फूल से चेहरे को आँचल में छुपा कर रखना – लतीफ ‘आरजू’ कोहीरी

नियतें ठीक नहीं खुद को बचाकर रखना आज के दौर में हर कोई है सहमा-सहमा दिल मिले या न मिले हाथ मिलाकर रखना बेवफा व़क्त है कब जाने दगा दे जाए आज के काम को कल पर न उठाकर रखना भटक न पाए कोई रास्ता चलते-चलते घर की दहलीज पे कंदील जला कर रखना दोस्ती […]

आँख डबडबाई है – माधवी कपूर

फिर से गहराये सुरमई बादल फिर हवाओं में नमी आयी है क्या कोई आँख डबडबाई है   कौन गुजरा करीब होके अभी किसका साया-सा झिलमिलाया है किसकी आँखें ये शबनमी-सी हुईं किसने आवाज़ दे बुलाया है जाने वाले ने यह नहीं सोचा दिल कोई आईने सा टूटेगा कैसे गुजरेंगे पहाड़ों से दिन कैसे दामन ग़मों […]

नसीहत – आत्माराम

लगता है ये दुनिया बुरे लोगों की है अच्छे लोगों की झोली में तो हमेशा इम्तहान ही डाले गये सबूत देना पड़ता है उन्हें अपने अच्छे होने का हर वक्त बुरे लोग तो बुरे हैं न बदनामी का डर न अपमान होने का और तो और जो जितना बुरा व हृदयहीन होता है वह उतना […]

ताकतवर – डॉ राजेन्द्र सोनी

मुझे मालूम है मेरे दोस्त तुम सूरज बनकर पूरे विश्र्व को प्रकाशवान कर सकते हो चंद्रमा बनकर शीतलता प्रदान कर सकते हो किन्तु मैं चाहता हूँ मेरे दोस्त तुम सूरज और चंद्रमा से भी ज्यादा ताकतवर बनो ताकि भ्रष्टाचार से बने महलों में आग लगा सको

चार कविताएँ – मंगलेश डबराल

पहाड़ पहाड़ पर चढ़ते हुए तुम्हारी सॉंस फूल जाती है आवाज़ भर्राने लगती है तुम्हारा कद भी घिसने लगता है पहाड़ तब भी है जब तुम नहीं हो रेल में एकाएक आसमान में एक तारा दिखाई देता है हम दोनों साथ-साथ जा रहे हैं अंधेरे में वह तारा और मैं कविता कविता दिन-भर थकान जैसी […]

युग दर्पण – नरेंद्र राय

लाख बाधा आए तेरे रास्ते पर। बैठना मत हाथ पर तू हाथ धर कर।।   बल अतुल है अपने भीतर झॉंक पहले, छोड़ औरों को स्वयं को आंक पहले। मन की दुर्बलता को पगतल से कुचल दे, जीत के उस बिन्दु को ही ताक पहले। उठ खड़ा हो तू है अर्जुन, बन न कायर।। बैठना […]

टिप्पणी – एफ एम सलीम

हर सितम ऐ खुदा मुझे धोखा दिखाई दे देखूँ जो महज़बीं को तो खर्चा दिखाई दे मायके गयी है बीवी जो छुट्टी गुज़ारने खिड़की में रोज़ चांद-सा चेहरा दिखाई दे शौहर को किस तरह भला सेहत नसीब हो अब दोनों बीवियों में जो झगड़ा दिखाई दे खत पर भेजने वाले का पता न होने के […]

लुप्त हो गईं मर्यादाएँ – हितेश कुमार शर्मा

रिश्र्वत, लूट, चोरबाज़ारी, लांघ गई सारी सीमाएँ काले धन के कारण, लुप्त हो गई हैं सब मर्यादाएँ खण्ड-खण्ड करने भारत को, जंगल राज हुआ स्थापित भूल रही है नारी सीता, सावित्री की धर्म कथाएँ   पुरुष हुए स्वच्छंद, एड्स जैसी बीमारी बॉंट रहे हैं घर का मन्दिर छोड़, पात्र मदिरा का झूठा चाट रहे हैं […]

युवाओं से – मीना खोंड

आकाश में उड़ान लेते वक्त तेरे मजबूत कंधे पर आकाशभार तू कल का भवितव्य देश का वर्तमान आधार कर्तबगार… तू परिवर्तनशील समाज दायरे का मध्यबिंदू तू क्रांति के सपनों का साध्यसिंधु… तेरे रग-रग में बहती खून की गरमी तेरे रोम-रोम में जवानी जोशीली सहमी सहमी… तुझे असत्य का पर्दाफाश करना है सत्यम शिवम् सुंदरम् से […]

आदमी जब – नित्यानन्द गायेन

आदमी जब तक आदमी रहता है तब तक सब कुछ ठीक रहता है आदमी जब आम आदमी बन जाता है दुनिया की सारी समस्याओं से घिर जाता है या फिर किसी भीड़ भरे बाज़ार में एक दिन किसी बम विस्फोट में मारा जाता है   जिस दिन वह गरीब हो जाता है शोषण के करीब […]