पैकेट में जीना, पैकेट में मरना

दूध वाले से ऐसे जवाब की मैंने उम्मीद नहीं की थी। दो दिनों से दूध पतला आ रहा था। सुना दिया उसे। अब दूध पतला होने की शिकायत दूध वाले से न करें तो क्या भैंस से करें? मेरा तो मानना है कि जिस दूध वाले ने दूध पतला होने की शिकायत सुनी हो, उसे […]

रेल का टिकट

“बाबा, दुनिया में सबसे आसान काम कौन-सा है?’ “काम न करना ही सबसे आसान काम है।’ “नहीं, मैं प्रोफेशन के हिसाब से मालूम कर रही थी।’ “हर काम की अपनी कठिनाईयां होती हैं, जो काम करता है वही उसकी बारीकियां समझ सकता है।’ “मैं आपकी बात समझी नहीं।’ “मैं एक मिसाल से बताता हूं। मेरे […]

आटे पर बैंक लोन!

बैंक वाली बाला का फोन था। रिसीव किया तो मधुर आवाज गूंजी, “सर! आपके लिए खुशखबरी!! हमारे बैंक ने आटे और गेहूं खरीदने के लिए भी लोन देना शुरू कर दिया है। आप जैसे गरीब लेखकों को ईएमआई की सुविधा देने का निर्णय किया गया है। सर, आप बैंक आएं और अनाज के लिए लोन […]

छा गईं काली घटाएँ

ज्येष्ठ मास की तपती गर्मी के बाद आंखें आसमान की ओर निहारने लगती हैं। प्रकृति प्यास से व्याकुल हो जाती है तभी आती है- ऋतुओं की रानी वर्षा। अपने साथ काले मेघों की विशाल सेना लिए हुए। भारत में भौगोलिक दृष्टि व मानसून के हिसाब से बरसात के चार महीने माने जाते हैं, परन्तु इन […]

टिप्पणी

काका हाथरसी ने उनके बारे में कहा था- शैल मंच पर चढ़ेे तब मच जाता है शोर हास्य व्यंग्य के “शैल’ यह जमते हैं घनघोर जमते हैं घनघोर, ठहाके मारें बाबू मंत्री संत्री लाला लाली हों बेकाबू काका का आशीष विश्र्व में ख्याति मिलेगी बिना चरण “चल गयी’ ह़जारों वर्ष चलेगी उन्हें गु़जरे लगभग एक […]

लीक बनती कविताएँ

एन. गोपि तेलुगु के वरिष्ठ कवि हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनकी 50 कविताओं का अनुवाद हिन्दी के विज्ञ और वरिष्ठ अनुवादकों ने किया है। पुस्तक में संकलित कविताएँ बहुआयामी होने के बावजूद एक समन्वित, जिसे समग्र कहने में भी कोई हिचक नहीं हो सकती, दृष्टिकोण से बंधी हैं। यह दृष्टिकोण सकारात्मक है। यह स्वीकार किया […]

खेवनहार विभीषण

यह तय है कि विभीषणों के बिना राज नहीं किया जा सकता। कितने काम की ची़ज हैं विभीषण! इन लुढ़कन लोटों के बिना मुक्ति नहीं है। जियें तो जियें कैसे बिन आपके…। विभीषण हर युग में होते हैं। राज चाहे राम का हो या रावण का, विभीषण के बिना चल ही नहीं सकता। उनकी प्रशस्ति […]

धन कमाने में बिक गई नींद हमारी

बरसों पहले कृश्र्न्न चंदर का उपन्यास पढ़ा था “बम्बई रात की बांहों में’। तब उम्र छोटी थी, इसलिए उसके कथानक को समझ नहीं पाया। आज जब यह मायानगरी हमारे सामने मुम्बई बनकर आयी है, तब से यह सपनों का शहर बनकर रह गयी है। हर आदमी यहां एक सपना लेकर आता है। सपने का संबंध […]

धूप में यारो कंकर पत्थर सोब चमकते रहते हैं

धूप में यारो कंकर पत्थर सोब चमकते रहते हैं अंधियारे में चमक दिखाने वाला असली हीरा है दूसरे के कांधे पो चढ़ को मईं कित्ता उछला तो क्या ऊंचा अदमी फ़र्श के ऊपर बैठा भी तो ऊँचा है सिराज शोलापुरी (सोलापुरी) की यह पंक्तियॉं पढ़ते हुए निश्र्चित ही हम यह सोचने पर मजबूर हो जाते […]

तू नहीं तो तेरा मजाक ही सही!

कवि सम्मेलन पूरे शबाब पर था। एक बुजुर्ग शायर पढ़ रहे थे – आग भी हैरान थी शायद ये मंजर देखकर, जब उसे तहजीब दां घर की दुल्हन तक ले गये। हम इधर उसके दुपट्टे को रफू करते रहे, वो उधर, शेरों को उसके तन-बदन तक ले गये। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच वे माइक […]