टिप्पणी – एफ एम सलीम

हर सितम ऐ खुदा मुझे धोखा दिखाई दे देखूँ जो महज़बीं को तो खर्चा दिखाई दे मायके गयी है बीवी जो छुट्टी गुज़ारने खिड़की में रोज़ चांद-सा चेहरा दिखाई दे शौहर को किस तरह भला सेहत नसीब हो अब दोनों बीवियों में जो झगड़ा दिखाई दे खत पर भेजने वाले का पता न होने के […]

लुप्त हो गईं मर्यादाएँ – हितेश कुमार शर्मा

रिश्र्वत, लूट, चोरबाज़ारी, लांघ गई सारी सीमाएँ काले धन के कारण, लुप्त हो गई हैं सब मर्यादाएँ खण्ड-खण्ड करने भारत को, जंगल राज हुआ स्थापित भूल रही है नारी सीता, सावित्री की धर्म कथाएँ   पुरुष हुए स्वच्छंद, एड्स जैसी बीमारी बॉंट रहे हैं घर का मन्दिर छोड़, पात्र मदिरा का झूठा चाट रहे हैं […]

युवाओं से – मीना खोंड

आकाश में उड़ान लेते वक्त तेरे मजबूत कंधे पर आकाशभार तू कल का भवितव्य देश का वर्तमान आधार कर्तबगार… तू परिवर्तनशील समाज दायरे का मध्यबिंदू तू क्रांति के सपनों का साध्यसिंधु… तेरे रग-रग में बहती खून की गरमी तेरे रोम-रोम में जवानी जोशीली सहमी सहमी… तुझे असत्य का पर्दाफाश करना है सत्यम शिवम् सुंदरम् से […]

आदमी जब – नित्यानन्द गायेन

आदमी जब तक आदमी रहता है तब तक सब कुछ ठीक रहता है आदमी जब आम आदमी बन जाता है दुनिया की सारी समस्याओं से घिर जाता है या फिर किसी भीड़ भरे बाज़ार में एक दिन किसी बम विस्फोट में मारा जाता है   जिस दिन वह गरीब हो जाता है शोषण के करीब […]

मशहूर शायर इफ्तेखार आरिफ की एक ग़ज़ल

मेरे खुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे मैं जिस मकान में रहता हूँ उसको घर कर दे   ये रोशनी के तआकुब में भागता हुआ दिन जो थक गया है तो अब उसको मुख्तसर कर दे   मैं ज़िंदगी की दुआ मॉंगने लगा हूँ बहुत जो हो सके तो दुआओं को बे-असर कर दे […]

कभी ख़त लिखना – नरेश हमिलपुरकर

व़क्त मिले तो कभी ख़त लिखना बेपनाह-बेशुमार मुहब्बत लिखना   तेरे सिवाय नहीं कोई मेरा जहॉं में तू भी मेरे लिए यही चाहत लिखना   फरिश्ता लिख कर मुझे ग़ैर मत बनावो हर व़क्त, हर ख़त में मुझे दोस्त लिखना   कुछ भी लिख दो ये हक है तुझे नरेश मगर दिल टूट जाये ऐसा […]

तरु लगाओ – लालता प्रसाद मिश्र लाल

शीतल छाया का सुख पाओ, सुन्दर फूल और फल खाओ अमल-विमल परिवेश बनाओ, भूमि प्रदूषण मुक्त कराओ सुत से बढ़कर सेवा करते, सदा जीवनी शक्ति संजोते सबसे बढ़कर प्रत्युपकारी, खुशबू से इनकी सुख पाओ तरु कम से कम पांच लगाओ। इनका अंग-अंग उपयोगी, करते हमको यही निरोगी सीख सदा ये सिखलाते हैं, जीवन में विनम्र […]

ग़ज़ल – विज्ञान व्रत

मैं कुछ बेहतर ढ़ूँढ़ रहा हूँ घर में हूँ घर ढ़ूँढ़ रहा हूँ घर की दीवारों के नीचे नींव का पत्थर ढ़ूँढ़ रहा हूँ जाने किसकी गर्दन पर है मैं अपना सिर ढ़ूँढ़ रहा हूँ हाथों में पैराहन थामे अपना पैकर ढ़ूँढ़ रहा हूँ मेरे कद के साथ बढ़े जो ऐसी चादर ढ़ूँढ़ रहा हूँ

चेतना – डॉ मोहम्मद जमील अहमद

अन्याय को सहना नहीं उभरें एक शक्ति बनकर देश की रक्षा के लिए विघटित होते मानव मूल्यों को फिर स्थापित कर ताकि दूर हो सामाजिक भेदभाव कार्य हो निःस्वार्थ धर्म कभी खोना नहीं सच्चाई के लिए, अच्छाई के लिए प्रण लें, विदेशी संस्कृति को त्याग कर देश में आदर्श संस्कृति का हो संचार न्याय, नीति, […]

कर्मभूमि – इकबाल वफ़ा

कर्मभूमि पर जिंदा रहने तक तन मन से प्रेम का दीप जलाना है   चलो जवानों जागो, कैसी गहरी नींद में सोते हो पर्वत को तुम राई बनाओ, अपने अच्छे विचार से शत्रु को भी मित्र बनाओ, प्रेम से दुलार से   वो प्यारी धरती जिस पे हम जीते हैं खुशी प्रेम के कितने प्याले […]