तीन कविताएँ – मीनल विठलाणी

(1) जान कर तुम क्यों अनजान बन गये मेरे दीवानेपन का सामान बन गये पागल होने की हद तक चाहा है तुम्हें जाने फिर भी क्यों तुम चॉंद बन गये   (2) अपनी ़िंजदगी का एक दिन तो मेरे नाम कर दो झूठमूठ ही सही कुछ तो बदनाम कर दो जीने के लिए इतना सहारा […]

अपना हुनर मालूम है उनको!

एक पत्रकार को नेताजी का इंटरव्यू चाहिए था और नेताजी थे कि पकड़ में ही नहीं आ रहे थे। आये भी तो छूटते ही कह दिया, “”राजनीति पर बात नहीं करेंगे। राजनीति से संबंधित प्रश्र्न्नों के उत्तर नहीं देंगे।” पत्रकार सोचने लगा, तब हेडिंग कैसे बनेगी? मगर हेडिंग बनी और बहुत धांसू बनी! कैसे? नीचे […]

झूठ, भ्रम और अफवाहों के बादल

बरसात के मौसम में उमड़-घुमड़ कर बादल आते हैं, गरजते हैं और बरसकर चले जाते हैं। यह ही वह मौसम होता है जिसमें बिजली भी चमकती है और पोखरों, नालों और आस-पास के गड्डों में भरे पानी के कीचड़ में मेंढकों के झुंड के झुंड इकट्ठे होकर टर्र-टर्र की कर्कश आवाज में टर्राते रहते हैं। […]

अपना अस्पताल

ज्योतिषियों की कहूँ तो राहु-केतु की टेढ़ी आँखों की कुदृष्टि थी। डॉक्टरों की मानूँ तो लापरवाही थी। जो भी हो, शरीर में भूचाल-सा आ गया था। मैं दर्द से बेतहाशा बिलखने लगा था। मुझे लगा कि मेरे शरीर के भीतर सैकड़ों कॉंटें चुभ रहे हैं। मुझे लगा कि मैं कॉंटों की वादी में पहुँच गया […]

सावन अति मनभावन

वर्षा की रिमझिम फुहार हरी चूनर ओढ़े धरती पर पड़ती है तो लगता है कि इस पर किसी ने मोती जड़ दिए हैं। बागों में पक्षियों का कलरव, आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल मन में नयी उमंग पैदा करते हैं। बाग-बगीचों, चौबारों और घरों में झूले पड़ जाते हैं। वातावरण में वर्षा, संयोग-वियोग, हंसी-मजाक भरे गीत […]

गुफ्तगू एक बूढ़े मकान से

मैंने देखा, वह बूढ़ा मकान जो कभी किसी का घर हुआ करता था, किसी उजड़े हुए आदमी की तरह अपनी नींव पर सोच में डूबा हुआ, बैठा हुआ है। उसकी दीवारों पर घास उग आई थी। उसकी आंखें बंद थीं। अचानक उसने आंखें खोल कर मुझे देखा। मैंने उसकी आंखों में बीते हुए वक्त को […]

किसके लिये देशभक्ति

एक रिपोर्ट इन दिनों अखबार और टीवी में लगातार पढ़ने-देखने को मिल रही है कि फौज से अफसरों का मोह भंग हो रहा है और फौज छोड़ने वालों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है। फौज छोड़ने के कई कारण गिनाये जा रहे हैं जिनमें प्रमुख है कि छठे वेतन आयोग ने उन्हें कोई […]

गुफ्तगू एक बू़ढे मकान से

मकान मुझे देखकर मुस्कुराया। आखिर क्यों न मुस्कुराता? कितने दिनों बाद कोई उसके आंगन में आया था। किसी के आने से किसी को कितनी खुशी होती है, यह उससे पूछिए जो अपने ही घर में अकेला रह गया हो। मैंने उस सुनसान और अंधेरे मकान में पांव रखा, तो आंगन में खड़ा वह पुराना पेड़ […]

ब्लॉग हो तो हर कोई बांचे

किसी जमाने में एक गाना बहुत चलता था, “चिट्ठियॉं हों तो हर कोई बांचे, भाग न बांच्यो जाय।’ जमाना बदला। कम्प्यूटर आए। चिट्ठियां ई-मेल हो गईं। ई-मेल एसएमएस हो गए। एसएमएस एमएमएस हो गए। इधर नेट ने ब्लॉग बनवा दिए। हर व्यक्ति को अपने दिल की भड़ास निकालने का सुनहरा अवसर मिल गया। ब्लॉगों की […]

सागर कय्यामी की टिप्पणी

ऐसी कोई मिसाल जमाने ने पायी हो हिन्दू के घर में आग खुदा ने लगाई हो बस्ती किसी की राम ने आकर जलाई हो नानक ने राह सिर्फ सिखों को दिखाई हो राम व रहीम व नानक व ईसा तो नर्म हैं चमचों को देखिये तो पतीली से गर्म हैं साम्प्रदायिक दृष्टि से देश को […]