-प्रदेश के बांदा जिले में है। जहां गोस्वामी जी का जन्म हुआ, अब वहां एक मंदिर बना दिया गया है। वहॉं भगवान राम और लक्ष्मण के साथ-साथ जगतजननी सीता जी की भी मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मंदिर में गोस्वामी जी की कोई मूर्ति नहीं है। बताया गया है कि मूर्तिकार ने भगवान राम, लक्ष्मण और सीता को तो कल्पना से उकेर दिया, मगर गोस्वामी तुलसीदास को नहीं उकेर पाए। पहले गोस्वामी जी का यह घर कच्ची मिट्टी का था। बाद में सरकार ने इसका जीर्णोद्धार कराकर इसे संगमरमर के मध्य मंदिर का रूप दे दिया। इस मंदिर के समीप ही गोस्वामी तुलसीदास जी के अमरग्रंथ “रामचरित मानस’ के अयोध्या कांड की हस्तलिखित पांडुलिपि सुरक्षित रखी हुई है।

जनश्रुति के अनुसार, जब गोस्वामी जी ने “रामचरित मानस’ की रचना कर ली और घूम-घूम कर इसका प्रचार करने लगे, तब कुछ लोगों को उनकी ख्याति से ईर्ष्या होने लगी। वे तुलसीदास जी से द्वेष करने लगे। एक दिन उन्होंने विचार किया कि तुलसीदास की ख्याति उनके ग्रंथ “रामचरित मानस’ के कारण है, तो क्यों न उसे ही नष्ट कर दिया जाए? इससे तुलसी की ख्याति भी नष्ट हो जाएगी। यही सोचकर ईर्ष्यालुओं ने तुलसीदास जी की कुटिया से रामचरित मानस की मूल प्रति चुरा ली। जब उसे लेकर वे लोग नाव से नदी पार कर रहे थे, तभी बीच रास्ते में नाव उलट गई और सभी चोर डूब मरे। रामचरित मानस की प्रति तैरती हुई किसी तरह किनारे आ लगी, मगर उसके कई पृष्ठ भीग कर नष्ट हो गये। इस बीच तुलसीदास जी को मानस की चोरी का पता चला तो वे दुःखी हो गये। उनके जीवन भर की साधना ही नष्ट हो गयी थी। गोस्वामी जी का दुःख जानकर उनकी पत्नी रत्नावली ने उन्हें संदेश भिजवाया कि आप चिंता न करें और फिर से मानस को लिखने की तैयारी करें। जब आप मानस का पाठ कर लोगों को सुनाया करते थे, तब मैं भी रस-विभोर होकर सुना करती थी। सुनते-सुनते पूरी मानस मुझे कंठस्थ हो गई है। परदे के पीछे से मैं आपको सुनाऊंगी और आप उसे लिपिबद्ध कर लें। इस तरह रत्नाबली के सहयोग से तुलसीदास जी ने पुनः रामचरितमानस की पांडुलिपि तैयार की। लेकिन इस मानस मंदिर में तुलसीदास जी के मानस की वह प्रति भी सुरक्षित रखी है, जो नदी में बह गयी थी। नदी में बह जाने से इसका अधिकांश भाग नष्ट हो गया था, केवल अयोध्या कांड ही बच पाया था, जिसे इस मानस मंदिर में काफी सुरक्षा के साथ तिजोरी में रखा गया है। इसके सभी पृष्ठ एक अन्य पृष्ठ पर चिपके हुए हैं और प्लास्टिक कोटेड हैं। तिजोरी में इसे रेशमी दुशालों में सावधानी के साथ लपेटकर रखा गया है। प्रत्येक पृष्ठ पर मानस की सात पंक्तियां हैं। इस ग्रंथ को संभवतः नरकट की कलम से लिखा गया होगा। अब इसकी स्याही काफी फीकी पड़ गयी है और कागज का रंग भी हल्का बादामी हो गया है। मुख्य बात यह है कि “र’ अक्षर को इसमें “न’ लिखा गया है। कुछ वर्ष पहले जब मानस की इस प्रति की खोज हुई थी तब उत्तर-प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी ने विशेष रुचि लेकर इसकी सुरक्षा की व्यवस्था कराई थी।

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