स्वयं पुरुषार्थ से ही प्रगति सम्भव

स्वयं पुरुषार्थ से ही प्रगति सम्भव

हे सर्वतोमुखी अग्निदेव! आप नौका के सदृश इस भवसागर में भी शत्रुओं से बचाकर हमें पार ले जाएँ। आप हमारे पापों को विनष्ट करें। द्विषो नो विश्र्वतोमुखाति नावेव पारय। अप न शोशुचदघम्।। इस मंत्र में ईश्र्वर की उपमा एक ऐसे न्यायाधीश से दी गयी है, जो प्रज्ञा की सुरक्षा हेतु जंगलों में जाकर दस्यु व […]

तत्काल फल देती है हनुमान जी की साधना

तत्काल फल देती है हनुमान जी की साधना

अतुलित बलधामं नमामि स्वर्णशैलाभदेह नमामि दनुज–बल–कृशानु नमामि, ज्ञानिनामग्रगण्यम् नमामि। सकल गुणनिधानं नमामि वानराणामधीशं नमामि। रघुपति प्रियभत्तं नमामि वातजातं नमामि।। आज का भोगोन्मुख मानव अमर्यादित कामाचार, अभक्ष्य भक्षणादि प्रवृत्तियों में फंसकर किंकर्त्तव्य विमूढ़ हो रहा है। जहां कहीं यत्र-तत्र थोड़ी-बहुत धार्मिकता या आध्यात्मिकता के अंश हैं, तो वहां उनके आचरण में दम्भ ईर्ष्या-द्वेष, पाखण्डादि की दुष्प्रवृत्तियां […]

द्वैमातुर

गणेश जी का एक नाम है द्वैमातुर। द्वयोर्मात्रोरपत्यं पुमान् द्वैमातुरः। अर्थात दो माताओं का संतानत्व प्राप्त होने के कारण गणेश का यह नाम पड़ा। गणेश जी की एक माता पार्वती हुईं और दूसरी माता हथिनी। रंभा तथा इंद्र के क्रीड़ारत रहते समय दुर्वासा ने जो पारिजात पुष्प इंद्र को दिया था, उसे इन्द्र ने स्वयं […]

मनुष्य की आत्मा स्वयं को भूली कैसे

कहते हैं कि एक राजा का महल जंगल के निकट था। एक दिन राजकुमार खेल रहा था, तभी उसे भेड़िये उठा ले गये। वह राजकुमार भेड़ियों के झुण्ड में फॅंसकर, उनके पास ही पलने और बढ़ने लगा। लम्बे अर्से के बाद राजा जंगल में शिकार करने गया तो उसने देखा कि एक मानव-शिशु भी भेड़ियों […]

मंडी का अर्धनारीश्वर मंदिर

यह अर्धनारीश्र्वर मंदिर लगभग 900 वर्ष पुराना है, जो कि हिमाचल के मंडी शहर में स्थित है। ऐसी भव्य मूर्ति, जिसमें आधा रूप शिव का है तथा आधा पार्वती का, किसी भी मंदिर में नहीं है। सभा-मंडप के प्रवेश-द्वार पर गजब की पत्थर नक्काशी है। गर्भगृह का तोरण-द्वार भी अलंकृत है। यह मंदिर भारत सरकार […]

महामंत्र का दान

प्राचीन समय में गुरु अपने त्याग, तपस्या एवं उपासना से अर्जित दिव्य-ज्ञान अधिकारी शिष्य को ही देते थे और सही पात्र न मिलने पर विद्या उनके साथ ही लुप्त हो जाती थी। ऐसी ही एक घटना आचार्य रामानुज से संबंधित है। प्रातः काल का शीतल मन्द समीर आश्रम वाटिका के पुष्पों का सौरभ लिए बह […]

धर्म और आध्यात्मिकता

धर्म और आध्यात्मिकता एक सिक्के के दो पहलू हैं और एक-दूसरे से संबंधित हैं। परन्तु फिर भी दोनों में अन्तर है। आध्यात्मिकता संसारिक भौतिकवाद से ऊपर है जिसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। यह आन्तरिक जिन्दगी की विश्र्वास और चमत्कारों से जुड़ी कड़ी है। यह मानव मूल्य की आधारशिला है जिस पर हम आस्था […]

जगन्नाथपुरी रथयात्रा

जगन्नाथपुरी रथयात्रा

आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को सम्पूर्ण भारत वर्ष में रथयात्रा उत्सव का आयोजन किया जाता है। सबसे प्रतिष्ठित समारोह जगन्नाथपुरी में मनाया जाता है। बंगाल की खाड़ी के निकट बसा यह पवित्र स्थान उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्र्वर से आठ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। प्राचीन काल में पुरी को पुरुषोत्तम क्षेत्र एवं श्रीक्षेत्र भी कहा […]

भाव के भूखे होते हैं भगवान

भाव के भूखे होते हैं भगवान

निर्मल मन जन सो मोहि पावा मोहि कपट छल छिद्र न भावा।। सभी शास्त्रों तथा धर्माचार्यों के प्रवचनों का यही सार है कि भगवान केवल भाव के भूखे हैं। वे हमसे किसी वस्तु अथवा पदार्थ की कामना नहीं रखते और न ही किसी फल-फूल की अपेक्षा रखते हैं। ईश्र्वर तो बस कोमल भाव और प्रेम […]

बंदा सिंह बहादुर – बलिदान की अनूठी मिसाल

बंदा सिंह बहादुर – बलिदान की अनूठी मिसाल

महान बाबा बंदा सिंह बहादुर अपने समय का एक महान सिख योद्धा था, जिनका जन्म 16 अक्तूबर, 1670 ई. को पुंछ जिले की तहसील राजौरी के गांव जोरे का गढ़ में पिता रामदेव जी के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। लक्ष्मण देव के भाग्य में विद्या नहीं थी, लेकिन छोटी-सी […]

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