नवयुग में नारी – सुनील सूद सुनीला

बिन द्रौपदी संभव नहीं महाभारत, रामायण का आधार है सीता गार्गी, मैत्रेयी, अरुन्धती को जग ने जाना उत्कृष्ट धर्म ज्ञान की ज्ञाता नारी के पाण्डित्य-भाव को, मैं करूं सहस्र नमन   सुभद्रा के सुत अभिमन्यु ने मॉं गर्भ-अर्जित ज्ञान से कौरवीय चक्रव्यूह में अद्वितीय धाक जमाई थी दूजी सुभद्रा की झॉंसी रानी ने तो, अंग्रेजों […]

चार मुक्तक – अनुप भार्गव

प्रणय की प्रेरणा तुम हो विरह की वेदना तुम हो निगाहों में तुम्हीं तुम हो समय की चेतना तुम हो   तृप्ति का अहसास तुम हो बिन बुझी सी प्यास तुम हो मौत का कारण बनोगी जिन्दगी की आस तुम हो   सुख-दुःख की हर आशा तुम हो चुंबन की अभिलाषा तुम हो मौत के […]

खुश होने का ह़क दे दो

मेरे खुदा मुझे माफ कर दो पापों को मेरे तुम साफ़ कर दो   खुश होने का ह़क दे दो खुशी दे दो मान दे दो   यूँ बेबस, बर्बाद न करो मेरे सवालों को जवाब दे दो दिखा दो मेरे सुख की तस्वीर मेरे खुदा मुझे खुशी दे दो   जो छीना है मुझसे, […]

मई का महीना – सुमन पाटिल

गर्मी के दिन मई का महीना आग उगलता सूरज पिघलती सड़क भागते-दौड़ते लोग पसीने से तरबतर चारों ओर मोटर गाड़ियों का शोर सुबह से शाम निरंतर, गगनचुंबी इमारतें मंज़िलों पर मंज़िल छोटे-छोटे घर छोटा-सा परिवार, बंद सब खिड़कियॉं झांकती न चांदनी छत नहीं न आंगन कूलर पंखे की घर्र-घर्र रातभर, नींद में डालते खलल मच्छर, […]

फूल से चेहरे को आँचल में छुपा कर रखना – लतीफ ‘आरजू’ कोहीरी

नियतें ठीक नहीं खुद को बचाकर रखना आज के दौर में हर कोई है सहमा-सहमा दिल मिले या न मिले हाथ मिलाकर रखना बेवफा व़क्त है कब जाने दगा दे जाए आज के काम को कल पर न उठाकर रखना भटक न पाए कोई रास्ता चलते-चलते घर की दहलीज पे कंदील जला कर रखना दोस्ती […]

आँख डबडबाई है – माधवी कपूर

फिर से गहराये सुरमई बादल फिर हवाओं में नमी आयी है क्या कोई आँख डबडबाई है   कौन गुजरा करीब होके अभी किसका साया-सा झिलमिलाया है किसकी आँखें ये शबनमी-सी हुईं किसने आवाज़ दे बुलाया है जाने वाले ने यह नहीं सोचा दिल कोई आईने सा टूटेगा कैसे गुजरेंगे पहाड़ों से दिन कैसे दामन ग़मों […]

नसीहत – आत्माराम

लगता है ये दुनिया बुरे लोगों की है अच्छे लोगों की झोली में तो हमेशा इम्तहान ही डाले गये सबूत देना पड़ता है उन्हें अपने अच्छे होने का हर वक्त बुरे लोग तो बुरे हैं न बदनामी का डर न अपमान होने का और तो और जो जितना बुरा व हृदयहीन होता है वह उतना […]

ताकतवर – डॉ राजेन्द्र सोनी

मुझे मालूम है मेरे दोस्त तुम सूरज बनकर पूरे विश्र्व को प्रकाशवान कर सकते हो चंद्रमा बनकर शीतलता प्रदान कर सकते हो किन्तु मैं चाहता हूँ मेरे दोस्त तुम सूरज और चंद्रमा से भी ज्यादा ताकतवर बनो ताकि भ्रष्टाचार से बने महलों में आग लगा सको

चार कविताएँ – मंगलेश डबराल

पहाड़ पहाड़ पर चढ़ते हुए तुम्हारी सॉंस फूल जाती है आवाज़ भर्राने लगती है तुम्हारा कद भी घिसने लगता है पहाड़ तब भी है जब तुम नहीं हो रेल में एकाएक आसमान में एक तारा दिखाई देता है हम दोनों साथ-साथ जा रहे हैं अंधेरे में वह तारा और मैं कविता कविता दिन-भर थकान जैसी […]

युग दर्पण – नरेंद्र राय

लाख बाधा आए तेरे रास्ते पर। बैठना मत हाथ पर तू हाथ धर कर।।   बल अतुल है अपने भीतर झॉंक पहले, छोड़ औरों को स्वयं को आंक पहले। मन की दुर्बलता को पगतल से कुचल दे, जीत के उस बिन्दु को ही ताक पहले। उठ खड़ा हो तू है अर्जुन, बन न कायर।। बैठना […]