बा़की सिद्दी़की की एक ग़ज़ल

ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गॉंव में उदास फिरते हैं हम बेरियों की छॉंव में   नज़र-नज़र से निकलती हैं दर्द की टीसें कदम-कदम पे वो कॉंटे चुभे हैं पॉंव में   हर एक सम्त से उड़-उड़ रेत आती है अभी है जोर वही दश्त की हवाओं में   चले तो हैं किसी आहट […]

ग़ज़ल – जहीर कुरैशी

पंछियों की ज़ुबान में बोले हम हमेशा उड़ान में बोले जो तराशे गए वो बतियाए कितने हीरे खदान में बोले भूल कर नदियों की कुर्बानी लोग सागर की शान में बोले दंभ दौलत का छिप नहीं पाता जब वो मंदिर के दान में बोले बात सुन ले न दूसरा कोई इसलिए लोग कान में बोले […]

परशुराम को ही आना होगा

बस, अब और न बहे लहू मासूमों का और न लुटे घर बेगुनाहों का सब्र का भी सब्र टूट चुका है देख खूनी खेल आतंकियों का शांति, संयम, सौहार्द की भाषा न समझने वाले दहशतगर्दों का अंत करने गौतम, गांधी नहीं अब “परशु’ राम को ही आना होगा। – आत्माराम

आरक्षण की आग

आरक्षण की लपटों को जात-पात की भावनाओं को हवा न दो थोड़े से सियासी फ़ायदे के लिए जलाकर राख़ कर देंगीं। जहान को सदियों से धधकती सामाजिक वैमनस्य की आग – आत्माराम

मैं अपराधी हूँ

मैं एक अपराधी हूँ और मेरा अपराध है मेरा प्रेम, मेरी पूजा। मैंने प्रेम किया है, इंसान से मैंने पूजा है, मानव को यही मेरा अपराध है मैंने पूजा नहीं किसी पत्थर को, प्रेम नहीं किया, किसी पत्थर से। मैं अपराधी हूँ क्योंकि मैं छुपाना नहीं जानता मैं साधु कहलाता, अगर छुपाना जानता। अपराधी हूँ […]

त्रिवेणियॉं

चेहरे पर उभरी सलवटें, करवट लेता हुआ बिस्तर, कयामत की रात रही होगी। आँखों में सलवटें आ गयीं चेहरे का रंग सुर्ख हो चला ख़्वाब सारे भीगने से लगे। आँखों पर लम्हों के फ़ाहे रख कर सो गये हो पलकों में उनींदी नींद की कतरने दबा लीं अहसास के साये ना जीने दें ना मरने […]

जंगल राज

देश हमारा हमको नाज़, नहीं गिरी है सिर पर गाज। हिंसा-हत्या अभी बहुत कम, अभी न कोई वाद-विवाद। अभी नहीं है जंगल राज रात दिवस हम नहीं घुट रहे, आपस में हम नहीं पिट रहे सज़ा मिल रही हत्यारों को, अभी न महॅंगे आलू-प्याज़ अभी नहीं है जंगल राज कट्टर पंथी अभी झुके हैं, आतंकी […]

ओल्ड एज में

फिर आ गया ख्याल तेरा ओल्ड एज में वापिस हुआ शबाब मेरा ओल्ज एज में अपनी गुज़र रही है बड़ी एहतियात से तुम भी संभल के रहना ज़रा ओल्ज एज में जो हाई जम्प करते थे अहदे शबाब में करते नहीं हैं चूँ व चरा ओल्ज एज में दीवारें थाम-थाम के चलते हैं अब मगर […]

सुविधा-शुल्क देते जाइये

आप करते जाइये जो हम कहें, आप जो चाहेंगे होता जाएगा आपने हमको अगर खुश कर दिया, आपका प्रतिपक्ष रोता जाएगा टेढा-मेढ़ा काम करने के लिए, आप हमसे बात सीधी कीजिए, सिर्फ सुविधा शुल्क देते जाइये, कार्य सुविधाजन्य बनता जाएगा। अब हमें कानून मत सिखलाइये, खेलते हैं रोज़ हम कानून से आप चाहेंगे तो सुलझेगा […]

पेट पर बात मारना

हम भारतीय प्रमाण-पत्रों के पुराने शौकीन हैं। राजा लोग खुद को ही प्रमाणित करने के लिए अपने जनहित के कार्यों के शिलालेख जगह-जगह लगवाते रहे हैं, ताम्रपत्र जारी करते रहे हैं। दूसरों की तरह हम भी बचपन में इनके लिए लालायित रहते थे। पहला और आखिरी प्रमाण-पत्र हमें मैट्रिक का मिला था। हमने कोई विशेष […]

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