युग दर्पण – नरेंद्र राय

भरोसा हाथों पे रख हाथ की लकीर न देख

कोई तदबीर तो कर, हासिले तदबीर न देख

तू सितारों को इरादों से बदल सकता है

पलट-पलट के तू पंचांग को तकदीर न देख

इरादा कर लिया तूफ़ानों से लड़ने का अगर

सामना मौज़ों का कर, तू पलट के तीर न देख

देना खैरात तो दे, मत सवाब की ़खातिर

दुआ के वास्ते तू सूरते फ़़कीर न देख

साथ इन्साफ का देना है तो फिर डर कैसा

देख मिज़ान को, तानी हुई शमशीर न देख

हो कोई काबिले इज्ज़त तो सिर झुकाले नरेन

कोई ग़रीब न देख, तू कोई अमीर न देख

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